Saturday, November 10, 2012

रोज बुझते चिराग....


मात्र पन्द्रह साल के लोकेश की मौत ट्रैक्टर से कुचले जाने से हो गई। कल की ही घटना है। लोकेश बीकानेर में अपने ननिहाल में रह कर पढ़ रहा था। ननिहाल में निर्भय विचरण की लोकधारणा के विपरीत उसके साथ यह घटित हो गया। लोकेश की और उसके परिजनों की इच्छा थी कि वह डॉक्टर बने। इस दुर्घटना के बहाने बात कई तरह से की जा सकती है, कई वाहन चालक इंजन के चालू होते ही सुध-बुध खो देते हैं, हवा से बात करते हैं या सहयात्री से या फिर मोबाइल पर लग जाते हैं। ऐसी अनुकूलताएं भी हों तो घर-धन्धे की चिन्ता में लग जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि वे जिस मशीन पर सवार हैं उस पर केवल जिस्मानी बल्कि मानसिक नियन्त्रण की सतत् एवं चौकस जरूरत रहती है। अधिकांशतः दुर्घटनाएं सतत् चौकसी के अभाव में होती हैं।
कहने को तो स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक कुछ भी चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है, अधिकांश के पास होते भी हैं। लेकिन इस लाइसेंस को लेने से पहले जिस प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरना होता है, लाइसेंस लेने वाला और इसे जारी करने वाला विभाग, दोनों ही जरूरी नहीं समझते। इस तरह लापरवाही और परिवहन विभाग की गैर जिम्मेदारी भी दुर्घटनाओं से रोज होती मौतों के लिए दोषी है। हमारे देश में नियम-कायदों की अनदेखी के लिए और दुर्घटनाओं अमानत में खयानत आदि के असल जिम्मेदारों के लिए सजा का प्रावधान तो है लेकिन कई कारणों के चलते वे बच निकलते हैं। और कोई बस चले तो भावनात्मक शोषण के जरीये भी दोषी बच निकलता है।
ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ रही है वाहन बढ़ रहे हैं-चालक बढ़ रहे हैं। इन चालकों का प्रशिक्षित और संवेदनशील होना जरूरी है। जिस चालक से यह दुर्घटना हुई है उसके अलावा भी सभी चालक दुर्घटनाग्रस्त लोकेश के परिजनों की मनःस्थिति से गुजरें तो हो सकता है कि वे भविष्य में अपने वाहनों को ज्यादा चौकसी के साथ चलाएं।
10 नवम्बर, 2012

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