सूबे की राज्यपाल मारग्रेट आल्वा तीन दिन के दौरे पर बीकानेर में हैं और आज शाम रेलगाड़ी से जयपुर के लिए प्रस्थान करेंगी। इन तीन दिनों में वह विभिन्न कार्यक्रमों में पूरी तरह व्यस्त रहीं। उनके साथ आए उनके पति की तबीयत कुछ गड़बड़ होने के चलते कार्यक्रम को एकबारगी तो दो-दिन में समेटने का अभ्यास भी हुआ लेकिन फिर शायद यहां के डॉक्टरों से मिली आश्वस्ति और उनकी सलाह से पूर्व में तय कार्यक्रम के अनुसार आज रात ही वे निकलेंगी। उनका तीन दिन का यह दौरा संयुक्त परिवार में आए उस निकटस्थ बुजुर्ग के जैसा रहा है जो ऐसे परिवार में लम्बे समय बाद आता है। राज्यपाल जहां भी गईं पूरी दिलचस्पी के साथ सबकुछ समझा-देखा, जितना सम्भव हो पाया सबसे मिलीं भी। आज भी सुबह आम लोगों से मिलने का कार्यक्रम था उनका। बीकानेर में राज्यपालों का दौरा इस तरह का हुआ हो-कम ही याद है। पिछली सदी के आखिरी दशक की शुरुआत में एम. चेन्नारेड्डी
सूबे के न केवल राज्यपाल थे बल्कि 6 दिसम्बर, 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपानीत राज्यों में लागू किये राष्ट्रपति शासन के दौरान वे शासन प्रमुख भी थे। वह न केवल हाथ में डंडे के कारण जाने जाते थे बल्कि अपनी ऊलजलूल आदतों और हरकतों के कारण भी सुर्खियां पाते थे। खैर, विनायक आल्वा के पति की कुशलक्षेम की कामना करता है और उम्मीद करता है कि शाम को जब वे बीकानेर से लौटें तो सुखद क्षणों के साथ लौटें। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए अब तक लगने वाले विशेषण ‘महामहिम’ का उपयोग न करने की हिदायत दे दी है लेकिन इसके बावजूद इस शब्द का प्रयोग कुछ अनभिज्ञतावश तो कुछ लापरवाही में अभी भी करते हैं। इसी तरह की एक हिदायत और आनी चाहिए जिससे राज्यपालों के निवास को राजभवन की बजाय राज्यपाल भवन कहा जाने लगे। राजभवन शब्द अपने आप में सामन्ती छाया लिए हुए है। आजादी के पैंसठ वर्षों बाद भी सामन्ती शब्दावलियों
का मोह न छोड़ना उचित प्रतीत नहीं होता है।
7 नवम्बर, 2012
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