रियासती काल में बनी सूरसागर झील आजादी से पहले आस-पास के बाशिन्दों की पानी की जरूरतें पूरी करती थी कभी अपने में जूनागढ़ का अक्स दिखाने वाली यह झील पिछली आधी सदी से बेनूर होती गई। स्थानीय कैबत में यूं कहें कि जब से सत्यजीतराय ने अपनी फिल्म ‘सोनारकिला’ के लिए इसके किनारे ‘पायोजी मैं.... रामरतन धन पायो’ गीत को फिल्माया, लगता है तभी से सूरसागर को नजर लग गई। बीकानेर की सो’नादेवी के गाये और उन्हीं पर फिल्माए इस भजन ने सूरसागर का दिग्दर्शन देश-दुनिया को करवा दिया था। इस फिल्मांकन के लगभग बाद से यह झील गंदे पानी और कीचड़ के बड़े कुण्ड में तबदील होती गयी। फिर कोई तो इसमें कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर लेता तो कई किसी से बैर निकालने के वास्ते उसकी साइकिल इसमें फेंक देते, यह बातें तब की हैं जब साइकिल कुछेक की जरूरत और कईयों के लिए विलासिता का साधन थी।
सड़ांध मारते इस कुण्ड से दुःखी आस-पास के बाशिन्दे इससे निजात पाने की जरूरत महसूस करने लगे और अपनी ताकत के अनुसार इस तरह की मांग भी करते। यह कोई तीस-चालीस साल तक यह कशमकश चलती रही। तब कोलायत विधानसभा क्षेत्र में आने वाले इस सूरसागर के नाम पर विधायक देवीसिंह ने वोट भी मांगे थे।
2008 में करोड़ों रुपये लगा कर इसकी साफ-सफाई और मरम्मत करवाई और प्रशासन ने तब इसे उम्मीदों से तो भर दिया लेकिन पानी से आज तक नहीं भर पाया। 2008 में फिर उसी कांग्रेस की सरकार आ गई, विपक्ष जिसे हमेशा सूरसागर की इस गत के लिए भुंडाता रहा। कृत्रिम साधनों (कुओं और कैनाल) से न इतनी बड़ी झील भरी जा सकती थी और न ही सरकारी ठेकों से पुनर्निर्मित
इसकी सार-सम्हाल सम्भव थी। सूरसागर से और इससे सम्बन्धित काम गुणवत्ता से नहीं हुए तो सूरसागर पिछले पांच साल से फिर कुछ न कुछ सुर्खियां पाता रहा। इसको गन्दे पानी से बचाने को एक तरफ डाली गई सीवर लाइन भी जवाब दे गयी तो खुद झील में दरारें पड़नी शुरू हो गईं। करोड़ों गैलन पानी अब तक डाला जा चुका होगा और उड़ गया होगा। कहने को शहर के लिए सूरसागर सफेद हाथी साबित हो रहा है।
विनायक अपने 29 मई 2012 के सम्पादकीय के कुछ अंश उद्धृत करना जरूरी समझता है।
‘सूरसागर के जीर्णोद्धार
की योजना बनी तभी कुछ गुणीजनों
ने कहा था कि इसे बरसाती
पानी से भरना
तो उचित होता (जो इसकी आगोर
खत्म होने के बाद अब सम्भव
नहीं है)
लेकिन इसे कुओं
या नहर के पानी से भरना
इस रेगिस्तानी भू-भाग में विलासिता
से कम नहीं
होगा। लेकिन तब ऐसा कहने वालों
को भी यह अंदाज नहीं था कि इतनी बड़ी इस झील को कुओं और कैनाल
से भरे रखना
भी संभव नहीं
है, चार साल गुजर रहे हैं, इन कृत्रिम साधनों से कभी चार फुट पानी भी भरा नहीं जा सका इस सूरसागर में।
ऊपर से कोढ़ में खाज यह कि आये दिन पास से गुजर
रहे नाले और सीवर का गन्दा
पानी अपना रास्ता
इस ओर कर लेते हैं।’
‘प्रशासन सूरसागर को लेकर हाथ क्यों
नहीं खड़े कर देता और कह दें कि इसे पुराने रूप में सहेजना सम्भव नहीं
है। नयी योजना
लाओ। इसे पार्क
या ड्राई पार्क
में विकसित करो, शायद पार पड़ जाये, वैसे
प्रशासन के कुछ लोग पैसे बनाने
के लिए पैसे
लगाने को तत्पर
रहते हैं,
फिर उसे सहेजना
इनकी जिम्मेदारी में नहीं है। कभी लाखों रुपये म्यूजिकल
फाउन्टेन पर लगा दिये, वह बंद पड़ा है तो कभी करोड़ों
क्राफ्ट बाजार में लगा दिये वह भी बंद पड़ा है। ऐसे दसियों
उदाहरण दिये जा सकते हैं।’
6 फरवरी
2013
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