Friday, March 8, 2013

नन्दू महाराज


पीबीएम अस्पताल में कल फिर हंगामा हुआ और वहां आपात सेवाएं कई घण्टे बाधित रहीं। पहले रेडियोग्राफर और रेजीडेन्ट भिड़े, रोगियों की सार-सम्हाल नहीं हो रही थी तो पूर्व विधायक नन्दलाल व्यास (उर्फ) नन्दू महाराज पहुंच गये। जैसा कि उनका स्वभाव है कि वह दबंग, न्यायाधीश, प्रशासक और कोतवाल, इन सभी भूमिकाओं में तुरत जाते हैं। कल भी ऐसा ही हुआ। स्वयं नन्दू महाराज, उनके समर्थकों और प्रशंसकों का मानना है कि इसके बिना कोई ताबे ही नहीं आता! नन्दू महाराज के इसी व्यवहार के चलते उन्हें नोटिस भी किया जाता है और सम्बन्धित पक्ष घबराता और सहमता भी है।
राजनीति का पेशा बिना परफार्मिंग आर्ट (प्रदर्शन कला) के पुट के अधूरा माना गया है सो व्यावहारिक राजनीति करने वाले सभी अपने-अपने स्वभाव, क्षमता और अनुकूलताओं के हिसाब से अलग-अलग भूमिकाओं में होते हैं। नन्दू महाराज को यही मुफीद लगा और इसी के चलते वह सब बौद्धिक-अबौद्धिक, चल-अचल उन्होंने हासिल किया है जिसके बूते ही वे आज इस हैसियत में हैं।
देश को आजाद हुए पैंसठ साल हो गये हैं। कहने को शासन प्रणाली के हिसाब से हम एक लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं लेकिन आज भी हमें एक लोकतान्त्रिक देश के नागरिक के रूप में प्रशिक्षित होने और उस रूप में व्यवहार्य बनने की जरूरत है। इस तरह से प्रशिक्षित नहीं होंगे तो आए दिन ऐसी समस्याओं का सामना हम करते रहेंगे। यह भी हो सकता है राजशाही को अच्छा कहने लगें, कुछ लोग कहने भी लगे हैं। तो क्या हम लोकतंत्र जोगे नहीं, डण्डे के ही जोगे हैं?
उक्त प्रकार की कई घटनाएं पूरे देश में रोज ही घटित होती हैं, जिनसे जाहिर होता है कि हम लोकतांत्रिक देश के नागरिक नहीं हैं या इस देश की कानून-व्यवस्था में हमारा भरोसा नहीं है। कानून और व्यवस्था से हमारा भरोसा उठ गया है तो इसका जिम्मेदार भी हम अपने को क्यों नहीं मानते। हमारे दिये वोट से सरकार बनती है, सरकार के शासन-प्रशासन के माध्यम से व्यवस्था बनती है और चलती है। जब ऐसा ही है तो बिना सबकुछ सोचे तात्कालिक कारणों से, किसी के कहने से या तुच्छ स्वार्थों के वशीभूत होकर वोट क्यों देते हैं। जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक बदमजगी की ऐसी खबरें भी रोजाना मिलती रहेंगी।
08 मार्च, 2013

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