Wednesday, October 31, 2018

गहलोत राज के तीन वर्ष (12 दिसंबर, 2011)

अशोक गहलोत के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस शासन के आज तीन वर्ष पूर्ण हो गये हैं। विशेष उल्लेखनीय यह है कि टीवी में और अखबारों में सरकार की ओर से इस अवसर पर सामान्यतः जारी होने वाले सुराज के दावों के विज्ञापन नहीं देखे गये। यह विज्ञापन सार्वजनिक धन की बर्बादी और मीडिया को उपकृत करने का ही जरिया बनते हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी जरूर एक फोल्डर जारी कर रही है। दरअसल इस तरह के काम पार्टी को ही करने चाहिए।
दूसरी ओर मीडिया भी अपनी जिम्मेदारी की रस्म अदायगी कर रहा है। इस अवसर पर राज-काज का थोड़ा बहुत विश्लेषण, कुछ पक्ष और कुछ विपक्ष के नेताओं के वक्तव्य प्रकाशित और प्रसारित कर अपने कर्तव्य की इति मान रहा है। राज्य में भाजपा के पिछले शासन के समय ऐसे ही अवसरों पर पक्ष-विपक्ष के आए ऐसे ही वक्तव्यों को आज आये वक्तव्यों के साथ देखें तो भाषा और भाव वही है, केवल तथ्य और पक्ष बदला है।
दोनों शासनों में प्रशासनिक और क्रियान्वयन के स्तर पर तो कोई मोटा फर्क दिखलायी नहीं देता। उस फर्क को लाने के लिए व्यवस्था में बड़े बदलाव की जरूरत होती है, ऐसे बदलाव की मंशा सरकारें बना सकने वाली इन पार्टियों में मोटा-मोट दिखाई नहीं देती है, वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के काम करने के तरीके और सत्ता के गलियारों से आने वाली बातों से लगता है कि पिछली भाजपा सरकार और इस कांग्रेस सरकार के नेतृत्व के मिजाज में एक बड़ा अंतर यह है कि वसुंधरा राजे के काम के तरीकों में सामंती और अशोक गहलोत के तरीकों में लोकतान्त्रिक छाया देखी जा सकती है। जबकि एक लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में शासन करने वालों का ना केवल मिजाज बल्कि काम करने का तरीका भी शत-प्रतिशत लोकतान्त्रिक होना चाहिए।
अशोक गहलोत राज्य के लिए सचमुच में कुछ करना चाहते हैं तो एक अक्टूबर के अपने आलेख में जो मुद्दे उठाए थे, उन पर ध्यान देना चाहिए। इस आलेख में शिक्षा और स्वास्थ्य (मानवीय और पशु दोनों ही) की अच्छी सुविधाओं और इन तीनों ही विभागों में अतिरिक्त वेतन के साथ अलग से ग्रामीण सेवा का गठन करने का सुझाव दिया था। इसमें गांवों में स्कूली शिक्षा और सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं को पुख्ता करना और तहसील स्तर पर महाविद्यालयी शिक्षा और स्वास्थ्य की विशेषज्ञ सेवाओं को विकसित करने की जरूरत बताई थी। इससे ग्रामीणों का शहरों की ओर न केवल पलायन रुकेगा बल्कि शहरों पर बढ़ रहे असंतुलित दबाव से राहत भी मिलेगी।
अभी गहलोत के पास दो वर्ष का समय है और राज की पेचीदगियों से भी अब वे कुछ राहत महसूस कर रहे होंगे। इस पर विचार करने का समय उन्हें निकालना चाहिए।
-- दीपचंद सांखला
12 दिसम्बर, 2011

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