Wednesday, November 7, 2012

भाजपा नहीं दीख रही है अलग


भारतीय जनता पार्टी को अब तक कांग्रेस की फोटोकॉपी कहा जाता था-सभी जानते हैं कि फोटोकॉपी, फोटोकॉपी ही होती है, वह मूल से केवल उन्नीस होती है बल्कि अगर उसे प्रमाणित या ट्रू कॉपी करवाया जाय तो वह सामान्य काम ही निकालती है। भाजपा का ताजा उदाहरण कल का है जिसमें-रामजेठमलानी, महेश जेठमलानी के बाद जसवंतसिंह, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा ने भी पार्टी की छवि बनाये रखने के लिए गडकरी के इस्तीफे की मांग कर दी। इसी के चलते हाल ही के वाड्रा प्रकरण 1977 के बाद के जनता पार्टी के चरणसिंह प्रकरण का स्मरण हो आया। वाड्रा और सोनिया गांधी तो मौन रही हैं लेकिन कुछ बड़े कांग्रेसी भक्ति भाव में बचाव में कूद पड़े। भाजपा में पहले तो गडकरी अभिमन्यु की तरह अकेले ही घिरे थे-कल इससे पसीजकर एस. गुरुमूर्ति के माध्यम से संघ गडकरी के बचाव में उतरा और कांग्रेस की तर्ज पर गडकरी का बचाव भी किया। शायद इस बात पर सहमति बनी कि गडकरी को यह कार्यकाल पूरा कर लेने दिया जाय, दूसरे कार्यकाल के लिए गडकरी का नाम नहीं चलाया जायेगा।
संगठन के तौर पर वामपंथियों के बाद भाजपा सबसे अनुशासित पार्टी मानी जाती रही है। लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह के दृश्यों के माध्यम से भाजपा इन दिनों प्रकट हो रही है उससे पिछली सदी के आठवें दशक की जनता पार्टी सरकार की याद आने लगी है। तब की जनता पार्टी की स्थिति चरणसिंह प्रकरण के समय लगभग ऐसी ही देखी गई थी। जनता पार्टी का स्क्रीन मोरारजी, चरणसिंह, जार्ज फर्नांडिस, अटलबिहारी, चन्द्रशेखर जैसे बड़े-बड़े नामों के चलते 70 एमएम या सिनेमास्कोप जैसा था लेकिन भाजपा जिस स्क्रीन पर दृश्यमान अभी हो रही है वह तो कस्बाई सिनेमाघरों का 35 एमएम का स्क्रीन भी नहीं लगता है। कहा भी जाता है असल हीऑरिजनलहोती है फोटोकॉपी नहीं।
7 नवम्बर, 2012

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