Friday, March 22, 2013

संजयदत्त सहानुभूति के हकदार, माफी के नहीं


1993 में मुम्बई में अंजाम दिये गए बम विस्फोटों पर उच्चतम न्यायालय का कल फैसला गया है। इस फैसले में अन्य अपराधियों के साथ नरगिस-सुनीलदत्त के बेटे और फिल्म अभिनेता संजयदत्त की पांच साल की सजा की पुष्टि की गई है। टाडा कोर्ट ने संजयदत्त के अपराध के लिए छः साल की सजा सुनाई थी, पर उच्चतम न्यायालय ने इसे एक साल कम कर दिया है। संजयदत्त का अपराध था कि उक्त विस्फोटों के बाद उनके पास से अवैध एके 56 राइफल और रिवाल्वर मिला था। संजय का कहना है कि वह उस समय भारी तनाव में था क्योंकि उनके परिवार को लगातार धमकियां मिल रही थी। तब संजय तैंतीस पार के युवक थे। वे उन नरगिस जैसी अदाकारा और अभिनेता सार्वजनिक-राजनीतिक जीवन में सक्रिय सुनीलदत्त की संतान हैं जिसे उस समय भी हर तरह से विशिष्ट सुविधाएं हासिल थीं। इस सबके बावजूद तब तैंतीस पार के संजय बचकाने में ऐसी आपराधिक हरकत कर गये, जो ज्यादा गम्भीर बात है। इससे जाहिर होता है कि सभी तरह के भौतिकसुखों के बावजूद भी सन्तान यदि भटकती है तो परिवार-परिवेश की लापरवाही भी कहीं कहीं इसके लिए जिम्मेदार होती है, तो क्या नरगिस की मृत्यु के बाद खुद सुनीलदत्त इस मनःस्थिति में नहीं रह गये थे कि वे ध्यान करते कि उनकी सन्तानें किस तरह की मानसिकता से गुजर रही हैं। नरगिस की मृत्यु के बाद सुनीलदत्त ने सार्वजनिक जीवन में अपनी सक्रियता बढ़ा ली थी। शायद इसीलिए अपनी सन्तानों पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाये होंगे।
कल के फैसले के बाद संजयदत्त के प्रति सहानुभूति की लहर सी चल पड़ी है। यहां तक कि प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने भी संजयदत्त को माफी देने की लिखित अपील कर दी। इस तरह की प्रतिक्रियाएं क्या तुलसीदास कीसमरथ को नहिं दोष गुसाईउक्ति को पुष्ट नहीं करती? हो सकता है संजय को भविष्य में माफी दे भी दी जाय तो उस माफी से समाज में क्या सन्देश जायेगा। देश में हजारों-लाखों ऐसे होंगे जिनका कोई निकटस्थ न्यायालय में आपराधिक आरोपों से घिरा होगा या सजा पा रहा होगा। तो क्या उन सभी के लिए इस बिना पर माफी के लिए विचार किया जा सकता है कि उसके किसी प्रिय को, परिजन को, मां को, पिता को, पत्नी या बहन-भाई को या बेटे-बेटियों को उसकी जरूरत है। क्या इस बिना पर किसी अपराधविशेष के बाद अपराधी का जीवन संत जैसा हो गया है तो उसे माफ कर दिया जाय? ऐसे कई विचारणीय मुद्दे हैं जिन पर विचार कर के ही ऐसे किसी मसले पर बयान दिए जाने चाहिए। अन्यथा समाज में न्याय और कानून की प्रतिष्ठा कम या समाप्त होते देर नहीं लगेगी।
संजयदत्त वाली घटना के बाद ही सलमान का चिंकारा काण्ड और हिट एण्ड रन कांड हुआ है, गोविन्दा का थप्पड़ कांड हुआ है, सेफ अली पर इसी तरह के कई आरोप हैं। कई राजनेताओं पर कई-कई संगीन आरोप न्यायालयों के अधीन विचाराधीन हैं। कोई नेता चुनाव जीत जाता है, या उसकी सभा में भारी भीड़ जुटती है तो क्या उसके अपराध माफ कर दिए जाने चाहिएं? अगर ऐसा होने लगेगा तो देश में कानून और व्यवस्था की बची-खुची प्रतिष्ठा भी धूल-धूसरित हो जायेगी।
जरूरत है संजय के परिजन और उसके चाहने वाले न्यायालय के आदेश का सम्मान करें और संजयदत्त बचे अपने दो न्यायिक अधिकारों पहला पुनर्विचार याचिका एवं दूसरा-माफी की प्रक्रिया को अपनाएं। यद्यपि इन दोनों से कोई राहत उन्हें मिलेगी, संभावनाएं कम ही हैं। क्योंकि तो संजय को फांसी की सजा सुनाई गई है और ही उम्रकैद की।
22 मार्च, 2013

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