Tuesday, October 30, 2018

पी बी एम अस्पताल (10 दिसंबर, 2011)

पी बी एम अस्पताल में रात फिर हंगामा हुआ। पिछले एक अरसे को देखें तो महीने में दो-एक बार तो ऐसा होता ही है। ऐसी घटनाओं के कारणों का विश्लेषण करें तो वो तात्कालिक ही पाये गये हैं, जैसे मरीज के परिजनों को लगा कि डॉक्टरी सेवाएं समय पर और व्यवस्थित मिल जातीं तो वो अपने प्रिय को नहीं खोते। अकसर ऐसा न पूरा सच होता है न पूरा झूठ। अधिकतर तो व्यवस्था ही जिम्मेदार होती है। व्यवस्था की कमी से उपजे असन्तोष पर जब बात करते हैं तो उसके कारण हमेशा तात्कालिक नहीं होते।
पी बी एम अस्पताल की बड़ी प्रतिष्ठा थी कभी। साफ-सफाई के मामले में तो ऐसी कि निस्संकोच फर्श पर कहीं भी बैठ सकते थे। डॉक्टर, नर्सिंग कर्मचारी और वार्डबॉय अपनी ड्यूटी पर हमेशा मुस्तैद दिखाई देते थे। शहर की आबादी बढ़ती गई, धीरे-धीरे व्यवस्था बिगड़ती गई। डॉक्टर और अन्य स्टाफ बढ़ने की बजाय घटने शुरू हो गये। जो डॉक्टर व अन्य कर्मचारी हैं उनमें से अधिकतर वे हैं जो अन्य छोटे-मोटे आर्थिक स्वार्थों से जन्मी बुराइयों के शिकार हो गये। इसी अस्पताल के बारे में जो आम चर्चायें है, उसकी बानगी देखिये।
  • अधिकतर बड़े डॉक्टर हद से ज्यादा प्रैक्टिस मानसिकता के हो गये, यानी अच्छी तनख्वाह के बावजूद उनकी नीयत फीस पर अटकी रहती है, केवल इतने से ही नहीं, वे बिना जरूरत की जांच लिखते हैं और उसी लेब से जांच करवाने का कहते हैं जहां से उन्हें ज्यादा कमीशन मिलता है, चाहे उस लेब की जांच विश्वसनीय है या नहीं, यह भी कि कमीशन के चक्कर में दवाइयां भी या तो बिना जरूरत की लिखेंगे या जेनरिक न लिख कर ऐसे ब्रांड या उन कम्पनियों की लिखेंगे जो कम्पनियां बड़े गिफ्ट या मोटा कमीशन, यहां तक कि डॉक्टर परिवार के लिए महंगी पर्यटन यात्रा का इंतजाम करती हैं। यह भी कि शहर से बाहर से आये मरीजों को लपकने के लिए डॉक्टरों के दलाल भी घूमते रहते हैं।
  • बड़े डॉक्टर अस्पताल की सप्ताह में एक-दो बार आने वाली दिन और रात की ड्यूटी से नदारद पाये जाते हैं। यहां तक कि आउटडोर वाले दिन भी पूरा समय वो नहीं देते। जब वरिष्ठ डॉक्टरों को इस तरह देखते हैं तो वैसा ही कुछ रेजिडेंट डॉक्टर भी करते हैं। हालांकि वरिष्ठों की इज्जत तो रेजीडेंट डॉक्टर इसलिए करते हैं कि लिखित और प्रायोगिक परीक्षाओं में उन्हें नम्बर चाहिए होते हैं। रही बात नर्सिंग और अन्य कर्मचारियों की तो वे भी जब अपने इन वरिष्ठों को देखते हैं तब उन्हीं के तौर-तरीके ही ग्रहण करते हैं। यहां तक कि वरिष्ठ डॉक्टरों को इस तरह करते देखने से नर्सिंग और अन्य कर्मचारियों में उनके प्रति सम्मान कम हो गया--कई बार तो इन कर्मचारियों के सामने वरिष्ठ डॉक्टरों को ड्यूटी करवाने के लिए निवेदन और गिड़गिड़ाने की अवस्था में भी देखा जाता है!
  • छन कर जो गंभीर बातें अस्पताल से बाहर आ रही हैं उनमें डिस्पोजेबल सुइयों का दुबारा उपयोग, वार्डों में डॉक्टरी औजारों को तरीके से स्टरलाइज न करना, यहां तक कि ऑपरेशन थिएटर के औजारों को भी तरीके से स्टरलाइज न करने की बातें बाहर आती रही हैं। हो सकता है उपरोक्त बातें पूरी सच ना हों लेकिन आम लोगों में इस तरह की चर्चा होना इस बात का संकेत करती है कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है और इस तरह की बातों को सुन-सुन कर ही आम आदमी का असन्तोष मौके-बे-मौके फूट पड़ता है। सरकार को भी चाहिए कि कम से कम आम सार्वजनिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य और पुलिस व्यवस्था में विशेषज्ञों, अधिकारियों और कर्मचारियों के खाली पदों को प्राथमिकता से भरे?
--दीपचंद सांखला
10 दिसंबर, 2011

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