Friday, February 15, 2013

संस्कृति के पहरुवे बनाम कानून के पहरुवे


कलवैलेंटाइन डेथा, मूलतः यह पश्चिम का विशिष्ट दिन है| इसे प्रेम के इजहार का दिन भी कहा जाता है। भूमण्डलीकरण के इस दौर में पिछले कई वर्षों से यह यहां भी मनाया जाने लगा है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बाजार के बढ़ते हस्तक्षेप का यह भी एक प्रमाण है। वैलेंटाइन डे यहां मनाये जाने पर संस्कृति के नाम पर एतराज जायज नहीं लगता है, एतराज तो जिस बाजार के माध्यम से यह यहां तक आया है, उस पर होना चाहिए था, वह भी अब इसलिए सम्भव नहीं है, क्योंकि बाजार में उदारीकरण को हमने स्वीकार कर लिया है। पश्चिम से आने वाले सुख और सुविधाओं के साधनों को यदि हम लपककर लेने से गुरेज नहीं करते हैं तो उनके साथ आने वाले अन्य तौर-तरीकों से गुरेज क्यों? आज की सुख-सुविधाओं के अधिकांश साधन पश्चिम से रहे हैं तो जिन तौर-तरीकों से आपको एतराज है वह उन सुख-साधनों से अलग नहीं है।
वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले इसे अपनी संस्कृति और परम्पराओं के खिलाफ बताते हैं। संस्कृति के ये पहरुवे पहले यह तो समझ लें कि जिस संस्कृति और परम्परा की वे बात कर रहे हैं वह निर्मित कैसे हुई है। पिछली सदियों में जिन-जिन सभ्यताओं और संस्कृतियों के यहां हमारा आव-जाव रहा है उन सबके साथ आज ही की तरह से ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ रहन-सहन, खान-पान, पहनावा, पोशाक और बोली-चाली आदि-आदि का आदान-प्रदान हमेशा से होता रहा है। यहां तक कि दिन-महीना-साल की गणना के अपने आधार भी अब पश्चिमी ही हैं| सुख-सुविधाओं के अधिकांश साधनों के साथ ही आज की हमारी रसोई और हमारे पहनावे को कितना भारतीय कह सकते हैं? हमारे अधिकांश व्यंजनों पर मुगलई छाप है तो पहनावे पर पूरी की पूरी छाप ही पश्चिमी है। साइकल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, रेलगाड़ी, मकान बनाने के तरीके, फोन, मोबाइल, इंटरनेट, टीवी आदि-आदि पश्चिम से आए हैं| यह सब आएंगे तो अकेले नहीं आएंगे वे अपने साथ इनके प्रयोग के तौर-तरीके भी लाएंगे| जिनसे आप बच नहीं सकते।
वैलेंटाइन डे पर प्रतिवर्ष सिर्फ सुर्खिया पाने के उद्देश्य से कुछेक युवक सड़कों पर निकल आते हैं, संस्कृति के नाम पर चाहे जिसको बेइज्जत करते हैं, नियम-कानूनों का उल्लंघन करते हैं। वह भी सब पूर्व में घोषणा करके। यह सब भदेसपन उस संभागीय मुख्यालय पर प्रतिवर्ष होने लगा है जहां पुलिस महकमे के एक-एक महानिरीक्षक, अधीक्षक, दो-दो अतिरिक्त अधीक्षक, उपाधीक्षक और सैकड़ों सिपाहियों के साथ कई थानाधिकारी कानून के पहरुवे के रूप मेंअपराधियों में डर, आमजन में विश्वासके स्लोगन के साथ बैठते हैं। इन सबके बावजूद कुछ युवक केवल और केवल सुर्खियां पाने के मकसद से पूर्व घोषणा के साथ मोटरसाइकिलों पर बिना हेलमेट हुड़दंगी अंदाज में निकलते हैं, कार्ड वाली कुछ दुकानों पर पहुंचकर कार्ड जलाते हैं, फूल वाली दुकानों पर ताका-झांकी करते हैं, रेस्टोरेंटों में धड़ल्ले से घुसकर किसी के भी साथ बदमजगी-बदसलूकी करने को आतुर रहते हैं। पूरा का पूरा पुलिस महकमा इस सब को होने देने की छूट देता है!!
15 फरवरी 2013

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