Saturday, November 10, 2018

जनता को जागरूक होने की जरूरत (7 जनवरी, 2012)

पांच जनवरी को कला, साहित्य एवं संस्कृति मेले का जिक्र ‘अपनी बात’ में करते जो चूक हो गई थी उस बात का नोटिस आज राजस्थान पत्रिका ने लिया है। वह यह कि कला, साहित्य संस्कृति मेले का जो निमन्त्रण पत्र बंटा वह अंग्रेजी में है। पूरा का पूरा तो इसलिए नहीं कह सकते, क्योंकि आयोजन का नाम हिंग्लिश में जो ठहरा--कला, साहित्य एण्ड संस्कृति मेला। अब प्रशासन ने भी क्या हिंग्लिश को मान्य मान लिया है? लेकिन आयोजन के नाम की लिपि तक देवनागरी ना होकर रोमन है! इसे इसलिए भी गंभीर माना जा सकता है कि इस आयोजन में आमन्त्रित अंग्रेजीदां लोग शायद इतने ही हों, जिन्हें अंगुलियों पर गिना जा सके, फिर भी घोषित राजभाषा के प्रति यह उदासीनता! ऊंट उत्सव का कार्ड होता तो उसके आयोजकों का यह तर्क समझ में आ सकता है कि उनका मकसद जिन्हें निमंत्रित करने का है उनमें अधिकांश गैर हिन्दी भाषी हैं। लेकिन उनसे भी इतनी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि उनका कार्ड कम से कम द्विभाषी हो ही--जिनमें एक का हिन्दी होना जरूरी माना जा सकता है।
जिक्र जब इन आयोजनों का हो ही रहा है तो सजग पाठकों से यह उम्मीद तो की जा सकती है कि वे इन आयोजनों पर हो रहे खर्चों की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांग कर देखें कि ऐसे आयोजनों में कितना खर्च हो रहा है? बीकानेर में इन पांच दिनों में तीन बड़े आयोजन हो रहे हैं पहला कला, साहित्य एवं संस्कृति मेला, दूसरा संगीतोत्सव 2012 और तीसरा ऊंट उत्सव। इनमें पहला व तीसरा आयोजन पूर्णतया सरकारी है और दूसरा संगीतोत्सव 2012 स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा। कार्यक्रमों के आधार पर देखें तो संगीतोत्सव 2012 और कला, साहित्य एवं संस्कृति मेला मोटा-मोट एक से हैं, दोनों ही तीन दिवसीय। आम नागरिक को अपने इस अधिकार के बारे में जानकारी होनी चाहिए कि उसे इन आयोजनों पर होने वाले खर्चों और आयोजनों के स्तर का तुलनात्मक लेखा-जोखा उसके द्वारा जाना-समझा जा सकता है।
अभी जब ‘मैं भी अन्ना’ जैसी ऊर्जा पूरी तरह चुकी नहीं है तो कुछ स्थानीय जागरूकों की यह नागरिक जिम्मेदारी बनती है कि इस ऊर्जा को चुकने से वह रोकें और सूचना के अधिकार के तहत खर्चों की जानकारियां मांगें। आप उसमें जो भी प्राप्त करें उसे स्थानीय टीवी अखबारों के माध्यम से लोगों तक पहुंचायें। क्योंकि इन आयोजनों में लगने वाला धन किसी न किसी स्रोत के माध्यम से प्रत्येक नागरिक से आता है और इसी तरह की जागरूकता से ही फिजूल खर्ची, जो प्रकारान्तर से भ्रष्टाचार की पोषक होती है, रोकी जा सकती है। क्योंकि आनन-फानन में होने वाले ऐसे आयोजनों में न केवल दुगुना, तिगुना और कभी-कभी आठ-दस गुना भी खर्च होता है। हिसाब मांगेंगे तो आपकी आंखें खुली की खुली ही रह सकती है। नागरिक सचेत होंगे तो कार्यक्रमों की गुणवत्ता भी स्वतः लौट आयेगी।
-- दीपचंद सांखला
07 जनवरी, 2012

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