Wednesday, May 7, 2014

करणी इंडस्ट्रियल एरिया की आपदा

पिछले दो दिन से बात सार्वजनिक सेवाओं में बरती जा रही लापरवाही-समर्थों, राजनेताओं की इस ओर से अनदेखी और आमजन में जागरूकता की कमी की कर रहे हैं, जिसे हाल ही की दूषित पेयजल आपदा से समझ सकते हैं। बीकानेर के करणी इंडस्ट्रियल क्षेत्र में सभी व्यवस्था और अव्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार 'रीको' है। पानी आपूर्ति की लाइन जहां से गुजर रही है वहां के खड्डे में फैक्ट्रियों के शौचालयों का मल इकट्ठा रहता था-पाइप लाइन लीक हुई और गंदगी रिस कर पेयजल में मिलने लगी। उसी दूषित पानी से यह सब हो रहा है। उधर लापरवाही इतनी कि इसका पता करने में ही दो दिन लग गये और प्रभावितों की संख्या सैकड़ा पार हो गई। वहां सिवरेज नहीं भी डाली गई तो फैक्ट्री मालिकों की जिम्मेदारी बनती थी कि मल-मूत्र के निस्तारण के लिए मानकीय कुइयां बनवाते। उनकी इस लापरवाही से छोटे-निम्न वर्ग के लोगों में कितनों की जान पर बन आयेगी इसकी उन्हें फिक्र कहां? रीको द्वारा विकसित औद्योगिक क्षेत्रों में रीको की ही जिम्मेदारी बनती थी कि फैक्ट्री मालिकों  के इस तरह के लालच को लगाम दे लेकिन इसी तरह की कई छूटें वे किस बिना पर देते रहे हैं, जांच का विषय है।
कहा जा रहा है कि दूषित पेयजल से दो मौतें हुई, पर दोनों ही मृतकों का पोस्टमार्टम क्या इसलिए नहीं होने दिया कि लापरवाही करने के अपराध की संगीनता कम हो। जो समर्थ हैं वे संगठित गिरोहों के रूप में काम करने लगे हैं और कोई भी और किसी स्तर के नये अधिकारी के आने पर ये लोग उसे प्रभावित करने के लिए अभिनन्दन, सम्मान के लॉलीपॉप लेकर पहुंच जाते हैं और उन्हें अपने लालच के पोषक बनाते देर नहीं लगाते। दोनों ही मृतकों का पोस्टमार्टम होना जिम्मेदार फैक्ट्री मालिकों और रीको अधिकारियों को बचाने का पहला कदम कहां? 'मरना-मारना तो ऊपर वाले के हाथों में हैं, जन्म के साथ ही मृत्यु का समय तय हो जाता है' यह ऐसा खतरनाक वाक्य है जिसमें कई गुनाहों को आड़ दी जा सकती है और दूसरे तीसरे दर्जे का जीवन जीने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर वर्ग को फुसलाने का 'धार्मिक' प्रलोभन भी।
फैक्ट्री मालिकों के लालच और रीको के अधिकारियों और कार्मिकों की लापरवाही का ही नतीजा है कि लगभग तीन सौ से ज्यादा जानें सांसत में हैं, परिजन संकट में हैं और जिले का पूरा प्रशासन आकळ-बाकळ है। हमारे देश में इस तरह की लापरवाहियों के लिए पहले तो जिम्मेदारी ही तय नहीं हो पाती, जैसे-तैसे हो भी जाती है तो वाद न्यायालय में पहुंचने तक उसकी सांस फुला दी जाती है। हजार में भी शायद एकाध मामले ही ऐसे होते हैं जिसमें जिम्मेदार को दण्ड या सजा होती है। इसी सबके चलते आए दिन कभी छोटी तो कभी बड़ी यह मानवजनित आपदाएं भुगतनी पड़ती हैं। इस तरह की लापरवाही का नुकसान जितना प्रत्यक्ष दिखता है असल में वह उससे कई गुना ज्यादा होता है। जो सीधे प्रभावित होता है उसे जिन्दगी भर की टीस मिलती है तो प्रशासन और स्वास्थ्य सेवा अपने रोजमर्रा के काम से बे-लेन हो जाती है।
नकारात्मक असर इसका यह होता है कि यदि जिम्मेदार को दण्ड या सजा नहीं मिलती है तो देखा-देखी वह दूसरों को लापरवाह होने को प्रेरित भी करती है। आज फिर लिखना जरूरी है कि सब बातों के लिए आमजन को केवल जागरूक होना होगा बल्कि गलत को गलत कहने की आदत भी बनानी होगी।

7 मई, 2014

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