सोशल साइट्स फेसबुक, ट्वीटर आदि ने व्यक्ति, समाज और दुनिया को जानने समझने के अवसरों को न केवल बढ़ा दिया है, बल्कि बहुत-सी वह जानकारियां भी हासिल हो जाती हैं जो अन्यथा भौतिक उपस्थिति के बिना संभव नहीं है। इन साइट्स पर सायास-अनायास दी गई कोई भी प्रतिक्रिया आपके मनोभाव को, आपकी मानसिकता को उन सब के बीच अनावृत कर देती है, जिन-जिन की जद में आप होते हैं। हो सकता है मनोविज्ञान के अध्येताओं और शोधकर्ताओं को इनके माध्यम से मानवीय स्वभाव की बहुत-सी नई जानकारियां हासिल हो रही होंगी।
कौन, किनको, किस बात को, किस तरह के फोटोग्राफ को लाइक करते हैं, किस पर कुछ लिख कर प्रतिक्रिया
देते हैं, किस तरह के लोगों को फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजते हैं, किसको, क्या मैसेज भेजते हैं, स्टेटस के माध्यम से अपने को किस विधा में और किस तरह से अभिव्यक्त करते हैं या किन्हीं दूसरों की वाल से ही कुछ लेकर शेयर करते हैं। इन सबका बारीकी से अवलोकन करें तो बहुत कुछ वह अनावृत हो जाता है जो अन्य किसी माध्यम से व्यक्तिविशेष
के बारे में अब तक जान-समझ नहीं पाये हैं। इन सोशल साइट्स ने विश्व को चौपाल बना दिया है, जिनके पास भी इस चौपाल में आने का साधन और समय है वह इसमें शामिल हो सकता है ठीक गांव की चौपाल और मुहल्ले के पाटों की ही तरह। दुनिया में कहीं भी बैठे आप रोज बतिया सकते हैं, इसके माध्यम से सामान्य जानकारियों के साथ-साथ एक-दूसरे से बिना कभी रू-बरू हुए बहुत बेहतर जान-समझ सकते हैं। आश्चर्य तो तब होता है कि जिनसे आपकी सशरीर रोजाना या अकसर मुलाकात होती है, इसके बावजूद उनका बहुत कुछ नया इन सोशल साइट्स के माध्यम से जानने लगते हैं। तो क्या सशरीर उपस्थिति का आतंक भी बहुत कुछ उधड़ने नहीं देता? यह इसलिए भी दिलचस्प है कि इन सोशल साइट्स पर आप जो कुछ भी और जिस भी माध्यम से अपने को अभिव्यक्त करते हैं, ऐसा करते समय आपके चेतन-अचेतन को यह पता होता है कि आप जिन-जिन की भी जद में हैं वे इससे वाकिफ हो जायेंगे, तब भी आप झिझकते नहीं हैं।
लगता है संचार के यये ये साधन अपनी जद में आए हुओं के रिश्तों को नये तरीकों से परिभाषित कर रहे हैं-करेंगे। विवाह, परिवार, समाज और देश जैसे शब्द शायद गौण होते चले जायेंगे। तो क्या समाज नये तरीके के दो हिस्सों में बंट जायेगा। एक वे जिनके पास तकनीक है और दूसरे वे जिनके पास तकनीक नहीं है और यह भी कि यह सोशल साइट्स क्या जीवन को ही बेदखल कर देगी या जीवन को नई परिभाषा देगी। क्योंकि जिस ढलान पर यह तकनीक आपको ले आयी है उसमें पड़ाव की संभावना नहीं है, गंतव्य कितना दूर है या गंतव्य है ही नहीं, कह नहीं सकते।
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