मास्टर प्लान से
लेकर राज्य सरकार द्वारा रेलवे को भेजे एमओयू के प्रारूप तक की असलियत
कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान के लिए बीकानेर शहर पिछले पचीस
वर्षों से उद्वेलित है। अपने हितों को लेकर यह हमेशा से लापरवाह रहा है। शहर की इस
सबसे बड़ी समस्या का समाधान ना हो पाने के लिए कोई और नहीं वह स्वयं ही जिम्मेदार
है। एलिवेटेड रोड जैसे हो सकने वाले व्यावहारिक समाधान का कुछ अविवेकी और घोर
स्वार्थी व्यापारी विरोध कर रहे हैं। इस तरह सरकार को काम ना करने का एक बहाना
लगतार हम देते रहे हैं।
इस समस्या को सबसे पहले उठाने और 1991 में लम्बा आन्दोलन चलाने वाली 'जनसंघर्ष समिति' तत्कालीन
कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार के रेलमंत्री सीके जाफर शरीफ और भाजपानीत प्रदेश के मुख्यमंत्री
भैरोंसिंह शेखावत द्वारा 23 जनवरी 1992 को दिए जुमले पर आज भी कुण्डली मारे बैठी हुई
है। बिना यह समझे कि तब उन शासकों का मंतव्य लालगढ़-बीकानेर के रेल लाइन टुकड़े का
शान्ति से गेज परिवर्तन करवाना भर था। इसलिए बायपास के तौर पर शहरियों को चूसते
रहने के लिए खुद का ही अंगूठा वे मुंह में दे गये। कुछ मौजिज और नादान शहरी इस
समस्या के लगातार विकराल होने से लहूलुहान होते अपने अंगूठे को आज भी चूसने से बाज
नहीं आ रहे हैं। इस देश में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है कि किसी शहर की यातायात
समस्या के समाधान के लिए रेल लाइन बायपास से निकाली गई हो। जोधपुर शहर, जिससे विकास के मामले में बीकानेर सर्वाधिक
ईर्ष्या रखता है, उसके बीच से रेल
लाइन निकलती है और उन्होंने अब तक सभी रेलवे क्रॉसिंगों पर अण्डर ब्रिज-ओवरब्रिज
बनवा लिए और हम हैं कि जैसलमेर के रियासती शासकों की तर्ज पर 'खड़ा सिक्का' लेने की जिद पर अड़े हुए हैं? बीकानेर के बाशिन्दों को अब तो समझ ही लेना चाहिए कि ये
राजनेता (चाहे वे किसी भी पार्टी के हों) अपना उल्लू सीधा करवाने को जनता में कोई
जुमला फेंकते हैं और जनता लपक कर बिना अपना हित-अहित विचारे उस पर कुण्डली मार बैठ
जाती है। दोनों बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं ने बायपास का जुमला संयुक्त रूप से
फेंका और हम अब तक वहीं अटके हैं, बिना यह समझे कि जुमले तो जुमले होते हैं।
कोटगेट क्षेत्र यातायात समाधान के लिए बनी उक्त जनसंघर्ष
समिति बायपास के लिए 1976 में बीकानेर शहर
के लिए तैयार हुए जिस मास्टर प्लान का हवाला देती है, पहले तो उसके प्रारूप के हवाले से ही विचार कर
लेते हैं :—
मास्टर प्लान की
असलियत
— मास्टर प्लान में इस समस्या के समाधान के लिए
रेल बायपास का सुझाव तो जरूर दिया गया है, साथ ही इसके क्रियान्वयन के लिए उक्त प्लान में जो सुझाव दिए गए हैं उन्हें
जनता के सामने वे क्यों नहीं लाते जिस मास्टर प्लान के बहाने बायपास की वे दुहाई
देते हैं।
— उक्त प्लान में यह साफ सुझाया गया है कि
बीकानेर जं. के वर्तमान स्टेशन को पूरी तरह हटाना होगा और इसके एवज में घड़सीसर और
मुक्ताप्रसाद नगर में नये रेलवे स्टेशन बनाए जाएंगे। रेल बायपास हेतु मास्टर प्लान
के सुझाव में वर्तमान बीकानेर जं. को हटाने और दो नये स्टेशन बनाने के इन सुझावों
को बायपास की पैरवी में मास्टर प्लान का सहारा लेने वाले छिपाते रहे हैं। शहर के
बाशिन्दे क्या इस स्टेशन बदलाव के लिए तैयार हैं? सभी जानते हैं कि इन मास्टर प्लानों की दुर्गत वही होनी है
जो दुर्गत चुनावों के बाद चुनावों से पहले जारी होने वाले राजनीति पार्टियों के
घोषणापत्रों की होती है। उक्त उल्लेखित मास्टर प्लान में ऐसे कई प्रावधान हैं जो
शहर के लिए जरूरी होंगे लेकिन जिन पर आज तक कुछ नहीं हुआ। कोई आन्दोलन भी नहीं
हुआ। बानगी के लिए मास्टर प्लान से कुछेक सुझाव प्रस्तुत हैं—
— मास्टर प्लान में यह कहा गया है कि नोखा रोड,
पूगल रोड और करमीसर रोड पर अग्निशमन केन्द्र
सहित अन्य नगरीय सुविधाएं विकसित होंगी। नोखा रोड, पूगल रोड सहित जयपुर रोड पर आज तक इस तरह की सुविधाएं
विकसित नहीं की गई हैं, आए दिन आग्नेय दुर्घटनाएं होती हैं और शहर भुगतता है।
— मास्टर प्लान में शहर के चारों ओर परिधि
नियंत्रण क्षेत्र की आवश्यकता जताई गई है। तत्समय शहर की चारों दिशाओं में अलग-अलग
2 से 5 किमी चौड़े सुरक्षित क्षेत्र इसलिए छोड़े जाने
की जरूरत मास्टर प्लान में बताई गई ताकि कृषि, पशुपालन, जंगलात, बागवानी, मुर्गीपालन आदि का विकास शहर में सुचारु हो। पर्यावरण को
बचाए रखने के ये प्रावधान आज 40 वर्षों बाद भी
जमीन पर कहीं दिखाई नहीं देते। क्या किसी ने इस पर आवाज भी उठाई?
— सड़क यातायात को सुचारु रखने हेतु रिंग रोड का
प्रावधान भी उक्त मास्टर प्लान में है। उक्त मास्टर प्लान के क्रियान्वयन की अवधि 1996 मानी गई थी। बावजूद इसके आज तक इसका वह टुकड़ा
बनना बाकी है जो जोधपुर की ओर जाने वाले मार्ग पर उदयरामसर को जैसलमेर वाले मार्ग
पर नाल से जोड़ेगा। इतना ही नहीं, जुलाई 2012 में जब इस टुकड़े के निर्माण का तब के कोलायत
विधायक देवीसिंह भाटी ने विरोध किया और काम रुकवा दिया तब भी किसी ने भाटी को यह
बताने की जरूरत नहीं समझी कि यह निर्माण कार्य मास्टर प्लान के अनुसार हो रहा है।
हुआ यह कि शहर के लिए महती जरूरत की इस सड़क का निर्माण आज तक रुका पड़ा है,
इसके अभाव में भारी वाहन मोहता सराय क्षेत्र से
गुजरते हैं और आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं।
वर्ष 1980 से शहर में नेतागिरी करते हुए विधानसभा और प्रदेश की सरकार में कई बार
नुमाइंदगी कर चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. बीडी कल्ला जब-तब रेल बाइपास की पैरवी
करते हुए अपनी सरकार द्वारा इसके लिए किए गए 60 करोड़ रुपये के प्रावधान का उल्लेख करते रहते हैं। लेकिन
राज्य सरकार की ओर से जनवरी, 2005 में एमओयू का जो ड्राफ्ट रेलवे को भेजा गया उसे जानकर शहर के बाशिन्दे बिदक
जाएंगे। कृपया एमओयू ड्राफ्ट के नीचे दिए गये मुख्य बिन्दुओं पर
गौर करें [ सन्दर्भ : मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) उत्तर-पश्चिम रेलवे,
जयपुर जोनल कार्यालय
द्वारा रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक (वर्क्स) को लिखा पत्र क्रमांक nwr/s&c/w.623/bkn/bypass दिनांक 19.01.2005]
राज्य सरकार
द्वारा रेलवे को भेजे गये एमओयू के प्रारूप की असलियत
— वर्तमान बीकानेर जं. यहां से हटा दिया जाय तथा
लालगढ़ को ही बीकानेर का मुख्य स्टेशन बना दिया जाए। लालगढ़ से कोलायत की ओर जाने
वाली रेल लाइन को 11 किमी के रेल
बायपास के द्वारा जोधपुर की ओर जाने वाली रेल लाइन से उदयरामसर मेें मिला दिया
जाए। उ. प. रेलवे के जयपुर जोनल कार्यालय ने अपनी टिप्पणी में बीकानेर रेलवे
स्टेशन को हटाने से इनकार कर दिया था।
— रेल विभाग का इसमें यह भी कहना था कि राज्य
सरकार के उक्त प्रस्ताव में बीकानेर से श्रीडूंगरगढ़ की ओर जाने वाली रेललाइन को
उदयरामसर तक जोड़ने का कोई उल्लेख नहीं है। राज्य सरकार ने अपने एमओयू में यह चाहा
था कि श्रीडूंगरगढ़ की ओर से बीकानेर आने वाली लाइन का जो आमान परिवर्तन होना है
उसे बीकानेर तक न लाकर उदयरामसर में ही मिला दिया जाए। 16 किमी लम्बी रेललाइन का यह जोड़ वन विभाग की भूमि में से
गुजरना था। ऐसे में यह बायपास कुल 27 किमी में पूरा होना था जब कि राज्य सरकार का प्रस्ताव मात्र 11 किमी. का ही था। रेलवे ने इससे भी इनकार कर
दिया।
— उक्त ड्राफ्ट एमओयू में राज्य सरकार ने यह भी
चाहा था कि लालगढ़ के वर्तमान रेलवे वर्कशॉप को बीकानेर स्थानांतरित कर दिया जाए
ताकि बीकानेर-लालगढ़ के मध्य की वर्तमान रेललाइन को हटाये जाने पर मीटर गेज डब्बों
के मरम्मत कार्य में बाधा ना आए। जाहिर है राज्य सरकार की मंशा यही रही होगी कि
वर्तमान बीकानेर जं. स्टेशन हटाकर रेलवे अपने खर्च पर वर्कशॉप वहां स्थानान्तरित
कर ले। क्योंकि रेलवे के पास बीकानेर में इसके अलावा कोई स्थान भी नहीं हैं। रेलवे
ने इससे भी इनकार कर दिया।
इन दो बड़े कारणों के अलावा अन्य कई छिटपुट सहमति-असहमति की टिप्पणियों के साथ
रेलवे के जयपुर जोनल कार्यालय ने उपरोक्त सन्दर्भित पत्र के द्वारा बायपास निर्माण
पर जो रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भिजवाई उसके इस वाक्य पर शहरवासी कृपया गौर करें : "हमें इस निर्माणकार्य को अपनी पिंकबुक से हटा लेना चाहिए क्योंकि यह कार्य
व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता।" रेलवे अधिकारी यह भी बताते हैं कि रेलवे ने राज्य
सरकार की 60 करोड़ की वह रकम कभी की लौटा दी है। रेलवे द्वारा तब बन्द इस बीकानेर रेल बायपास
प्रकरण पर कभी फिर पुनर्विचार किया हो, जानकारी में नहीं।
मास्टर प्लान 1976 के बायपास
प्रावधानों तथा राज्य सरकार के एमओयू प्रारूप के उपरोक्त दिये गये तथ्यों पर गौर
कर बीकानेर के बाशिन्दे विचारें कि उक्त दोनों प्रस्तावों के प्रावधानों पर क्या
वे सहमत हो सकते हैं, दोनों में ही
वर्तमान बीकानेर स्टेशन को हटाए जाने की बात है। और यह भी कि जो यह भ्रम फैलाया जा
रहा है कि रेलवे रेल बायपास के लिए तैयार है, वह भी उक्त पत्र की भाषा से नहीं लगता।
आरयूआईडीपी द्वारा 2005-06 में बनाई गई एलिवेटेड रोड योजना पर यहां के बाशिन्दों
को पुन: विचार कर लेना चाहिए। इस योजना को भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय के
सेवानिवृत्त अभियन्ता अजीतसिंह की देखरेख और बीकानेर के अभियन्ता अशोक खन्ना और
हेमन्त नारंग के सहयोग से बनाया गया जिसमें रेलवे के अभियन्ता एनके शर्मा की
सलाह-सहयोग भी महत्त्वपूर्ण रहा है। कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का यही
सर्वाधिक व्यावहारिक समाधान है जिसमें इसके निर्माण क्षेत्र की किसी निजी सम्पत्ति
को ना तोड़ा जाना है और ना ही अधिग्रहण किया जाना है।
पाठकों की सुविधा के लिए एक बार पुन: उस प्रोजेक्ट की
जानकारी साझा कर रहे हैं-लगभग 26 फीट चौड़ाई की यह डबललेन एलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड स्थित रिखब मेडिकल
स्टोर वाले बड़े चौक से चढ़कर फड़बाजार चौराहे से सांखला फाटक की ओर घूमनी है।
वहां से नागरी भण्डार तक पहुंचकर दो शाखाओं में विभक्त होकर एक शाखा रेलवे स्टेशन
जाने वाले यातायात के लिए मोहता रसायनशाला के आगे उतरेगी तो दूसरी शाखा अन्दरूनी
शहर की ओर जाने वालों के लिए फोर्ट स्कूल के पास राजीव मार्ग पर।
एलिवेटेड रोड की इस आरयूआईडीपी योजना में थोड़ा परिवर्तन
करके बजाय मोहता रसायनशाला तक ले जाने के, ग्रीन होटल के आगे उतारा जा सकता है, इससे एक सुविधा यह होगी कि इससे गंगाशहर से
बिस्किट गली होकर आने वाले इकतरफे यातायात को एलिवेटेड रोड की सुविधा बिना बाधा के
हासिल हो जायेगी।
इस योजना के लिए कई नकारात्मक बातें फैलाई जा रही हैं। पहली यह कि इसके
निर्माण के बाद सांखला फाटक को दीवार बनाकर हमेशा के लिए रेलवे बंद कर देगा। लेकिन
यह नहीं बताया जा रहा है कि रेलवे ऐसा किन स्थिति में करेगा और किस स्थिति में
नहीं। रेलवे का यह कायदा है कि एलिवेटेड रोड या रेलवे ओवरब्रिज, अण्डरब्रिज के निर्माणकार्य में रेललाइन के ऊपर
या नीचे के हिस्से का निर्माणकार्य सुरक्षा सावचेती के चलते रेलवे खुद करवाता है।
इसमें रेलवे के मानदंड हैं कि स्थानीय प्राधिकरण या राज्य सरकार रेलवे क्षेत्र के
उक्त निर्माणकार्य का भुगतान करना स्वीकार कर लेते हैं तो रेलवे उस रेलवे क्रॉसिंग
को यथावत रखता है अन्यथा उसे हमेशा के लिए बन्द कर देता है। रेलवे का व्यावहारिक
तर्क है कि जब एलिवेटेड रोड या रेलवे ओवरब्रिज के ऊपरी हिस्सों के निर्माण का पैसा
विभाग ने लगा दिया तब वह क्यों द्वारपालों की तनख्वाह भुगते और क्यों उस फाटक का
मेंटीनेंस भुगते। 2006-07 में बनी योजना
अनुसार स्थानीय एलिवटेड रोड लगभग एक किलोमीटर का बनना है जिसका पूरा खर्च राज्य
सरकार को केन्द्र से मिले 135 करोड़ के बजट से
वहन करना है। ऐसे में सांखला फाटक पर रेलवे परिधि के लगभग 10 मीटर के निर्माण कार्य का खर्च वहन करने में राज्य सरकार
को क्या आपत्ति होगी। यह कुल खर्च के सौवें हिस्से से भी कम होगा। यदि ऐसा होता है
तो रेलवे फिर सांखला फाटक को दीवार खींच कर बंद नहीं कर सकेगा। इसके लिए ना केवल
क्षेत्र के व्यापारियों और बाशिन्दों को सावचेत रहना होगा बल्कि यहां के
जनप्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि इस एलिवेटेड रोड के लिए जब रेलवे के
साथ एमओयू हो तब इस क्रॉसिंग को सुचारु रखने का प्रावधान करवाए।
इसी तरह एक भारी भ्रम वर्तमान में इसलिए फैल रहा है कि राज्य सरकार ने इस
एलिवेटेड रोड के निर्माण के लिए पुन: सर्वे करवा दुबारा योजना बनाने का एनएचएआई को
कह दिया। एनएचएआई (राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) को चूंकि काम दिया गया तो वह
इसकी पात्रता तभी रखेगा जब एलिवेटेड रोड को दो नेशनल हाइवे को या उसके दो सिरों से
जोड़े। ऐसे में एनएचएआई वर्तमान में जो सर्वे कर रहा है वह दीनदयाल सर्किल से रानी
बाजार सर्किल तक संभवत: इसलिए कर रहा है कि ये दोनों सर्किल नेशनल हाइवे के हैं।
ऐसे में जब दो नेशनल हाइवे को एलिवेटेड रोड से जोड़ा जाना है तो फिर उन्हें गजनेर
रोड ओवरब्रिज की तरह कम से कम फोरलेन एलिवेटेड रोड से जोड़ना ही उन्हें तार्किक
लगता होगा। जबकि कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान के लिए 2006-07 में आरयूआईडीपी द्वारा बनाई योजना ही पर्याप्त
है। वह इसलिए कि एक तो इस क्षेत्र के यातायात में बढ़ोतरी का चरम आ गया इसलिए
भविष्य में यहां के यातायात में से कोई गुणात्मक बढ़ोतरी नहीं होनी है, दूसरा, इस क्षेत्र से लगभग 500-500 मीटर की दूरी पर
बने तीनों ओवरब्रिज—गजनेर रोड एनएच
पर फोरलेन, रानी बाजार एनएच पर
फोरलेन और चौखूंटी टू लेन—पर यातायात
सुचारु रूप से जारी है। इस तरह वर्तमान में इस नये सर्वे तथा आयोजना का खर्च
फिजूलखर्ची ही है। लेकिन सरकारी कामों में इस तरह की फिजूलखर्चियों की कौन परवा
करता है। हां, जनप्रतिनिधि
सावचेत होते तो इस फिजूलखर्ची से बचा जा सकता था। वहीं दूसरी ओर सर्वे क्षेत्रों
में जो विरोध का आक्रोश फैल रहा है उससे भी बचा जा सकता था।
2006-07 में बनी एलिवेटेड रोड योजना इसलिए भी आदर्श है कि इसमें ना
किसी की एक इंच निजी भूमि अधिग्रहित होनी है और ना ही किसी भवन का एक इंच हिस्सा
टूटना है। इसी तरह 2006-07 की उस एलिवेटेड
रोड योजना से क्षेत्र के व्यापारियों को व्यापार घटने की जो शंका है वह निर्मूल इसलिए
है कि अभी जो 70 प्रतिशत यातायात
महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड को केवल आवागमन के तौर पर उपयोग कर भीड़ बढ़ाता
है वह एलिवेटेड रोड से सीधे गुजर जाएगा। ऐसे में इन बाजारों के जो असल खरीददार हैं
उन्हें खरीददारी के लिए न केवल पर्याप्त सहूलियत मिलेगी बल्कि उन्हें वाहन
पार्किंग का पर्याप्त स्थान भी मिल जायेगा। इसलिए क्षेत्र के व्यापारियों को इस
एलिवेटेड रोड योजना पर सकारात्मक रुख अपना लेना चाहिए।
राजस्थान पत्रिका
का एलिवेटेड रोड समाधान पर ब्लैक आउट आश्चर्यजनक
शहर में सर्वाधिक प्रसारित दैनिकों में से एक 'राजस्थान पत्रिका' के 30 मार्च 2017 के अंक में इस समस्या से संबंधित एक पृष्ठीय
सामग्री से भी शहर के बाशिन्दें भ्रमित हुए हैं। इसमें ना उपरोक्त उल्लेखित मास्टर
प्लान की हकीकत दी गई और ना रेलवे के 2005 के उस एमओयू की हकीकत का उल्लेख है जिसमें रेलवे ने बायपास को खारिज कर दिया
है।
ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि वर्ष 2005 के बाद रेलवे और राज्य सरकार के बीच इस समस्या को लेकर कोई नई एक्सरसाइज हुई
हो। एलिवेटेड रोड पर रेलवे इसलिए मौन है कि वह आधिकारिक तौर पर तभी कुछ कहेगा जब
राज्य सरकार का इस संबंध में प्रस्ताव आयेगा। हालांकि व्यक्तिगत बातचीत में एक
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी एलिवेटेड रोड को ही सर्वाधिक उपयुक्त और व्यावहारिक समाधान
मान रहे हैं। यही अधिकारी पिछले 10 से ज्यादा
वर्षों से रेलवे की तरफ से इस प्रकरण को डील कर रहे हैं। इस तरह उक्त पृष्ठ पर दी
गई 'पत्रिका' टिप्पणी भ्रामक प्रतीत होती है जिसमें कहा गया
है कि रेलवे का मानना है कि कोटगेट और सांखला फाटक की समस्या के लिए अण्डरब्रिज,
एलिवेटेड रोड और बायपास तीनों प्रस्ताव उपयुक्त
हैं। यहां यह स्पष्ट कर दें कि रेलवे द्वारा ओवरब्रिज को उपयुक्त न मानने को
एलिवेटेड रोड को खारिज करना ना समझा जाए, दोनों के तकनीकी आधार अलग-अलग हैं।
बायपास के बहाने एलिवेटेड रोड का विरोध करने वालों की तरफ से यह भी कहा जा रहा
है कि एलिवेटेड रोड बनने से बीकानेर जं. रेललाइन के दोहरीकरण और विद्युतीकरण से
वंचित हो जाएगा। एलिवेटेड रोड बनने से विद्युतीकरण के काम पर तो कोई आंच नहीं आनी
है, तमाम ओवरब्रिजों और
एलिवेटेड रोड के नीचे से रेलवे की विद्युत लाइनें निकलती ही हैं। रही रेल लाइन के
दोहरीकरण की बात, तो
बीकानेर-लालगढ़ स्टेशन के बीच की रेललाइन लगभग पौने चार किमी की ही है, यदि यह लाइन सिंगल रहकर शेष का दोहरीकरण होता
है तो इस छोटे टुकड़े का सिंगल ट्रेक रहने से गाड़ियों के संचालन में कोई खास बाधा
नहीं आनी है।
पत्रिका के उस एक पृष्ठीय आयोजन में दूसरी बड़ी कमी यह रही कि 2006-07 में बनी उस एलिवेटेड रोड योजना का कोई उल्लेख
तक नहीं जिस पर स्वयं पत्रिका ने तब रायशुमारी करवाई और यह घोषणा प्रकाशित की कि
इस योजना पर पाठकों ने जो राय दी है उसमें 98 प्रतिशत से ज्यादा एलिवेटेड रोड के पक्ष में हैं और मात्र 2 प्रतिशत से भी कम शहरी विरोध में थे। अलावा
इस बीच भी 'पत्रिका' एलिवेटेड रोड पर अपनी सकारात्मक राय रखती रही
लेकिन इस एक पृष्ठीय आयोजन में अचानक क्या हुआ कि उस योजना को पूरी तरह पत्रिका ने
ब्लैक आउट ही कर दिया!
'विनायक' यह मानता है कि
जिम्मेदारी मीडिया की ही होती है कि शहर के विकास में बाधा बने ऐसे विवादों में वह ना
केवल पूरे तथ्यों के साथ बात रखे बल्कि विवेक के साथ असल व्यावहारिक समाधानों पर
सकारात्मक राय बनाने में जनता का सहयोग भी करे। ('विनायक' के पास 1976 के मास्टर प्लान की राज्य सरकार द्वारा
प्रकाशित पुस्तिका भी है और उपरोक्त उल्लेखित उत्तर पश्चिम रेलवे के जयपुर जोनल
कार्यालय ने जनवरी, 2005 में राज्य सरकार
के एमओयू पर अपनी टिप्पणियों सहित जो पत्र भेजा, उसकी प्रति भी सुरक्षित है। )
बायपास के
आश्वासनों की अहमियत जुमलों से ज्यादा क्या?
बायपास निर्माण में मोटा-मोट 30-32 किमी की नई रेललाइन डलनी है जिस पर नाल और लालगढ़ स्टेशन के बीच एक नया रेलवे
स्टेशन भी रेलवे द्वारा प्रस्तावित है। इसमें यह भी कि रेलवे लालगढ़ और बीकानेर के
स्टेशनों को यथावत रखना चाहता है और दोनों के बीच की वर्तमान रेललाइन को भी। रेलवे
का मानना है कि वह सवारी गाड़ियों को पुराने मार्ग से ही गुजारेगा, यात्री गाड़ियों के संचालन समय को कम करने का
दबाव रेलवे पर हमेशा रहता है। ऐसे में यात्री रेल गाड़ियों को बायपास से गुजारने के
लिए लगभग 45 मिनट का अतिरिक्त समय
रेलवे कैसे वहन करेगा।
उपरोक्त बातों के मद्देनजर फिर वह चाहे पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव डी सी
सामन्त का बायपास पर बयान हो या पूर्व मुख्य सचिव एस ए अहमद का रेलवे को बायपास की
पैरवी में लिखा पत्र, यह सभी बातें उसी
तरह जुमले लगती हैं जैसे जुमले जनआक्रोश को तात्कालिक तौर पर शान्त करने के लिए
जनवरी, 1992 में कांग्रेसी केन्द्रीय
रेलमंत्री सीके जाफर शरीफ और भाजपाई मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत के आश्वासन
जुमले साबित हुए। इन सब के कहे की अहमियत जुमलों से अधिक साबित कहां हो रही है।
—दीपचन्द सांखला
6 अप्रेल, 2017
1 comment:
JORDAR, TRUE , ACHHA , LAGGAA. THANKS.
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