Friday, April 28, 2017

न्यायपालिका की सक्रियता और सत्तारूपों की असहजता / अन्ना फैक्टर और हिसार का चुनाव परिणाम (न्यायपालिका की सक्रियता और सत्तारूपों की असहजता लंबे अरसे से यह महसूस होने लगा था कि देश में कानून का राज खत्म होता जा रहा है। दबंगई हावी होती जा रही है। इसका अहसास न तो व्यवस्थापिका (संसद) को हो रहा था और ना कार्यपालिका (सरकार) को। यदि हो भी रहा हो तो उनका रवैया सर्वथा गैर जिम्मेदाराना ही था! लेकिन जनता की उक्त आशंकाओं और चिंताओं को देश की न्यायपालिका बहुत बारीकी से देख-परख रही थी। यही समय था जब न्यायपालिका को अपनी चुप्पी तोड़नी थी्रऔर तोड़ी भी। बिना इसकी परवाह किये कि उस पर अनावश्यक हस्तक्षेप का आरोप लग सकता है और ढके मुंह लग भी रहा है। अन्यथा कलमाड़ी, ए. राजा., कनीमोझी से लेकर येदियुरप्पा तक अंदर नहीं होते और नरेन्द्र मोदी से लेकर महिपाल मदेरणा की देह में शीत व्यापती नहीं। लगता है कमोबेश ऐसी ही स्थिति में अनिल अंबानी से लेकर जलमहल लीज प्रकरण के दोषी नवरतन कोठारी तक हैं। कहते हैं कि सभी सत्तारूप यानी राज सत्ता, धन सत्ता और धर्म सत्ता आदि अपने को भोगने वाले की समझ को भोथरा और उसकी आंख पर पर्दा डाल देते हैं ताकि भोगने वाले में उचित-अनुचित का भान खत्म हो जाये और जो अन्याय उससे हो रहा है उसे वो देख ना सके। जब ऐसा होगा तभी वो विभिन्न सत्ता रूपों को निर्विघ्न भोग सकेगा। क्योंकि ये सभी सत्ता रूप दायित्व के साथ बरते जाने पर असहजता का अनुभव करते हैं और भोगे जाने पर सुख का। अन्ना फैक्टर और हिसार का चुनाव परिणाम हिसार लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर पूरे देश की थी, जैसा कि कयास लगाया जा रहा था, परिणाम लगभग वैसा ही आया। लगभग इसलिए कि जीतने वाले हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई इंडियन नेशनल लोकदल के अजयसिंह चौटाला के मुकाबले मात्र 6,323 मतों से ही जीत पाये। कयास लगाने वाले यह अंतर ज्यादा मान कर चल रहे थे। वैसे भी लोकसभा सीट के चुनाव में जहां सामान्यतः दस लाख मतदाता तो होते ही हैं। यह अंतर मामूली है। यह भी तब जब हिसार लोकसभा क्षेत्र को जाट बहुल नहीं माना जाता है। अजयसिंह जाट समुदाय से आते हैं और कुलदीप बिश्नोई वहां गैर जाट माने जाते हैं। ऐसी स्थिति में अपने आत्म विश्वास को समेटने के वास्ते कुलदीप अपनी जीत में अन्ना फैक्टर से चाहे इनकार करें लेकिन परिणाम यही बता रहे हैं कि अगर अन्ना फैक्टर नहीं होता तो चौटाला भी जीत सकते थे। अन्ना टीम के लिए भी यह गहरे आत्म-विश्लेषण का समय है। हिसार चुनाव में सक्रिय होने का निर्णय उन्होंने किसी भी तर्क पर लिया हो, यदि सभी तरह से विश्लेषण करेंगे तो यह निर्णय उनके मिशन को पूरा करता नहीं दीखता। अन्ना टीम को अपनी जीत तो इसे मानना ही नहीं चाहिए। यदि उन्होंने जीत-हार को थोड़ा भी प्रभावित किया है तो भी जीता चौधरी भजनलाल की पार्टी का उम्मीदवार ही है और यह नहीं भी होता तो ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी का उम्मीदवार जीतता और कोई चमत्कार से तीसरा जीतता तो कांग्रेस का जयप्रकाश जीतता। इन तीनों में से कोई भी जीते। यह जीत अन्ना उद्देश्य की नहीं मानी जा सकती। हां, कांग्रेस इससे दबाव जरूर महसूस कर सकती हैं और इसी के चलते लोकपाल बिल पर अपने को और टाइट महसूस करने लगे। अन्ना टीम इसे ही अपनी जीत माने तो यह उन गांधी की नैतिकता में नहीं आता, जिन गांधी की तसवीर की छाया में अन्ना टीम अपना आंदोलन चलाती है। वर्ष 1 अंक 51, मंगलवार, 18 अक्टूबर, 2011)

न्यायपालिका की सक्रियता और सत्तारूपों की असहजता
लंबे अरसे से यह महसूस होने लगा था कि देश में कानून का राज खत्म होता जा रहा है। दबंगई हावी होती जा रही है। इसका अहसास तो व्यवस्थापिका (संसद) को हो रहा था और ना कार्यपालिका (सरकार) को। यदि हो भी रहा हो तो उनका रवैया सर्वथा गैर जिम्मेदाराना ही था! लेकिन जनता की उक्त आशंकाओं और चिंताओं को देश की न्यायपालिका बहुत बारीकी से देख-परख रही थी। यही समय था जब न्यायपालिका को अपनी चुप्पी तोड़नी थी्रऔर तोड़ी भी। बिना इसकी परवाह किये कि उस पर अनावश्यक हस्तक्षेप का आरोप लग सकता है और ढके मुंह लग भी रहा है। अन्यथा कलमाड़ी, . राजा., कनीमोझी से लेकर येदियुरप्पा तक अंदर नहीं होते और नरेन्द्र मोदी से लेकर महिपाल मदेरणा की देह में शीत व्यापती नहीं। लगता है कमोबेश ऐसी ही स्थिति में अनिल अंबानी से लेकर जलमहल लीज प्रकरण के दोषी नवरतन कोठारी तक हैं।
कहते हैं कि सभी सत्तारूप यानी राज सत्ता, धन सत्ता और धर्म सत्ता आदि अपने को भोगने वाले की समझ को भोथरा और उसकी आंख पर पर्दा डाल देते हैं ताकि भोगने वाले में उचित-अनुचित का भान खत्म हो जाये और जो अन्याय उससे हो रहा है उसे वो देख ना सके। जब ऐसा होगा तभी वो विभिन्न सत्ता रूपों को निर्विघ्न भोग सकेगा। क्योंकि ये सभी सत्ता रूप दायित्व के साथ बरते जाने पर असहजता का अनुभव करते हैं और भोगे जाने पर सुख का।
अन्ना फैक्टर और हिसार का चुनाव परिणाम
हिसार लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर पूरे देश की थी, जैसा कि कयास लगाया जा रहा था, परिणाम लगभग वैसा ही आया। लगभग इसलिए कि जीतने वाले हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई इंडियन नेशनल लोकदल के अजयसिंह चौटाला के मुकाबले मात्र 6,323 मतों से ही जीत पाये। कयास लगाने वाले यह अंतर ज्यादा मान कर चल रहे थे। वैसे भी लोकसभा सीट के चुनाव में जहां सामान्यतः दस लाख मतदाता तो होते ही हैं। यह अंतर मामूली है। यह भी तब जब हिसार लोकसभा क्षेत्र को जाट बहुल नहीं माना जाता है। अजयसिंह जाट समुदाय से आते हैं और कुलदीप बिश्नोई वहां गैर जाट माने जाते हैं। ऐसी स्थिति में अपने आत्म विश्वास को समेटने के वास्ते कुलदीप अपनी जीत में अन्ना फैक्टर से चाहे इनकार करें लेकिन परिणाम यही बता रहे हैं कि अगर अन्ना फैक्टर नहीं होता तो चौटाला भी जीत सकते थे।
अन्ना टीम के लिए भी यह गहरे आत्म-विश्लेषण का समय है। हिसार चुनाव में सक्रिय होने का निर्णय उन्होंने किसी भी तर्क पर लिया हो, यदि सभी तरह से विश्लेषण करेंगे तो यह निर्णय उनके मिशन को पूरा करता नहीं दीखता। अन्ना टीम को अपनी जीत तो इसे मानना ही नहीं चाहिए। यदि उन्होंने जीत-हार को थोड़ा भी प्रभावित किया है तो भी जीता चौधरी भजनलाल की पार्टी का उम्मीदवार ही है और यह नहीं भी होता तो ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी का उम्मीदवार जीतता और कोई चमत्कार से तीसरा जीतता तो कांग्रेस का जयप्रकाश जीतता। इन तीनों में से कोई भी जीते। यह जीत अन्ना उद्देश्य की नहीं मानी जा सकती। हां, कांग्रेस इससे दबाव जरूर महसूस कर सकती हैं और इसी के चलते लोकपाल बिल पर अपने को और टाइट महसूस करने लगे। अन्ना टीम इसे ही अपनी जीत माने तो यह उन गांधी की नैतिकता में नहीं आता, जिन गांधी की तसवीर की छाया में अन्ना टीम अपना आंदोलन चलाती है।

वर्ष 1 अंक 51, मंगलवार, 18 अक्टूबर, 2011

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