Friday, April 21, 2017

क्या यूं ही लगते रहेंगे जाम? (24 सितम्बर, 2011)

बीकानेर शहर में वाहनों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसके साथ इन वाहनों के आवागमन को नियंत्रित रखने की व्यवस्था में इजाफा नहीं हो पाया। नतीजा यह है कि आये दिन सड़क हादसों में शहर के बाशिंदों की जानें जाती रहती हैं। नागरिकों का रोष भीमसानिया वैराग की तरह उफान लेता है, दुर्घटनास्थल पर जाम लगा दिए जाते हैं। पुलिस-प्रशासन का अमला मौके पर पहुंचता है और समझाइश के बाद स्पीड ब्रेकर बनवाने के आश्वासन पर मामला तो तात्कालिक रूप से समाप्त हो जाता है लेकिन दुर्घटनाओं में अकाल मौतों का सिलसिला जारी रहता है।
पिछले तीन दिनों में जयपुर रोड पर और नागणेचीजी मन्दिर के पास हादसों को लेकर यातायात अवरुद्ध किया गया और स्पीड ब्रेकर बनवाने के आश्वासन पर मामला शांत हुआ। हाल के दिनों में राजमार्ग नं. 15 पर पंडित धर्मकांटे के पास भी दुर्घटना के बाद यही सब कुछ दोहराया गया।
पर समस्या का समाधान स्पीड ब्रेकर बना देने भर से होने वाला नहीं है। शहर के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ट्रक-बस जैसे भारी वाहनों की आवाजाही निर्बाध रूप से होती है। पवनपुरी, करणीनगर-गांधीनगर जैसे क्षेत्रों में दुर्घटनाओं के बाद गाहे-बगाहे भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाई जाती रही है। यह रोक कुछ दिन ही प्रभावी रहती है। फिर ऐसी मांग उठाने वाले भी भूल जाते हैं और प्रशासन तो जैसे अपने ही आदेशों को भूलने को तैयार ही बैठा हो। नतीजतन उन्हीं स्थानों पर दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहती है।
यदि सचमुच में ही पुलिस प्रशासन को दुर्घटनाओं की चिंता है तो दुर्घटना-संभावित इलाकों को चिह्नित कर स्पीड ब्रेकर जैसे शुरुआती कदम तो उठाए ही जाएं, कहीं आवश्यकता हो तो यातायात पुलिस भी तैनात की जाए। एकतरफा यातायात और भारी वाहनों के प्रवेश को पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से प्रतिबंधित करने के कदम भी आवश्यकतानुसार उठाए जाएं। शहरी सीमा में वाहनों की गति सीमा तय है लेकिन मुख्य मार्गों ही नहीं, मोहल्लों-कॉलोनियों की अंदरूनी सड़कों तक पर 70-80 किलोमीटर की गति से फर्राटे से वाहनों का गुजरना आम बात है।
यह गति सीमा तोड़ने के लिए शायद ही किसी का चालान हुआ हो। सीमा से अधिक गति से दौड़ते वाहन ही दुर्घटना का बड़ा कारण हैं। वाहन चालक तो दूर अधिकांश यातायात पुलिस कर्मियों को भी इस गति सीमा का शायद ही इल्म हो। पुलिस प्रशासन के साथ नागरिकों का भी कर्तव्य है कि वे बढ़ते शहरीकरण के अनुरूप सड़क पर चलने की अपनी आदतों में बदलाव लाएं, खुद को वाहन चालक के साथ दुर्घटना-पीड़ित की मनःस्थिति में रखकर कभी-कभी मनन भी करें। पुलिस-प्रशासन के साथ नागरिकों के सहयोग के बगैर दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के प्रयास कामयाब नहीं होंगे।

वर्ष 1 अंक 31, शनिवार, 24 सितम्बर, 2011

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