Wednesday, October 10, 2012

लापरवाही की आग और ताक पर नियम-मानक


कल रात फड़ बाजार में पटाखों की थोक दुकान में आग लग गई| यह बाजार शहर के सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ वाले और अव्यवस्थित बाजारों में से एक है| चूंकि आग रात के साढ़े ग्यारह बजे लगी, तब तक यह इलाका लगभग निर्जन हो चुका था-कहते हैं कोई आठेक लाख के पटाखे स्वाह हो गये-निष्ठुर होकर बात करें तो कह सकते हैं कि यह आग स्वयं दुकानदार की लापरवाही से ही लगी होगी तब उसके प्रति कैसी सहानुभूति! आग लगने के कारणों की पुष्टि अकसर इसलिए नहीं होती कि सुबूत स्वाह हो जाते हैं-तो मोटा-मोट माना यही जाता है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी होगी| वैसे भी शहरी क्षेत्रों में आग लगने का शॉट सर्किट स्थाई कारण है| रात को लगी इस आग का कारण सचमुच में शॉर्ट सर्किट ही है तो इसके लिए जिम्मेदार दुकानदार खुद ही है क्योंकि आजकल ऐसे अनेक सामान्य उपाय अपनाए जा सकते हैं कि आग का कारण कम से कम शॉर्ट सर्किट तो बने| बिजली के मीटर घर-दुकान के बाहर लगने लगे हैं, ऐसे में रात्रि में दुकान बंद कर जाते समय सप्लाई को बंद कर दें तो शॉर्ट सर्किट के ऐसे दुष्परिणामों से छुटकारा आसान हो जाता है| उन दुकानदारों को यह सावधानी अवश्य ही बरतनी चाहिए जो अति ज्वलनशील या विस्फोटक वस्तुओं का भंडारण और व्यापार करते हों|
बात केवल दुकानदार को भुंडा देने भर से समाप्त नहीं होती है-राज के वे सभी कार्यालय जो इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं-अपने देश में गैर जिम्मेदारी के प्रचलन के चलते हमेशा की तरह वे इस घटना की जिम्मेदारी से भी बच निकलेंगे-जो महकमा इन पटाखों का व्यापार करने का लाइसेंस जारी करता है, सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो उसी की बनती है कि लाइसेंस जारी करने के तय मानकों की कड़ाई से जांच नियमों पर अडिग क्यों नहीं रहे| यह बात केवल इस महकमे की ही नहीं-नगर निगम बिजली विभाग भी इस तरह की दुर्घटनाओं के लिए कहीं कहीं जिम्मेदार होंगे| ये सभी सरकारी महकमे अपने छोटे-छोटे स्वार्थों और प्रलोभनों के वशीभूत हो जाते हैं| इन विभागों द्वारा किसी नेता के कहने से या अधिकारी के कहने से या अपने किसी निकटस्थ के दबाव के चलते और काम करवाने वाले के पास इनमें से कोई दावं हो तो कुछ लेकर ही तय मानकों में शिथिलता और नियमों की अनदेखी कर दी जाती है| कल रात के अग्निकांड में संतोष की बात यही रही कि दुकान के ठीक ऊपर कोई रिहाइश नहीं थी और आग का समय रात का था-अन्यथा कुछ भी संभव हो सकता है|
शहर में पटाखों की अधिकांश दुकानें तो बिना लाइसेंस के चलती हैं-जिन बड़ी दुकानों ने लाइसेंस ले भी रखे हैं तो यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने और जिम्मेदार विभागों ने लाइसेंस लेने-देने में नियम और मानकों में कोई कोई अनदेखी की ही होगी अन्यथा जिस तरह से सरे बाजार यह दुकानें लगती हैं, तय मानकों और नियमों की सख्ती के चलते वर्तमान की किसी दुकान को शायद ही पटाखे बेचने का लाइसेंस जारी हो सके|
पटाखे बेचने वाले कह सकते हैं कि सभी व्यापारियों ने गली-कूचे निकाल रखे हैं तो यह तोहमत हम पर ही क्यों? कुतर्क तो बनता है यह पर छूट किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए-लालच होगा तो भ्रष्टाचार होगा-भ्रष्टाचार होगा तो ऐसी और दूसरे तरह की दुर्घटनाएं भी होंगी|
वैसे एक बात आम-आवाम से भी-अपने यह सभी त्योहार आनन्द का हेतु होते हैं तो इस बाजार के दबाव में हर त्योहार को ज्यादा दिखावे के रूप में ही क्यों मनाने लगे हैं? दिखावे में आनन्द बचा भी रहता है क्या? थोड़ा अवकाश लेकर इस पर भी विचारें|
10 अक्टूबर, 2012

1 comment:

maitreyee said...

This is one of the majore concerns during the season of Diwali..especially in the crowded area...