Friday, November 9, 2012

बयानों पर अजब प्रतिक्रियाएं


लोक में एक कहावत है-‘दुनिया चढ़े को भी हंसती है और पैदल को भी।कल जब लालकृष्ण आडवाणी ने अपने पचासीवें जन्मदिन पर यह कहा कि प्रधानमंत्री बन पाने का उन्हें मलाल नहीं है आडवाणी ने और भी कुछ कहा होगा पत्रकारों को लेकिन सुर्खी योग्य बयान यही बना। अपनी हस्ती लोग कुछ ऐसी बना लेते हैं या बन जाती है कि वे कुछ बोलते हों तो खबर और कुछ बोलें तो भी खबर।प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को ही लें-उनके द्वारा कुछ बोलने का मलाल मीडिया को तो है ही उनके विरोधी भी आलोचना इसी को लेकर करते हैं। वैसे मनमोहनसिंह ने खामोशी को अच्छी बता कर इसका जवाब दे दिया। आडवाणी ने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया तो उनकी ही पार्टी ने कितना बखेड़ा खड़ा कर दिया था जबकि सभी जानते हैं कि जिन्ना केवल धर्मनिरपेक्ष थे बल्कि नास्तिक भी थे। इस्लाम उनके राजनीति-पेशे की मजबूरी थी। उनको लगता था कि इस्लाम के बिना वे अपनी हैसियत को गांधी-नेहरू के समकक्ष नहीं बना पाएंगे। आडवाणी के जिन्ना वाले बयान पर संघियों ने बखेड़ा खड़ा कर इस बात की ही पुष्टि की कि उन्हें तथ्यों से कोई खास लेना-देना नहीं है। लगे हाथ रामजेठमलानी की बात कर लें-वे अभी सुर्खियां पाने के दौर से गुजर रहे हैं-उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से राजग पर क्या गुजरेगी और भाजपा किस खलबली से दो-चार होगी। यह अलग आशंकाएं हैं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश को क्या-क्या भुगतना होगा। रामजेठमलानी ने कल कहा कि राम अच्छे पति नहीं थे तो यह बात उन्होंने कोईजेठमलानी रामायणसे नहीं कही। रामकथा के लोक में प्रचलित कई रूपों और तुलसीदास की रामचरितमानस में राम को जिस तरह से दर्शाया गया है उसकी एक व्याख्या यह भी हो सकती है। आडवाणी और जेठमलानी के बयानों पर बवाल मचाने वाले देश और समाज को विचारहीनता की स्थिति में ही ले जाना चाहते लगते हैं।
राम जेठमलानी का एक पक्ष और भी है। वे एक मुकदमे की फीस पचास लाख रुपया लेते हैं और प्रत्येक पेशी को भुगताने के बीस-तीस लाख। मोदी पर सलाह से लेकर राम के विरोध में पैरवी के लिये वे कुछ नहीं ले रहे हैं, तो भी एतराज!
इस फीस को सुन कर आप राजेन्द्र राठौड़ से जरूर पूछ सकते हैं कि दारा एनकाउन्टर मामले को सुप्रीम कोर्ट में देखने के लिए राम जेठमलानी को उन्होंने मुकर्रर किया है। इतने रुपये वे लाए कहां से, और भी देने पड़े तो कहां से लाएंगे? माना राजनीति के पेशे में रुपये ऐसे ही आते हैं। तो क्या इस तरह जाने के लिए ही आते हैं?
9 नवम्बर, 2012

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