Tuesday, October 30, 2018

मुश्ताक, मेघवाल और गहलोत (3 दिसंबर, 2011)

गोविन्द मेघवाल और गोपाल गहलोत कल अपने कुछ हित चिन्तकों के साथ बैठे और यह तय किया कि बाबा साहेब अंबेडकर के निर्वाण दिवस 6 दिसंबर से दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के लिए मिल कर काम करेंगे। मुश्ताक भाटी की अध्यक्षता ने इस कॉम्बो को पूरा भी किया।
दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बात करें तो यह कॉम्बो बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकता है। जिले की सात में से तीन लूनकरणसर, श्रीडूंगरगढ़ और नोखा के विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दें तो बाकी की चार विधानसभा सीटों बीकानेर पूर्व, बीकानेर पश्चिम, कोलायत और खाजूवाला के समीकरणों को गड़बड़ाने का माद्दा यह कॉम्बो रखता है। केवल गड़बड़ाने का ही नहीं--समीकरणों को बदलने का काम भी यह तीनों कर सकते हैं। बशर्ते यह तीनों ही अपनी-अपनी छवियों को एक समयबद्ध योजना के तहत ठीक-ठाक करने-करवाने की ठान लें।
इन तीनों ने कुछ तो अपनी करतूतों से और कुछ इन तीनों के विरोधियों ने बहुत ही सफाई से इनकी छवियों को लगातार धूमिल किया है। वो भी तब जब आज की राजनीति में सर्फ ऐक्सेल और टाइड से धुली कमीज पहने कम ही नेता मिलते हैं। लगभग सभी की कमीज पर कोई न कोई दाग है, जिन्हें धोना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि किसी के यह दाग अनैतिक या आर्थिक है और किसी के दबंगई के। क्योंकि हमारे यहां अनैतिक और आर्थिक दागों को नजरअंदाज करने का चलन है लेकिन दबंगई के दागों को नजरअंदाज करने का चलन फिलहाल नहीं है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इस तरह की दागी राजनीति का कतई समर्थन नहीं है। लेकिन जिस परिदृश्य और क्षेत्र की बात करेंगे तो जो कुछ भी और जैसा भी वहां है, उन्हीं सन्दर्भों में ही बातचीत हो सकती है।
जातीय जनगणना के परिणामों के हवाले से जिक्र पहले भी किया है। उसी के संभावित आंकड़ों की रोशनी में बात करें और कोई बड़ा राजनैतिक दल इस कॉम्बो को मान्यता दे दे तो कोलायत, खाजूवाला, बीकानेर, पूर्व और पश्चिम इन चारों ही विधानसभा क्षेत्रों में कइयों के जमे जमाए ठाठे बिखर सकते हैं।
यह बात हवा में इसलिए नहीं है कि उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में इसी तरह की सोशल इंजीनियरिंग के चलते मायावती ने लगभग चामत्कारिक पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना ली थी।
--दीपचंद सांखला
3 दिसंबर, 2011

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