Friday, April 28, 2017

देवीसिंह भाटी / महिपाल मदेरणा (17 अक्टूबर, 2011)

देवीसिंह भाटी
देवीसिंह भाटी की सार्वजनिक जीवन में पहली सक्रियता शहर के लोगों ने इमर्जेंसी के तुरंत बाद 1977 के लोकसभा चुनावों में देखी। तब वे अपने क्षेत्र कोलायत में कांग्रेस विरोध का झंडा पूरी तन्मयता और सधे हुए अंदाज में उठाए हुए थे।
1977 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनावों में जनता लहर के चलते कोलायत विधानसभा क्षेत्र से बिना किसी जातीय आधार के एडवोकेट रामकृष्णदास गुप्ता विजयी हुए। आर. के. दास ने इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव की नौबत इसलिए नहीं आई कि केन्द्र की जनता सरकार खुद गिर गई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी के बाद केंद्र की पहली जनता सरकार की तर्ज पर राज्यों की जनता सरकारों को कांग्रेस सरकार ने गिरा दिया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में आज तक कोलायत से देवीसिंह भाटी ही विधायक हैं।
और तब से कोलायत की नुमाइंदगी कोई पार्टी नहीं देवीसिंह भाटी ही करते रहे हैं। भाटी पर व्यवहार संबंधी आरोपों के साथ-साथ जमीन संबंधी बड़े आरोप भी लगते रहे हैं, एक से अधिक बार हुई बड़ी पारिवारिक दुर्घटनाओं के समय भी भाटी की परिपक्वता लोगों में चर्चा का सबब बनी।
लेकिन अनैतिक कार्यों को लेकर चर्चा में आए जस्सूसर गेट क्षेत्र मंदिर प्रकरण में कल भाटी को लगभग बैकफुट होना पड़ा। राजनीति में हमेशा सधे कदमों से चलने वाले भाटी के लिए यह स्थिति मनन और उनके समर्थकों के लिए विचार की बनती है।
भाटी के एजेन्डे में क्या नैतिकता अब सर्वोपरि है? और अगर है तो उन्हें अनैतिक कार्यों की एक लंबी सूची भी बनानी होगी। क्या स्त्री देह का व्यापार ही अनैतिक कार्य में आता है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है किविनायक किसी भी बिना पर और किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य के पक्ष में नहीं है।
जो नीति से चालित है वह नैतिक है और शब्दकोश में नीति की व्याख्या इस प्रकार से ह्ंैरलोकाचार की वह पद्धति जिससे अपना कल्याण तो हो और दूसरे को हानि पहुंचे। और जब नैतिक-अनैतिक की बात करते हैं तो उसका मतलब भी हमें और भाटी को उसी व्याख्या से ही निकालना होगा।
अगर ऐसा होगा तो आज की राजनीति और आज का व्यापार, दोनों ही दांव पर तो होंगे पर लक्षण वह शुभ होगा।
महिपाल मदेरणा
महिपाल मदेरणा को आखिरकार सरकार ने मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। राजनीति में बर्खास्तगी के इस कलंक से बचने के लिए बर्खास्तगी के बाद इस्तीफा देकर असफल कोशिश भी मदेरणा ने की। पुरुष प्रधान समाज में इस प्रकरण के चलते बिना इस जानकारी में रुचि के, कि भंवरी देवी जिंदा है तो किन परिस्थितियों में होगी और जो लांछन उस पर लग रहे हैं उसकी पात्र वो क्यों बनी? इस प्रकरण की चर्चा करने वालों में अधिकांशतः भंवरी देवी का नाम चटखारों के साथ ही लिया जा रहा है। अगर मदेरणा पर आरोप साबित होते हैं तो इस बहाने ही सही समाज को नैतिक-अनैतिक की व्याख्या दुबारा और नैतिक-अनैतिक कार्यों की पहली सूची तो बना ही लेनी चाहिए।

वर्ष 1 अंक 50, सोमवार, 17 अक्टूबर, 2011

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