Friday, October 26, 2018

मीडिया पर नियंत्रण कितना जरूरी (15 नवंबर, 2011)

भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू के हाल के बयानों-साक्षात्कारों और राजस्थान के भंवरी प्रकरण में कुछ न्यूज चैनलों द्वारा अंतरंग संबंधों से संबंधित सीडी के चौबीस घंटे दिखाए गए कुछ अंशों को लेकर एक बार फिर इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि क्या मीडिया पर नियंत्रण की आवश्यकता है? यदि नियंत्रण हो भी तो किस हद तक हो? सरकारी हो अथवा स्वनियंत्रण हो? अब तक की व्यवस्था के अनुसार प्रेस परिषद् प्रिंट मीडिया पर नियंत्रण रखती है। हालांकि यह नियंत्रण कितना प्रभावी है, इसे बढ़ाया जाना चाहिए अथवा नहीं, यह अलग से बहस का विषय है। पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया तो प्रेस परिषद् के इस नाम भर के नियंत्रण के दायरे में भी नहीं आता।
पिछले दिनों राज्य में ढाई माह से चल रहे एएनएम भंवरी देवी के लापता होने के प्रकरण से जुड़ी कुछ सीडी प्रकाश में आई। इसमें से भंवरीदेवी और इसी मामले में बर्खास्त हुए राज्य के कैबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा के अंतरंग संबंधों को दर्शाती सीडी के अंश कुछ न्यूज चैनलों ने लगभग चौबीस घंटों तक लगातार प्रसारित किए। टीवी दर्शकों में इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। केन्द्र सरकार ने इस मामले में दो टीवी चैनलों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किए। अंतरंग दृश्यों के लगातार प्रसारण से क्रुद्ध मदेरणा समर्थकों ने जोधपुर में मीडिया कर्मियों से मारपीट भी की। प्रेस पर टिप्पणियां की गई।
मारपीट को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन यह घटना इस मुद्दे पर चर्चा का आधार तो बन ही गई। किसी भी अनैतिक कृत्य अथवा आपराधिक घटना के सम्पादित व सीमित दृश्य लगातार दिखाया जाना कहां तक उचित है? ऐसे कृत्यों को जनता के सामने लाने में क्या शोभनीय है क्या अशोभनीय, इसका ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए या नहीं? चैनल की टीआरपी बढ़ाने के नाम पर ऐसे दृश्यों के समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए? टीआरपी की यह होड़ इलैक्ट्रॉनिक मीडिया तक ही सीमित नहीं है। बदले हुए रूप में और कहीं कहीं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से मुकाबले के तौर पर प्रिंट मीडिया के स्वरूप में भी निरंतर बदलाव हो रहा है। पूरे मीडिया में ही सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय मुद्दे कहीं नेपथ्य में जा रहे हैं। इनका स्थान मनोरंजक या अशोभनीय सामग्री लेती जा रही है। ऐसे में यह बहस और तेज होनी चाहिए कि सम्पूर्ण मीडिया को कैसे उत्तरदायी बनाया जाए? क्या यह काम स्व-नियंत्रण से हो सकता है या सरकारी नियंत्रण से?

                                                    --दीपचंद सांखला
                                                    15 नवंबर, 2011

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