Friday, November 23, 2018

ऑटोरिक्शा और एलपीजी (4 फरवरी, 2012)

परिवहन विभाग द्वारा बीकानेर शहर के लिए एलपीजी गैस से चलने वाले तीन पहिया ऑटोरिक्शा के एक हजार परमिट जारी करने की घोषणा के बाद अब इस तरह के ऑटो रिक्शा बनाने वाली कंपनियों के स्थानीय डीलर सक्रिय हो गये हैं। बीकानेर के पर्यावरण और बाशिन्दों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी सूचना है। बीकानेर में अधिकांश ऑटोरिक्शा हाल-फिलहाल डीजल से चलते हैं। कहने को कहा जाता है कि इनमें से आधे अनधिकृत हैं। इन डीजल चलित रिक्शाओं में चूंकि सेल्फस्टार्ट की सुविधा के लिए बैटरी की जरूरत होती है और बैटरी के इस खर्चे से बचने के लिए इन ऑटोरिक्शाओं के मालिक सेल्फस्टार्ट का उपकरण नहीं लगवाते। ऑटोचालक भी बार-बार डोरी खींच कर उसका इंजन चलाने के झंझट से बचने के लिए स्टार्ट इंजन के साथ ही सड़कों पर सवारी का इंतजार करते देखे जाते रहे हैं। अतः जिन-जिन पॉइंट्स पर सवारियां मिलने की संभावना रहती है वहां यह ऑटोरिक्शा लगभग दिनभर चालू हालत में ही खड़े मिलते हैं। इसलिए कोटगेट और कोयला गली के आस-पास का इलाका शहर में सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र में गिना-जाने लगा है। एलपीजी रिक्शा आने के बाद क्या सरकार शहर को इन डीजल ऑटोरिक्शाओं से राहत दिलाएगी?
एलपीजी ऑटोरिक्शा आने से कम से कम इस क्षेत्र के लोगों को तो राहत मिल सकती है लेकिन हो सकता है इसकी कीमत पूरे शहर को भुगतनी पड़े! फिलहाल शहर में एलपीजी का अधिकृत आउटलेट (पंप) एक ही है और वह भी लगभग शहर के एक किनारे श्रीगंगानगर रोड पर। इस आउटलेट पर मिलने वाली एलपीजी गैस सब्सिडी के साथ घरेलू सिलेण्डर में मिलने वाली एलपीजी गैस से लगभग पौने दो गुना महंगी है। अतः न केवल हलवाई बल्कि एलपीजी गैस से चलने वाली कारों में भी इन्ही घरेलू सिलेण्डरों की गैस काम ली जाती रही है। क्योंकि व्यावसायिक सिलेण्डरों में मिलने वाली गैस तो घरेलू सिलेण्डरों में मिलने वाली गैस से तीन गुना से ज्यादा महंगी है!
इन सबके चलते घरेलू गैस सिलेण्डरों को ब्लैक में बेचने वालों का एक संगठित समूह काम करने लगा है जिसमें गैस एजेन्सी के संचालकों से लेकर गैस गोदाम-कीपर, घरों तक पहुंचाने वाले वाहक, गाड़ियों में अनधिकृत रूप से गैस भरने वाले और सरकारी निगरान तक के शामिल होने की बातें होती रहती हैं।
यह भी कि सर्दियों में ठंड और विवाहों के चलते ब्लैक में मिलने वाले सिलेण्डर के दाम दो सौ से ढाई सौ रुपये अधिक देने पड़ते हैं। यह दो सौ से ढाई सौ रुपये की ब्लैक और इन सिलेण्डरों से कारों में अनधिकृत फिलिंग के पचास रुपये चार्ज जोड़ने के बाद यह गैस प्रति किलोग्राम अधिकृत पंप पर मिलने वाली चवांलीस रुपये इकतालीस पैसे प्रति किलोग्राम के लगभग ही पड़ जाती है। शायद यह बात किसी के ध्यान में आती नहीं है! या फिर इतनी दूर अधिकृत पंप तक जाने से बचना भी एक कारण हो सकता है। शहर में आने वाले एक हजार एलपीजी चालित ऑटोरिक्शाओं और इसी गैस से चलने वाली कारों की बढ़ती संख्या के बाद इनके मालिकों/चालकों की मंशा नहीं बदली तो शहर में घरेलू सिलेण्डरों की कमी से त्राहिमाम् होते देर नहीं लगेगी। सरकारी मुलाजिम जिस तरह से काम करते और करने को ‘मजबूर’ होते हैं, उसकी वाकफियत सभी को है?
-- दीपचंद सांखला
4 फरवरी, 2012

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