Monday, October 29, 2012

सुर्खियां नहीं होंगी खत्म


देश का राजनीतिक परिदृश्य खुरदरा हो रहा या कहें हो चुका है| खुरदरा इतना कि उस पर नजर रखने वाली संजीदा आंखों को देखना नामुमकिन-सा लगने लगा है| पत्रकारिता करने वाले या इससे सम्बन्धितों में कुछ हक्का-बक्का हैं तो कुछ इस खुरदरी बिसात से भी सुर्खियां बटोरने में लगे हैं| सुर्खियां बटोरने में हड़बड़ी इतनी कि ये स्टिंग करने वाले खुद स्टिंग के शिकार होने लगे हैं|
जब से संप्रग-दो की सरकार आई है तब से खबरिया टीवी वाले एक चिन्ता से तो मुक्त हैं-इस चिन्ता से कि अगले चौबीस घंटे में क्या दिखाएंगे| रोजाना कोई--कोई इनके चकरिये में पांव धर ही देता है|
-राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी कभी बेरंग होते हैं तो कभी रंग में दिखाई देने लगते हैं-ये दृश्य से बाहर हुए तो अन्ना अपनी टीम के साथ गये| अन्ना ने अच्छी वाली खूब सुर्खियां बटोरीं और खूब दीं| जब लगने लगा कि यह रास्ता आसान नहीं है-तो अन्ना खुद ही पैविलियन से बाहर हो गये-पहले तो अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी अन्ना को पैविलियन से बाहर जाने देने का जतन करते रहे| पार नहीं पड़ी तो आधे-अधूरे साधनों के साथ हांफते-बैठते, उठते लगातार दौड़े जा रहे हैं-उनके साथ कुछ लोग आते हैं तो कुछ टूटते हैं-टूटने वाले अपनी कुण्ठाएं भी जाहिर करते हैं-टीवी-अखबार वालों को क्या-घोड़ा और सवार! दोनों पड़े तो उनका मजा डब्बल!!
कोई कभी चकरिये में आता नहीं दिखे तो ये मीडियावाले सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसों के पास पहुंच जाते हैं-स्वामी जैसे खुद ही मीडियावालों के चकरिये में पांव धरने को हमेशा ही आतुर रहते हैं| ऐसे ही दो नेता अपने प्रदेश में भी हैं डॉ. किरोड़ी मीणा और चन्द्रराज सिंघवी| इन जैसों के चलते ही शायद राखी सावंत जैसों की टीआरपी गिरी हैं| बेनीप्रसाद वर्मा जैसे कुछ ऐसे भी हैं जोभोळेपनके चलते खुद इन मीडियावालों के चकरिये में फंसते हैं| सभी राजनीतिक पार्टियों की स्थिति इन दिनों विचित्र है| कैडर आधारित मानी जाने वाली वामपंथी-दक्षिणपंथी दो अलग-अलग विचारधाराओं की इन पार्टियों की स्थिति भी कोई अच्छी नहीं है-सभी कम्यूनिस्ट पार्टियां पं. बंगाल में राज चले जाने के बाद से हाऊजुजु हैं-वैसे भी हरकिशनसिंह सुरजीत के बाद इनके किसी नेता में वो कुव्वत नहीं कि टीवी के चौखटे में या अखबारों की सुर्खियों में बने रहें-दक्षिणपंथी भाजपा ने अपनी स्थिति खुद इतनी विचित्र बना ली है कि उसके नेता आए दिन सुर्खियां पाने लगे हैं|
2-जी और कोयला आवंटन खुलासों के बाद भाजपा वाले चले तो थे कांग्रेस पर कालिख पोतने लेकिन दोनों ही मामलों में उनकी बेसुधी ने काले हाथ खुद अपने ही चेहरे पर रखवा दिये| महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले पर भाजपाई दिखावटी विरोध लगातार कर रहे थे| उन्हें क्या पता था कि सूचना के अधिकार कानून और मीडिया की सुर्खियों बटोरू हरकतों के चलते ये खुद ही फंसते चले जाएंगे! चौबेजी छब्बेजी बनने के चक्कर में दुबेजी भी नहीं रहे? खुद पार्टी अध्यक्ष गडकरी ही लपेटे में गये-लपेटा भी ऐसा कि धन्धेबाज अध्यक्ष के सभी धन्धों की पड़ताल होने लगी है| राजस्थान में भी दारा एनकाउण्टर में फंसे राजेन्द्र राठौड़ सुर्खियां बटोरने में पीछे नहीं हैं| भाजपा और कांग्रेस, दोनों में ज्यादा शातिर कांग्रेस ही लगती है| वह कॉमनवेल्थ घोटालों पर 2-जी घोटालों की राख डाल देती है तो 2-जी घोटालों पर कोयला आवंटन की| एक लाख छयासी हजार करोड़ के इस कोयला घोटाले को वहखुदरा में प्रत्यक्ष पूंजी निवेशसे ढक देती है और एफडीआई के विरोध की आग पर राबर्ट वाड्रा से ही पानी डलवा देती है| राबर्ट के हाथ जलने को हुए तो नितिन गडकरीसताहोने को खुद पड़ते हैं| इस लम्बेफड़का पटाक्षेप क्या गडकरी की बलि से हो पायेगा या नयाफड़खुलना शुरू हो जायेगा| लगता तो नहीं है पटाक्षेप होगा! निश्चिंत रहें सुर्खियां मीडियावालों को मिलती रहेंगी| और नहीं तो मीडियावाले खुद ही सुर्खियां बनने लगेंगे| बनने शुरू जो हो गये हैं|
27 अक्टूबर, 2012

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