मौसम विभाग के अनुसार सोमवार के दिन की बारिश अट्ठासी मीमी दर्ज की गई है।
सैंतालीस-अड़तालीस की सूखी तपन के बाद जो शहर बारिश की पुरजोर उडीक रखता हो उसके लिए तो यह मौसम सन्तोष और आनन्द का दाता होना चाहिए। जबकि वो ही बारिश थोड़ी ज्यादा होने पर अधिकतर शहरियों को ‘बसकर-बसकर’ कहने को मजबूर कर देती है।
पिछले सत्तर-पचहत्तर सालों में जब से पानी नलों के द्वारा मोहल्लों-घरों तक पहुंचने लगा है तब से ही पानी के साथ पराये का सा बरताव होने लगा है। इससे पहले लगभग सभी पक्के घरों में बारिश के पानी को सम्हाल कर रखने की छोटी-मोटी व्यवस्था जरूर रहती थी। अलावा, शहर में इस पानी को सहेजने के लिए परकोटे में जसोलाई तलाई और फरसोलाई तलाई थी तो परकोटे से बाहर चारों और कई तालाब थे।
पानी नल से आने लगा तो नालियों की जरूरत बनी, और फिर नालियों को निकासी देने के लिए सिवर लाइनें डाली गई। घरों में शौचालय बनने लगे। पानी को घड़ों-मटकों में लाना नहीं है तो उसके प्रति बेकद्री और लापरवाही बढ़ी। समाज को सुविधाएं मिली उस पर एतराज किसी को नहीं है, हो भी नहीं सकता। लेकिन बिना सावधानी के सुविधाएं एक समय बाद असुविधा का बड़ा कारण बन जाती है। इन नालियों और सिवर लाइनों के लिए कैरी बैग, प्लास्टिक की थैलियां और डिस्पोजेबल अभिशाप का काम करते हैं। और अब तो इस शाप को बारिश के बिना भी आये दिन भुगतता है यह शहर।
---- मंगलवार, 6 सितम्बर, 2011
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