पिछले तीस वर्ष से बीकानेर शहर के बाशिन्दे एक लॉलीपोप पर टकटकी लगाये बैठे हैं। शहर से गुजरने वाली रेलवे लाइन के बास का लॉलीपोप।
जब तक आन्दोलनकारियों के हाथ में यह मुद्दा था तब तक ठीक। लेकिन जैसे ही यह मुद्दा राजनेताओं ने लपका यह लॉली पोप बन गया।
अभी कल यानी गुरुवार की ही बात है। राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. बी.डी. कल्ला ने एक प्रेस कान्फ्रेंस की। इसमें विपक्ष को कोसते हुए व दूर की कोड़ी लाते हुए यह सुझाया कि पुरानी जेल की जमीन बेचने से जो रकम हासिल होगी, उसे रेल बाइपास निर्माण में लगा दी जाय।
यह कहते हुए कल्ला शायद भूल गये कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद अपनी बीकानेर यात्रा में यह घोषणा कर चुके हैं कि बाइपास निर्माण में जो भी खर्च आयेगा उसे राज्य सरकार वहन करेगी।
डॉ. कल्ला सम्भवतः नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल के बीकानेर में दिये उस बयान को भी भूल गये कि पुरानी जेल की जमीन बेचने से जो भी रकम हासिल होगी उसे बीकानेर शहर के विकास के लिए आधी-आधी नगर निगम और नगर विकास न्यास को दे दिया जाएगा।
जब राज्य के मुखिया यह कह चुके कि रेल बाइपास के लिए पैसा सरकार मुहैया करवायेगी और नगरीय विकास मंत्री यह कह चुके कि जेल की जमीन के बिकने पर जो आय होगी वो नगरीय विकास के लिए दोनों स्थानीय निकायों को दी जायेगी। तब सराहनीय तो यह होता कि कल्ला जी यह प्रयास करते कि यह दोनों बड़े नेता अपने बयानों में कही बातों को अमली जामा पहनायें। उलटा वे शहर का नुकसान सुझाते हुए उसे बाइपास को देने की बात कर गए जबकि बाइपास के लिए सरकार से धन देने की घोषणा मुख्यमंत्री कर चुके हैं।
हां, पाठकों को यह तो जानकारी होगी ही कि रेलवे तो इस बाइपास के लिए एक पैसा भी लगाने को तैयार नहीं है और यह भी कि शहर के बीच से गुजरने वाली रेल लाइन को रेलवे नहीं हटायेगी। बीकानेर से गुजरने वाली सवारी गाड़ियां शहर से ही गुजरेंगी। रेलवे इन दोनों ही शर्तों पर टस से मस भी नहीं है। इस स्थिति में रेलवे बाइपास के बाद भी शहर की यह बड़ी समस्या बनी रहेगी। क्योंकि अधिकतर मालगाड़ियां तो अभी भी शहर से रात को ही गुजरती हैं। और सवारी गाड़ियों को बाइपास से गुजारने पर उनके समय में लगभग पैंतालीस मिनट की बढ़ोतरी होगी। जो लम्बी दूरी की गाड़ियों के लिए रेलवे उचित नहीं मानता।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अजमेर चले जाने पर लाचारी दिखाते हुए कल्ला ने कहा कि सत्ता में जो प्रभावी होते हैं उनकी ही चलती है और सचिन पायलट (जिनका जन्म सम्भवतः कल्ला के राजनीति शुरू करने के बाद हुआ है) अपने प्रभाव के चलते उसे अजमेर ले गये। लेकिन यह नहीं बताया कि कल्ला ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय के लिए किस स्तर तक के प्रयास किये थे।
वर्ष 1 अंक 12, शुक्रवार, 2 सितम्बर, 2011
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