Thursday, October 18, 2018

विधानसभा चुनाव 2018 : बीकानेर : बिछती बिसात के अन्देशे और संभावनाएं

अमित शाह की 4 अक्टूबर को हुई अनुसूचित जाति रैली के बाद मेडिकल कॉलेज के उसी मैदान में 10 अक्टूबर को राहुल गांधी की संकल्प महारैली भी हो ली है। मात्र पांच दिन के अंतराल में हुई इन दोनों रैलियों की भीड़ में 1:10 के अनुपात का अनुमान माना गया। देश और प्रदेशकी सत्ता पर काबिज होते हुए भी भाजपा 6-7 हजार लोगों की भीड़ जहां मुश्किल से जुटा पायी वहीं नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने अपने क्षेत्र व अपनी जाति पर प्रभाव जताने के लिए इस संकल्प महारैली को शक्ति प्रदर्शन में परिवर्तित कर लिया। इस रैली पेटे शहर में उस दिन लगभग एक लाख लोग जुटे। हालांकि मैदान में भाषणों के दौरान किसी भी समय 60-70 हजार से ज्यादा लोग नहीं देखे गये। तब भी नहीं जब राहुल मंच पर थेया राहुल सम्बोधित कर रहे थे। राहुल के भाषण के दौरान कई लोग उठकर यूं जाने लगे जैसे उनकी ड्यूटी पूरी हो गई। हां, यह भी जरूर है कि राहुल के भाषण के अंत तक रैली स्थल पर लोगों का प्रवेश बदस्तूर जारी था।
संकल्प महारैली डूडी का शक्ति प्रदर्शन ही था इसमें दो राय नहीं। मंच उन्हें ही मिला जिन पर डूडी की नजरें कंवली रही। संचालन भी डूडी के विश्वास पात्र या रिमोट कन्ट्रोल या फिल्मी शब्दावली में कहें तो उनके सरकिट जिला देहात कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र गहलोत के पास था। ऐल्यूमीनियम टेण्ट के प्रत्येक खंभे के दोनों तरफ राहुल व डूडी के पोस्टर थे तो परम्परागत टेण्टों के पाइपों पर लगे कांग्रेस के झण्डों पर डूडी की छवि ही हावी थी। अलावा इसके ऐल्यूमीनियम टेण्ट में वरिष्ठ नेताओं के जो कटआउट बस्ट लगे, उनकी संख्या में भी डूडी राहुल के बराबर रहे, फिर सचिन पायलेट और अविनाश पाण्डे को उलाहना ना मिले इसलिए अशोक गहलोत को भी जगह दी गई। मतलब कुल जमा यही कि टके खर्चे हैं तो उनकी खनक में भी डूडी-डूडी ही ध्वनित होना चाहिए, वही हो रहा था। यह बात अलग है कि श्रीडंूगरगढ़, लूनकरणसर और खाजूवाला की सीटों के टिकट बंटवारे में वे अपनी कितनी चला पाते हैंइन सीटों पर हाइकमान ने उनकी मानी तो कांग्रेस नुकसान उठायेगी, इस बात में भी दम कम नहीं है। लेकिन डूडी का जैसा स्वभाव राजनीति में पदार्पण के समय से ही हैउसमें वे परिवर्तन नहीं करते हैं तो कभी 'बड़ेÓ नेता नहीं बन पाएंगे। ठीक वैसे ही जैसे डॉ. बीडी कल्ला प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहने के बावजूद बड़े नेता नहीं बन पाए। इसके लिए मन अपने कद से बड़ा रखना होता है।
खैर! बीकानेर जिले की सात सीटों में से बीकानेर पूर्व के अलावा कांग्रेस को अपने इस संक्रांति काल में उम्मीदवार नहीं बदलने चाहिए। रही बात पूर्व क्षेत्र की तो भाजपा सिद्धिकुमारी को रिपीट करती है या नहीं इसके मद्देनजर ही दूरगामी लाभ-हानि के हिसाब से रणनीतिक निर्णय लेने की जरूरत है।
कांग्रेस जो निर्णय करे उसकी वह जाने। बात भाजपा की भी कर लेते हैं। अच्छे दिनों के बरअक्स दिखते बुरे दिनों में भाजपा हाऊ-जूजू दिख रही है। सूबे की मुखिया वसुंधरा राजे ताबे न आने के बाद पार्टी हाइकमान को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए दो तरह की रणनीतियों पर मोर्चा ले पड़ रहा हैएक कांग्रेस से मुकाबले का तो दूसरा पार्टी के भीतर वसुंधरा राजे से मुकाबला। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति में मुंह की खाने के बाद हाइकमान या कहें अमित शाह गोटियां दोनों ही मोर्चों पर बिठाने में लगे हैं। जिसके तहत राजे को बिसात से बाहर करना जहां शाह के लिए अभी भी मुश्किल है वहीं भाजपा की चुनावी बिसात पर राजे का जमे रहना भी कम मुश्किल नहीं है। इसीलिए उम्मीदवारों का चयन पार्टी के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। इसके लिए पार्टी ने रणभूमि रणकपुर को चुना है। जहां अमित शाह के सिपहसालार अपने हिसाब से जुटे हैं वहीं वसुंधरा राजे खुद पार्टी में अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रही हैं। उम्मीदवारों के चयन में अपनी लड़ाई वसुंधरा हार जाती है तो मान लें वह चुनाव अभियान में भी खानापूर्ति के लिए ही जुटेंगी।
बीकानेर जिले की बात करें तो जैसा ऊपर कहा है कि कांग्रेस पिछली जमी-जमाई बिसात पर कुछ छेडख़ानी करेगी तो वह उसे बिखेर लेगी वहीं भाजपा के लिए सातों सीटों पर निर्णय करना ज्यादा टेढ़ी खीर हैश्रीडूंगरगढ़, बीकानेर पश्चिम में विधायकों की उम्र के हिसाब से उम्मीदवार बदलना जहां मजबूरी है वहीं लूनकरणसर और नोखा में उम्मीदवार तय करना पार्टी के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। खाजूवाला में पार्टी को खेचल करने की जरूरत नहीं है हालांकि इस सीट पर कुचरनी करने से अर्जुनराम मेघवाल चुकेंगे नहीं। कोलायत में देवीसिंह भाटी पार्टी के लिए होम होने को तैयार हों तो पार्टी को फिर यहां के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं अन्यथा कोलायत के लिए भी भाजपा को उम्मीदवार ढूंढ़ना आसान नहीं होगा।
रही बात बीकानेर पूर्व की तो रविवार को रणकपुर की रायशुमारी में मौजूदा विधायक सिद्धिकुमारी कहीं नहीं ठहरीबावजूद इसके जिले में पार्टी जिसकी जीत पर भरोसा कर सकती है वह सिद्धिकुमारी ही है। लेकिन जब पार्टी कार्यकर्ता साथ नहीं तो निर्णय पार्टी के लिए मुश्किल होगा। इसका हासिल क्या जब क्षेत्र के अधिकांश वोटर सामन्तकाल की अपनी गुलाम मानसिकता के चलते सिद्धिकुमारी के साथ हों। रणकपुर की रायशुमारी में अव्वल नगर विकास न्यास अध्यक्ष महावीर रांका रहे तो युवा नेता सुरेन्द्रसिंह शेखावत और मोहन सुराणा ने भी अपना प्रभाव दर्ज कराया है। इसी बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की ऐसी रायशुमारी 2013 के चुनावों में काम कहां आयी जब अधिकांश कार्यकर्ताओं की राय गोपाल गहलोत के पक्ष में थी लेकिन पार्टी ने पुन: सिद्धिकुमारी को ही उम्मीदवारी दी। नतीजतन गोपाल गहलोत कांग्रेसी उम्मीदवार के तौर पर पैराशूट से मैदान में उतरे। देखते हैं इस पूर्व क्षेत्र का ऊंट इस बार किस करवट बैठता है?
बात अब बीकानेर पश्चिम की कर लेते हैं जहां कांग्रेस के दिग्गज डॉ. बीडी कल्ला अपनी जीत आसान लगने के बावजूद उम्मीदवारी के लिए आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं, वहीं भाजपा के लिए भी यहां के उम्मीदवार का निर्णय आसान नहीं लग रहा।
आश्चर्यजनक ढंग से रायशुमारी में यहां से भी महावीर रांका रेस में आगे बताए जा रहे हैं। रांका के प्रबंधकीय कौशल का उल्लेख कई इसलिए भी कर रहे थे कि देवीसिंह भाटी जैसे दिग्गज की सक्रियता जहां केवल रांका के लिए नजर आ रही थी वहीं निगम के अधिकांश पार्षद रांका के लिए ही सक्रिय नजर आए। शायद इसीलिए बीकानेर पूर्व और बीकानेर पश्चिम दोनों सीटों के लिए वे अपनी दावेदारी जता सके हैं। हालांकि रांका की ऐसी सक्रियता सूबे में पार्टी के इस प्रतिकूल समय में कितनी काम आएगी, कह नहीं सकते। यह सही है कि चुनाव बिना टीम के जीतना मुश्किल होता है लेकिन अंतत: जिताते वोट ही हैंबीकानेर पूर्व का 2013 का चुनाव इसका उदाहरण है जहां सिद्धिकुमारी के साथ टीम जैसा कुछ खास नजर नहीं आ रहा था और गोपाल गहलोत के साथ लम्बी-चौड़ी टीम थी, नतीजा सबके सामने है।
बीकानेर पश्चिम को लेकर भाजपाई रायशुमारी से जो एक और बात निकल कर आई है, वह यह कि गोपाल जोशी और मक्खन जोशी दोनों ही के पोते-विजय मोहन और अविनाश जोशी-वहां पिछड़ गये। महावीर रांका के बाद विजय आचार्य ने कार्यकर्ताओं के माध्यम से अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवाई है। वहीं संघ की पैरवी के साथ दावेदारी जताने वाले जेठानन्द व्यास और कर्मचारी नेता भंवर पुरोहित भी कार्यकर्ताओं की रायशुमारी में पिछड़ कर अविनाश और विजय मोहन की पंक्ति में जा बैठे। हालांकि इसे निर्णय होना नहीं माना जा सकता। 1977 में बीकानेर शहर के लिए जनता पार्टी उम्मीदवार का निर्णय मक्खन जोशी का हो चुका था लेकिन टिकट महबूब अली ले आए थे।
भाजपा में बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि अमित शाह और वसुंधरा राजे की कुश्ती में कौन किसे पटखनी देगा या कुश्ती बराबरी पर छुटा ली जायेगी।
—दीपचन्द सांखला
18 अक्टूबर, 2018

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