Tuesday, November 20, 2018

शहर विकास : दो खबरें (21 जनवरी, 2012)

रंगीन खबर : जैन पाठशाला सभा
आज के अखबारों में दो खबरें हैं। एक यह कि गंगाशहर रोड से लक्ष्मीनाथ मन्दिर रोड, गोपेश्वर बस्ती को जोड़ने हेतु प्रस्तावित लिंक रोड बनाने के लिए जैन पाठशाला सभा ने विकास और जनहित के नाम पर जमीन देने की सहर्ष सहमति दी है। इस खबर में यह सूचना नहीं है कि सभा इसकी एवज में प्रशासन से कोई दूसरी जमीन लेगी या नहीं। जैन पाठशाला सभा एवज में जमीन लेती भी है तो भी उसकी इस सकारात्मक पहल के उल्लेखनीय हो जाने पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
दिसम्बर की शुरुआत में प्रशासन जब मौके-मुआयने पर पहुंचा तो इसी सभा ने इसका विरोध किया था। तब 5 दिसम्बर की  ‘अपनी बात’ में इस तरह के मुद्दों पर सकारात्मक रुख अपनाने की उम्मीद की थी। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सभा पदाधिकारियों ने अपने रुख में परिवर्तन उसी उम्मीद पर किया या फिर स्वविवेक से। जो निर्णय उन्होंने लिया वह उनकी व्यापक सार्वजनिक सोच को दर्शाता है और इसके लिए वे उल्लेखनीय हैं और हमेशा उल्लेखनीय रहने चाहिए। ताकि इस तरह के विकास के कामों में अपने स्वार्थ से या केवल सुर्खियां बटोरने के मकसद से आये दिन अड़ंगे लगाने वाले कुछ प्रेरणा लें।
रंगहीन खबर : नाड़ दबाना
दुर्योग से आज के अखबारों में एक नकारात्मक खबर भी है। खबर यह कि रानी बाजार इण्डस्ट्रियल एरिया की 5 नम्बर रोड और पट्टी पेड़ा के आस-पास के क्षेत्रों में सार्वजनिक जमीन पर कब्जों को तोड़ने के लिए नगर विकास न्यास ने कल पुलिस बल तो बुला लिया लेकिन न्यास अधिकारी खुद ही नहीं पहुंचे। न्यास अधिकारियों ने ऐन वक्त पर अभियान स्थगित करने का कारण यह बताया कि जिनके वहां कब्जे थे, उनमें से कुछ ने नक्शे पेश कर दिये हैं। अतः उनके अनुसंधान के बाद ही कब्जे हटाने की कार्यवाही की जायेगी।
इस तरह की खबरें पहली बार नहीं छप रही हैं। कई बार ऐसी खबरें देखी गई हैं कि कब्जे हटाने की यह कार्यवाहियां या तो पुलिस बल न मिलने से या फिर इस तरह की अड़चनें आने पर स्थगित हो जाती हैं और स्थगित भी ऐसा कि लंबे अरसे बाद आज तक उसे अंजाम नहीं दिया गया है।
जब भी इस तरह का कुछ घटित होता है तभी दबी जबान से यह खबरें भी आती हैं कि पुलिस की या न्यास अधिकारियों की या निगम अधिकारियों की ‘नाड़ दबवा दी गई है’। शहर विकास के मामलों में बीकानेर के पिछड़ने का एक बड़ा कारण यह ‘नाड़ दबाना’ भी माना जाता रहा है। कह सकते हैं कि अन्य सम्भागीय मुख्यालयों के राजनेता इस तरह के मामलों में ज्यादा परिपक्व देखे गये हैं--वे इस तरह की कार्यवाहियों में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचते रहे हैं। तभी उन सभी शहरों के शहरी विकास के कार्य ज्यादा तेजी से होते देखे गये हैं। बीकानेर के नेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे भी चेतें और दूसरे सम्भागीय मुख्यालयों के नेताओं को अपने शहर के विकास में बाधक बताने की बजाय खुद में परिपक्वता लायें।
-- दीपचंद सांखला
21 जनवरी, 2012

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