Thursday, November 1, 2018

लोकपाल/सम्मान समारोह या स्वागत समारोह/सुदर्शन सोबत (20 दिसंबर, 2011)

लोकपाल
अन्ना हजारे निर्मल मन के मासूम इंसान हैं, उनके क्रिया-कलापों और बयानों से यह लगता भी है। लोकपाल बिल को लेकर सरकार की और संसद की सारी सक्रियता का श्रेय अन्ना के इस सक्रियता को दिया जा सकता है। अन्ना का वैचारिक आधार कमजोर है, इसीलिए उनके सहयोगी जैसा चाहते हैं वैसा वे अकसर उनसे करवा लेते हैं। लेकिन इस तरह करवाना दृढ़ता से कम जिद से करवाना ज्यादा लगने लगा है। अन्ना के सहयोगियों का भी कोई वैचारिक आधार लक्षित नहीं होता है। कई कारणों और वर्तमान परिस्थितियों के चलते लोकपाल को लेकर सरकार भी दबाव में है। गांधीजी शुद्ध साध्य के लिए साधनों की शुद्धता पर जोर देते हैं। जिद्दी आग्रह और मजबूरी में स्वीकार का परिणाम संशयशील और विचारणीय माना गया है।
सम्मान समारोह या स्वागत समारोह
नव मनोनीत न्यास अध्यक्ष मकसूद अहमद के सम्मान के समाचार आए दिन आ रहे हैं। भानीभाई भी जब से महापौर चुने गये तब से ही पहले कम दिनों के अंतराल से और अब थोड़े ज्यादा दिनों के अंतराल में उनके सम्मान के समाचार आने रुके नहीं हैं। सामान्यतः इस तरह के  सम्मान कार्यक्रम किसी खास उपलब्धि पर आयोजित होते रहे हैं। तो क्या न्यास अध्यक्ष बनना या महापौर चुना जाना मात्र ही बड़ी उपलब्धि है। न्यास अध्यक्ष या महापौर के ही नहीं, कोई आला सरकारी अफसर भी जब स्थानांतरित होकर शहर में आता है तब भी ऐसे सम्मान समारोह आयोजित होने लगते हैं। स्वागत सेना के इन स्वयंसेवकों से एक गुजारिश है कि आप अपने हितों के चलते इन सबसे नजदीकियां बढ़ाने को यह सब करते हैं तो इन समारोहों को सम्मान समारोह ना कह कर स्वागत समारोह क्यों नहीं कहते? इससे होगा यह कि एक-एक समूह को ऐसे दो-दो समारोह आयोजित करने के अवसर मिल जाएंगे। पदारूढ़ होने पर स्वागत समारोह आयोजित करें और थोड़े समय बाद अपनी नजदीकी स्मरण करवाने को सम्मान समारोह, है ना पते की बात।
सुदर्शन सोबत
म्यूजियम के पास स्थित भ्रमणपथ पर तड़के घूमने वालों में से कई उन्हें माताजी, आंटीजी, बहनजी कह कर बुलाते थे और जो चुप घूमते हैं उनमें से कइयों के मन में उनकी छवि एक ‘बॉस’ की सी थी। बॉस की इसलिए कि वे अकसर महिलाओं के समूह के साथ लगभग नेतृत्व की मुद्रा में चलती थीं। पास से गुजरने वाले सुन सकते थे कि वो अकसर घर-गृहस्थी से संबंधित सलाहें लगभग अनुभूत आत्मविश्वास के साथ देती थीं। यही नहीं यदा-कदा टीवी धारावाहिकों पर उनकी बेबाक टिप्पणी के हिस्से भी सुनाई पड़ जाते थे। दीखने में सत्तर पार की यह महिला अभी दो-चार दिन पहले तक अपने उसी अंदाज में दिखाई दे रही थीं। आज अचानक अखबारों में छपने वाली शोक सूचना के विज्ञापन से मालूम हुआ कि उनका नाम सुदर्शन सोबत था।
-- दीपचंद सांखला
20 दिसम्बर, 2011

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