रेलवे अण्डरब्रिज का मॉडल शहर परिक्रमा पर है| न्यास की ओर से मिल रही खबरों पर गौर करें तो शहर के अधिकांश लोग इस योजना का समर्थन कर रहे हैं| जिले के दबंग नेता देवीसिंह भाटी समर्थन कर चुके हैं तो कल बीकानेर (पश्चिम) के विधायक और संभ्रान्त नेता डॉ. गोपाल जोशी का स्वर अस्पष्टता के साथ विरोध में हैं| उनका मानना है कि शहर के रेल फाटकों का समाधान सिर्फ और सिर्फ रेल बाइपास है| रिश्ते में उनके निकटस्थ और फिलहाल मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी डॉ. बी.डी. कल्ला का भी यही मानना है| इस मुद्दे पर यह बताना तो मुश्किल है कि जोशी, कल्ला से सहमत हुए हैं या कल्ला जोशी से| लेकिन इतना जरूर समझ में आ रहा है कि राधा को यदि नाचना नहीं है तो नौ मन तेल की शर्त लगा दी जाय| यह शर्त उस जमाने में लगाई जाती थी जब नौ मन तेल की व्यवस्था करना लगभग मुश्किल होता था| तब तेल निकालने के लिए पशु चालित घाणियां होती थी, अब तो घाणियां बिजली चालित होती हैं| तेल मिलें भी लगने लगी हैं, इन मिलों में स्पेलर और उनसे भी ज्यादा आधुनिक मशीनों से तेल निकाला जाने लगा है| सो नौ मन तो क्या नौ-नौ टन तेल भी आसानी से उपलब्ध करवाया जा सकता है| इस जमाने में शायद ही कोई राधा होगी जो इस तरह की बचकानी शर्त रखेगी-अपने शहर की बात हो तो तेल तो क्या देशी घी भी टनों में उपलब्ध हो सकता है| तेल जब इतना होने लगा तो इस तेल से वनस्पति घी बनने लगा| कहते हैं अपने शहर में वनस्पति घी के टैंकर के टैंकर रोज खाली होते हैं और उसे प्रोसेस करके नामी ब्रांडों में पैक कर देशी घी की बढ़ी जरूरतों को मांग के अनुसार पूरा किया जाता है|
यह कलमची भी पटरी से उतरते देर नहीं लगाता, बात रेल फाटकों की समस्या की करनी थी-और गाड़ी को पटरी से उतार कर ले गया घी पट्टी में! एक अच्छी और ‘बोदी’ फिल्म ‘नीलकमल’ में राजकुमार के प्रसिद्ध संवाद ‘चली आओ नीलकमल-तुम्हें तुम्हारा चित्रसेन बुला रहा है’ की तर्ज पर मुद्दे को रेल फाटकों की ओर लौटाना होगा| रेल फाटक शहर की बड़ी समस्या हैं, जब मरजी आए तब घंटों शहर को दो फांक किये रखते हैं| यह रेल फाटक समदर्शी भी हैं-फालतू गुजरने वालों-जरूरत से और भारी जरूरत से गुजरने वालों के बीच फर्क नहीं करते| सभी को लाइन से नहीं दोनों तरफ बेतरतीब खड़े कर देते हैं| इतने लोग दोनों तरफ जब अस्त-व्यस्त खड़े हो जाते हैं तो इधर-उधर की दुकानों तक ग्राहक कैसे पहुंचेंगे-ओ... हो...असली समस्या अब समझ आयी-दुकानदार बंद फाटक के दौरान थोड़ा सुस्ता लेते होंगे| अगर फाटकों की समस्या का समाधान हो गया तो उन्हें सुस्ताने का मौका नहीं मिलेगा-तो इसीलिए ये व्यापारी हर समाधान का विरोध करते हैं और विरोधस्वरूप रेल बाइपास की बींटणी चूसने लगते हैं| मान गये रामकृष्णदास गुप्ता को, बाइपास की यह बींटणी उन्होंने बहुतों को पकड़वा दी है-और तो और बी.डी. कल्ला और गोपाल जोशी को भी!
इन संजीदा नेताओं से कोई पूछे कि देश में फाटकों की समस्या के चलते किस शहर में रेल बाइपास बना है? चलो मान लेते हैं-‘मैं तो वही खिलौना लूंगा-मचल गया दीना का लाल’ की तर्ज पर यह जिद जारी ही रहती है तो पहले यह बताएं कि दीना के लाल के लिए सोने का खिलौना आयेगा कहां से और जैसे-तैसे आ भी गया तो किस कीमत पर? बात इतनी ही है कि इस समस्या के व्यावहारिक समाधानों पर विचार किया जाना चाहिए और व्यावहारिक विचार तभी संभव होते हैं जब निहित स्वार्थों से ऊपर उठ कर व्यापक हित में विचार करें|
अण्डरब्रिज का मॉडल देख कर लगता यही है कि पैसे की व्यवस्था हो जाए तो न्यास इसे बनाने के पूरे मूड में है| तभी कोटगेट की तरफ ऊंचाई होने के बावजूद मॉडल में जो पुल सुभाष रोड के मुहाने से पहले पूरा हो जाता है-वही दूसरी ओर ढलान के होते हुए भी पुल को यूको बैंक तक पसरा दर्शाया गया है| ऐसा शायद इस पूर्वाभास के चलते किया हो कि विरोध होगा तो मौल-भाव करके पुल को फड़बाजार पॉइंट तक पूरा करने की शर्त पर व्यापारियों को मना लिया जायेगा| कैबत भी है ‘तमंचे का लाइसेंस चाहिए तो तोप का मांगो’| एक बात और है-हाजी मकसूद को लगता है कि अगले चुनावों से पहले यदि यह अण्डरब्रिज पूरा हो जाता है तो यह ब्रिज बी.डी. कल्ला के लिए वैतरणी नदी की गाय कपिला का काम करेगा|
1 नवम्बर, 2012
1 comment:
दीप जी , आप ने लिखा मैंने पढ़ लिया , कोई संशोधन भी देते, सायद मेरा ज्ञान और विकसित होता इसे पढने के बाद , द्रश्य अच्छा है यथार्थ और परिकल्पना के बिच की जंग इस शहर की आप ने सही उकेरी है पर बिना संशोधन बात अधूरी ही है...
चित्र कार
योगेन्द्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट ,
बीकानेर इंडिया ,
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