Monday, May 12, 2014

छप्पन इंची सीना और डेढ़ पसली

भारतीय जनता पार्टी के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव अभियान की शुरुआत में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश की कद काठी की खिल्ली उड़ाते और अपनी शेखी बघारते हुए कहा था कि प्रदेश का शासन गुजरात की तरह  चलाने के लिए छप्पन इंची सीना चाहिए। मोदी जब भी शेखी बघारते हैं तो यह भूल जाते हैं कि इससे किन-किन की खिल्ली उड़ेंगी, लालबहादुर शास्त्री जैसी कद काठी वाले प्रधानमंत्री भी इसी देश में हुए हैं। मोदी के इस कथन के बाद से देश के कई महत्त्वाकांक्षी नेता फीता लेकर अपना सीने नापने में लग गये। मोदी ने पैमाना इतना बड़ा तय कर दिया कि भारत में तो पता नहीं भारतीय राजनीति में इस माप के सीने वाला सामने कोई नहीं आया। सुना है कि इसी निराशा में कइयों ने राजनीतिक पेशे से ही विदा ले ली है। सभी को लगा कि यह मोदी छप्पन इंची सीना कहां से ले आया। यूं तो लोक में प्रचलित इस कैबत 'टके का काम नहीं मिनट की फुरसत नहीं' अनुसार किसी के भी पास समय नहीं है। फिर भी कुछेक ने समय निकाला और पहुंच गये मोदी के कपड़ा सिलने वाले के पास। अपने काम में मशगूल रहने वाले इस टेलर को तब तक पता नहीं था कि मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ही ने मोदी के सीने को लेकर बहस चला रखी है। सो मासूमियत से बता दिया कि मोदी के कुरते में सीने का माप तेंतालीस है यानी असल सीने से कुरता डेढ़-दो इंच तो ढीला रहता ही है। फिर क्या था-समाजवादी पार्टी के किसी छुटभैय्ये दिग्गज ने कह मारा- छप्पन इंच का सीना तो भैंसे का होता है। इसके बाद मोदी ने तो अपना सीना सिकुड़वा लिया पर सोशल मीडिया में यह सीना जब-तब-अब भी फूलने लगता है। अब यह तो पता नहीं मोदी के छपनिये दावे का और दोनों ही मीडिया द्वारा इसे अब तक वेंटीलेटर पर रखने का असल मकसद क्या है पर यह जरूर है कि राज चलाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए ही बूकियों की ताकत। पर जैसा कि प्रियंका गांधी ने जवाब में कहा वह ज्यादा सटीक लगा-उन्होंने कहा है कि देश छप्पन इंच के सीने से नहीं दरियादिली से चलता है।
खैर यह चुनावी दौर फिलहाल तो ऐसी छाप छोड़ रहा है जो लम्बे अरसे तक उतरती नहीं लगती। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकाई विश्व हिन्दू परिषद के आचार्य धर्मेन्द्र फिर चेतन हो गये। अज्ञात कारणों से लम्बे समय से अज्ञातवास भोग रहे आचार्य धर्मेन्द्र पिछले विधानसभा चुनावों में तब चर्चा में गये जब उनकी पुत्रवधू और प्रदेश कांग्रेस की प्रवक्ता अर्चना शर्मा मालवीय नगर जयपुर से कांग्रेस की प्रत्याशी बनी। मीडिया द्वारा कुरेदने पर बहू के प्रति उदारता उन्होंने बरत ही ली।
आचार्य धर्मेन्द्र ने कल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में यह कहकर मोदियाए तरीके से सुर्खी बटोरनी चाही कि डेढ़ पसली की काठीवाले और-सूत कातने वाला राष्ट्रपिता कैसे हो सकता है। अब इन संघी परिवारियों को कौन समझाए कि देश चलाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए और ही डेढ़ दर्जन पसलियां। देश चलाने के लिए किसी निर्मल हृदय महापुरुष की जरूरत है जो आज की राजनीति में फिलहाल नजर नहीं रहा। गांव के ताऊ-बाबे और बड़े की उपमाएं पंचायतें नहीं बख्शती हैं, आम-आवाम की उकत से ही ऐसा सब होता आया है। अब सूचना के अधिकार कानून के तहत भारत सरकार से मांगी सूचना से भी यह स्पष्ट हो गया कि गांधी को राष्ट्रपिता कहने-समझने की दबियारी हम पर शासन की ओर से नहीं है। आपको लगता हो मानें, माने तो मानें। गांधी का कद इसका मुहताज नहीं है-अब तो अधिकांश दुनिया को ही गांधी विचारों में झांकते देख सकते हैं।

12 मई, 2014

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