बीकानेर पूर्व के हों या पश्चिम के, दोनों ही भाजपाई लगभग वसुंधराई रंग में रंगे हैं। पूर्व की विधायक सिद्धीकुमारी
के राजनीतिक जन्म की दाई वसुंधरा हैं तो पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी का कल्लाओं से बरसों पुराना बट वसुन्धरा ने ही निकलवाया, अन्यथा उनकी वह कसक हमेशा बनी रहती। जोशी ने 2008 का चुनाव अपना अन्तिम चुनाव मान कर ही लड़ा था। ऐसे उत्साह के बिना कल्ला बन्धुओं को पटखनी देना सम्भव भी नहीं था, लेकिन ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया जोशी का मन अखाड़े में फिर उतरने को पुख्ता होता गया। कहते भी हैं, सभी प्रकार के सत्ता-रूप शिलाजित से कम नहीं होते। पिछले एक अरसे से उम्र के इस पड़ाव पर भी गोपाल जोशी इस वर्ष होने वाले चुनाव में लड़ने का मन बनाए हुए हैं। वसुंधरा के आने से उनका दावा और पुख्ता हो गया है। हालांकि इस बार का मैदान उनके लिए आसान नहीं होगा, पार्टी में उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी
नन्दू महाराज उनकी बाजी आसान नहीं रहने देंगे। हो सकता है नन्दू महाराज अपनी हेकड़ी के चलते पार्टी टिकट लाने में सफल न भी हों, लेकिन चुनाव वे लड़ेंगे ही। यद्यपि हेकड़ी गोपाल जोशी में भी कम नहीं है लेकिन उसे कहां और कब दिखाना है, इसे वे बखूबी जानते हैं। अन्यथा उनके स्वभाव में दरबारियों की तरह खड़े रहना कहां था, जोशी में यह दरबारी समझ पिछली सदी के आठवें-नौवें दशक में आ जाती तो उनकी गत यह नहीं होती और कल्ला बन्धु आज भी उनके हाजरिये ही रहते। खैर-बीकानेर पश्चिम की सीट इस बार भाजपा के लिए लगभग नामुमकिन इसलिए होगी कि कल्ला बन्धुओं के लिए यह चुनाव राजनीतिक जीवन-मरण का है। कल्ला यदि यह चुनाव भी हार जाते हैं तो शहर की राजनीति कल्ला फैक्टर से मुक्त हो जायेगी, ऐसा न बीडी कल्ला चाहेंगे और न ही राजनीति की बदौलत व्यापारिक घराना बने जनार्दन कल्ला। क्योंकि जनार्दन यह भली-भांति जानते हैं कि उनका व्यापार बिना राजनीति की खाद-पानी के इस मुकाम पर न होता। जनार्दन की चतुराई इसी में है कि बीकानेर (पश्चिम) से भाजपा का टिकट अपने बहनोई को दिलवाएं और नन्दू महाराज को विद्रोही उम्मीदवार बनवा दें तो ‘बुले’ की जीत निश्चित ही शत-प्रतिशत हो जायेगी। ‘शातिर’ और चतुर जनार्दन कल्ला के लिए ऐसा करना-करवाना आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं है।
अब बात करलें बीकानेर-पूर्व की। भाजपा का टिकट लगभग सिद्धीकुमारी
का तय है। वह खुद ही न लड़ना चाहे तो बात अलग है। जीत भी लगभग तय है, जनता सिद्धीकुमारी
को एक मौका और देगी ही। पर कांग्रेस के पास भी इस सीट के लिए कोई पुख्ता उम्मीदवार नहीं है। जैसी भाजपाई स्थितियां बन रही हैं उसमें कांग्रेस में किसी तरह की गुंजाइश निकलना और भी मुश्किल है कांग्रेस चाहे तो एक दावं खेल सकती है, गोपाल गहलोत को कांग्रेस में लाकर पूर्व से चुनाव लड़वा दे। स्थानीय कांग्रेसी ऐसा नहीं चाहेंगे। पर उनके इस क्षेत्र को लेकर कोई ज्यादा आग्रह-दुराग्रह भी नहीं है और कल्ला बन्धु इस सीट पर पंचायती छोड़ देंगे तो लाभ में रहेंगे। वसुन्धरा की ही भांति अशोक गहलोत भी जानते हैं कि अगले चुनाव में एक-एक सीट के क्या मायने होने हैं कांग्रेस यदि यह चाल चले और गोपाल गहलोत इस चुनाव को जीतने के मन से लड़ ले तो फिरकी घूम भी सकती है। इस चुनाव में न भी घूमे तो 2018 का बीकानेर (पूर्व) का चुनाव बरास्ता कांग्रेस गोपाल गहलोत का होगा, बस जरूरत उन्हें अपनी छवि बदलने की है। अन्यथा भाजपा में रहते और वर्तमान छवि के चलते गोपाल गहलोत को अपनी राजनीतिक पारी को समाप्त मान लेना चाहिए।
5 फरवरी
2013
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