Wednesday, February 27, 2013

रेल बजट और लालगढ़ वर्कशॉप


जिस तरह आधुनिक शासन व्यवस्थाओं में साल भर के वित्तीय लेखे-जोखे को प्रस्तुत करना कार्यप्रणाली का एक हिस्सा है। ठीक इसी तरह पिछले एक अरसे से रेल बजट, केन्द्रीय आम बजट और प्रदेश के बजट के बाद अपनी-अपनी जगहों के पक्ष-विपक्ष के स्थानीय नेताओं के बयान भी स्थानीय अखबारों और चैनलों में आते हैं। यह सभी चेहरे लगभग निश्चित होते हैं। एकरसता तोड़ने की गरज से कुछ भिन्न चेहरों को भी इनके साथ स्थान मिल जाता है| जिनकी सरकार है, वे सराहते हैं तो जो विपक्ष में है वे भुंडाते हैं। सरकार बदल जाये तो इनके बयानों की भी अदला-बदली हो जाती है| आज भी ऐसा ही हुआ है। कल रेल बजट था आने वाले परसों भी ऐसा ही होगा क्योंकि कल केन्द्र सरकार का आम बजट आना है और कुछ दिन बाद यह बारी फिर आयेगी जब प्रदेश का बजट रखा जायेगा।
अखबारों को कुछ कुछ पुरसना होता है सो यह सब रस्म अदायगियां होती हैं, लेकिन इन अवसरों के बहाने कुछ सार्थक चर्चा हो तो बेहतर है। कल के रेल बजट में बीकानेर में लालगढ़ स्थित रेलवे वर्कशॉप के लिए लगभग नब्बे करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। बीकानेर में केवल रोजगार के कुछ अवसरों के बढ़ने की उम्मीद बनी है, बल्कि इस धन का सदुपयोग होता है और वर्कशॉप के कर्मचारी कुछ कर दिखाते हैं तो भविष्य में कुछ बड़ी उम्मीदें भी हरी हो सकती हैं। इस वर्कशॉप की कभी अपने काम को लेकर बड़ी साख थी, सभी कर्मचारी दक्षता और निष्ठा से काम करते थे। इसी के चलते आए दिन यह सुना जाता था कि दूर-दूर से कुछ विशेष प्रकार के काम भी इस वर्कशॉप को मिलते थे। यहां के कर्मचारी उसे अपनी शान समझ कर पूरा भी करते थे। पिछले पैंतीस-चालीस वर्षों से धीरे-धीरे इस वर्कशॉप का भट्ठा बैठने लगा। जिन ट्रेड यूनियन नेताओं में भरोसा जताया गया और जिन्हें इस कारखाने के ट्रस्टी या संरक्षक की भूमिका में होना था, उन्होंने ही इसे डुबो दिया। कभी इस वर्कशॉप में चाहे जब आना-जाना लगभग असंभव था। अब कर्मचारी और बाहरी लोग छोटी-मोटी सेटिंग के बाद जब चाहे निर्बाध आवागमन करते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। किसी भी बाहरी व्यक्ति का इस वर्कशॉप में जाना और वर्कशॉप में कार्यरत व्यक्तियों का कार्य समय में बाहर आना लगभग असंभव था। ऐसा नहीं है कि सभी कर्मचारी ऐसे हैं, कुछ काम करना भी चाहते हैं, पर उन्हें या तो करने नहीं दिया जाता या उन्हें अवसर नहीं मिलता। कोशिश यही रहती है कि कुल कार्यक्षमता का एक-चौथाई से भी कम काम उन्हें आवंटित हो। वर्कशॉप से सामान गायब होना आम बात हो गई है। इस सबके लिए ट्रेड यूनियन नेता ज्यादा जिम्मेदार हैं। उन्होंने धीरे-धीरे ऐसी परिस्थितियां पैदा करवा दी या होने दी कि यह वर्कशॉप लगभग उजाड़ हो गया। इन नेताओं ने अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए अनियमितताएं होने दीं और इनके बदले उन्होंने अपना घर-भरा, अपने परिजनों और अपने तकपहुंचरखने वालों को नौकरियां दिलवाईं। इन ट्रेड यूनियन नेताओं ने इस तरह बीकानेर क्षेत्र के बेरोजगारों के साथ बड़ा अपराध किया है, जबकि होना तो यह चाहिए था कि इस वर्कशॉप को दिनोदिन और समर्थ समृद्ध किया जाता, पर हुआ ठीक उलटा।
इस रेल बजट से अनायास एक अवसर फिर हाथ आया है। इस वर्कशॉप की प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठा के सहारे रोजगार के अवसर लौटा लाने का| सो यहां के बयानबाजों से अनुरोध है कि वे सचमुच यदि कुछ करना चाहते हैं तो चाहे वे छपास से मुक्त हों या हों, इस सम्बन्ध में कुछ सार्थक करें। वर्कशॉप की रौनक लौटाने के साथ-साथ यहां के लोकोशेड को भी पुनर्जीवित करने की जरूरत है।
रेलगाड़ियां तो जिस गति से मिल रही हैं, उसी गति से मिलती रहेंगी, यहां के बयानबाजों की बदौलत कोई रेलगाड़ी या अन्य सुविधा बीकानेर को आज तक मिली है तो बताएं। रेलगाड़ियों के मिलने की तुक अलग है, जब बैठती है तो स्वतः ही ये गाड़ियां भी जाती हैं। बात हजम तो नहीं हो रही होगी पर है यह सच!
27 फरवरी 2013

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