Monday, February 11, 2013

कुंभ का हादसा


कल शाम इलाहाबाद स्टेशन पर मची भगदड़ में हुई मौतों की संख्या 37 पार कर गई है| इस तरह के बड़े आयोजनों में हादसों की आशंकाएं हमेशा बनी रहती है| कभी कुछ हो तो आभार भगवान का ही स्वीकार किया जाता है जबकि व्यवस्थाओं को दुरुस्त और चाक-चौबंद बताये जाने के प्रशासन के दावे और बयान अपनी जगह होते हैं| कल की दुर्घटना के प्रथम-दृष्ट्या जो कारण सामने आए हैं उनके अनुसार मौनी अमावस्या के स्नान के बाद स्टेशन क्षेत्र की क्षमता से कई गुणा लोग वहां गये थे| मानव प्रकृति के चलते ऐसा हमेशा ही होता है कि किसी अनुष्ठान या कार्यक्रम से निबटने के तुरन्त बाद सभी अपने गंतव्य को लौटने की जल्दबाजी में रहते हैं, कल भी यही हुआ| तो क्या स्थानीय रेल प्रशासन को इसका आभास नहीं था? होता तो शायद ऐसा नहीं होता| अकसर देखा गया है कि ड्यूटी अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह मुस्तैद नहीं रहते और ही उन सभी में कोई तारतम्य होता है| वे खुद यह मानकर चलते हैं किकुछ होना होगा तो होगा ही, होनी को टालना उनके बस में नहीं है|’ ऐसा नहीं है कि सभी लोग ऐसी मानसिकता रखते हैं| कुछ ड्यूटी के पक्के भी होते हैं, लेकिन यदि पूरी व्यवस्था ड्यूटी की पक्की हो तो ऐसे हादसों की आशंका बनी ही रहेगी| मिलिटरी सिस्टम यदि ऐसी मानसिकता रखे तो देश और उसकी सम्प्रभुता दावं पर हो सकती है|
इसके अलावा धैर्य और विवेक के अभाव में भी ऐसे दुर्घटनाएं घटित होती हैं| कल की दुर्घटना में स्टेशन आए सभी अपने गंतव्य की गाड़ी पकड़ने की हड़बड़ी में थे, बिना यह विचारे कि रेलगाड़ी की क्षमता तय है, क्षमता से तीन गुने से ज्यादा तो वह हरगिज नहीं ढो सकती| ठीक इसी तरह स्टेशन परिसर की क्षमता भी तय है| इस अधेर्य से होता यह भी है कि जो लोग योजनाबद्ध तरीके से यात्रा करते हैं, उन्हें यात्रा में असुविधा का सामना या उससे वंचित होना पड़ जाता है| इस तरह की भगदड़ और दुर्घटनाएं कुछ मनचलों की पैदा की गई अफवाहों और बिना देखे-समझे उन्हें आगे प्रसारित करने वालों से भी हो जाती है| इसलिए अच्छी या बुरी कोई भी सूचना आए उस पर तो आंख बंद करके और ही बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया देनी चाहिए, किसी अन्य तक उसे पहुंचाना चाहिए| अधिकृत अनाउंसमेंट का इन्तजार और उस पर भरोसा करने भर से कई दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है| यह स्वीकार करने के बावजूद कि व्यवस्थाओं में कमियों के रहते ही दुर्घटनाएं होती हैं, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारी हड़बड़ियां भी इसके लिए बड़ी जिम्मेदार होती हैं|
11 फरवरी, 2013

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