Monday, February 25, 2013

रेल बजट के बहाने


कल रेल बजट पेश होना है। बीकानेर संभाग मुख्यालय है, केवल इसी के चलते इस शहर को कुछ कुछ हासिल होता रहा है, कि यहां के जनप्रतिनिधियों के प्रयासों से। संभाग मुख्यालय भी शायद इसलिए बना दिया गया चूंकि इस भौगोलिक परिक्षेत्र में यही एक केवल बड़ा शहर रहा बल्कि इर्द-गिर्द के जिलों के बीच भी है।
बात रेल बजट से शुरू की है और कल रेल बजट रखा जाना है सो सन्दर्भ भी रेल का ही है। प्रतिवर्ष जब भी रेल बजट रखा जाना होता है, उससे पन्द्रह-बीस दिन पहले स्थानीय अखबार रेल सम्बन्धी कुछ कुछ बरामद करने में लग जाते हैं। पहले से क्या मांगें चल रही हैं, कौन-कौन सी पूरी हुईं और कौन-सी पर घोषणा होने बाद भी आज तक क्रियान्विति नहीं हुई। रेल की बीट देखने वाले पत्रकार-बंधु सम्बन्धित खबरें बना कर छपवाते हैं तो साथ ही परम्परागत विज्ञप्तिबाजों, बयानबाजों और छोटे-बड़े नेताओं से संवाद है तो उनको रेल सम्बन्धी मुद्दे देकर बयान ले लेते हैं; लेते हैं तो अखबारों में छप भी जाते हैं। यह उनकी प्रोफेशनल मजबूरी है क्योंकि ब्रॉडशीट के आठ से सोलह पृष्ठों तक के इन अखबारों का पेटा भरना आसान काम नहीं है। इस तरह देखा जाय तो दैनिक अखबारों का रूटीन प्रतिदिन में नहीं, प्रतिवर्ष में सैट होता है और वर्षभर अवसरानुसार कुछ कुछ निकाल ले आना उनकी प्रोफेशनल मजबूरी भी।
चलो इसी बहाने सही, बहुत कुछ पुराना नया हो जाता है। लेकिन इस तरह के बयानों की बड़ी विडम्बना यह होती है कि इनमें से अधिकांश बयान जहां छपते हैं, उन अखबारों के पन्नों तक और ज्यादा से ज्यादा उस दिन के पाठकों तक ही पहुँच पाते हैं। अखबारों को इससे मतलब होता कि जिनका बयान छापा जा रहा है उन्होंने उससे सम्बन्धित मांगपत्र संबंधित महकमें या अधिकारी को भिजवाया है कि नहीं। और जिनके नाम से बयान छप जाता है वह अपनी ड्यूटी वहीं तक की मान लेता है।
कोर्ट को तो अखबारों में छपी खबरों का संज्ञान लेते सुना है, गले में जाये तो स्थानीय महकमें भी छपी खबरों पर कभी-कभार मुस्तैद हो लेते हैं। पर भारत सरकार के रेल मंत्रालय से यह उम्मीद करना कि किसी शहर-विशेष के किसी स्थानीय अखबार या स्थानीय संस्करण में छपी मांगों पर गौर करेगा, कुछ ज्यादा उम्मीद करना हो जायेगा।
इसलिए इन बयानबाजों और विज्ञप्तिबाजों से अनुरोध है कि नाम अपने अखबारों में भले ही छपवाएं लेकिन सम्बन्धित विभाग को लिखित में तो भिजवाएं कुछ होए होए, फाइल तो बनेगी और फाइल बनेगी तो कभी कुछ टप्पा भी लग सकता है। अन्यथा इस तरह की प्रैक्टिस को पानी मथना कहा जाता है, जिससे कुल जमा हासिल कुछ नहीं होता। कल रेल बजट जायेगा कुछ कुछ घोषणाएं हो जायेंगी क्योंकि इनका दस्तूर ही ऐसा है। घोषणाएं भी क्रियान्वित उनकी होती हैं जो कायदे से लगातार प्रयासरत रहते हैं अन्यथा हमारे यहां कहावत है किसुतोड़ां री भैंस पाडा जणेयानी जो लोग सोए रहते हैं उनकी भैंसनरजनती है और भैंस के जने पाडे की उपयोगिता से सभी वाकिफ हैं।
25 फरवरी 2013

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