कल की दुर्घटना जहां हुई वहां एक नर्सिंग होम है। आबादी क्षेत्र है तो इस तरह की आवश्यक सेवाओं की जरूरत भी होगी। अस्पताल खुलेंगे, स्कूल-कॉलेज खुलेंगे, पूजा-स्थल बनेंगे और बाजार भी रोशन होंगे, होने ही चाहिए अन्यथा लोगों का काम कैसे चलेगा? पर देखा यही गया है कि इनमें से अधिकांश नियमों को ताक पर रख कर कार्यशील होते हैं। रिहाइशी भूखण्डों पर व्यावसायिक गतिविधियां तो आम बात है। पवनपुरी की ही बात करें तो यह कॉलोनी आवासन मण्डल द्वारा विकसित है। इसकी योजना में सभी कुछ पूर्व से तय था। कहां बाजार होने हैं, कहां पार्क होने हैं, कहां स्कूल-अस्पताल होने हैं! लेकिन मूल प्लान की हमेशा अनदेखी की जाती रही है-घरों के भूखण्डों पर दुकानें, स्कूल, अस्पताल चलने लगते हैं और पार्कों में पूजा-स्थल बन जाते हैं। यह बनते सो तो बनते हैं अलावा इसके निर्माण के तय मानकों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। पहले तो बिना भू-उपयोग परिवर्तन के यह व्यावसायिक गतिविधियां चलती हैं ऊपर से निर्माण में किनारों की खुली जगह (सैटबैक) को शामिल कर लिया जाता है। अस्पताल, स्कूल, कॉलेज हैं तो वहां नियमानुसार पार्किंग की व्यवस्था नहीं होती। इस सबके लिए जिम्मेदार विभागों जैसे नगर विकास न्यास, आवासन मण्डल, नगर निगम से पूछा जाए कि यह सब यूं ही हो रहा है या उनकी कोई मिलीभगत है? और यदि मिलीभगत है तो लोकेश की मौत के लिए वे भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितना कि वह ट्रैक्टर चालक! इस तरह से जिम्मेदारियां तय नहीं होंगी तो रोज किसी न किसी घर का चिराग बुझेगा।
10 नवम्बर, 2012
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