Saturday, March 23, 2013

हिड़काव : चमगादड़, कुत्ते और मनुष्य


दैनिक भास्कर में आज के स्थानीय संस्करण की एक खबर है पीबीएम अस्पताल के हवाले से। एसपी मेडिकल कॉलेज के निवारणात्मक और सामाजिक चिकित्सा विभाग (पीएसएम) के बाह्यरोगी कक्ष के रिकार्ड के अनुसार कुत्तों के काटे जाने पर लगने वाले निवारणात्मक टीके इस वित्तीय वर्ष में सितम्बर से अब तक 2424 लगाये जा चुके हैं। यह खबर इसलिए बनी कि पिछले वित्तीय वर्ष के इन्हीं छः महीनों में उक्त टीके मात्र 120 ही लगे थे। इन टीकों की खपत अचानक बीस गुना बढ़ना ही खबर का कारण बना है। अब कहने को तो यह भी कहा जा सकता है कि मुफ्त दवाइयों की योजना लागू होने के बाद यह टीके बाजार से कोई लाना ही नहीं चाहता है। अगर जागृति सचमुच इतनी गई तो यह सुखद आश्चर्य है। लेकिन दूसरी तरह के सन्देहों के कारण भी जायज हैं। इस टीके की बाजारू कीमत लगभग साढे पांच हजार रुपये बताई गई है। इस प्रकार पिछले छः माह में ही आपूर्ति की कीमत के हिसाब से इन टीकों पर एक ही अस्पताल में एक करोड़ सोलह लाख पैंतीस हजार दो सौ रुपये खर्च हो गये हैं। इन छः महीनों में इन टीकों की खपत अचानक क्यों बढ़ी इसका कारण उक्त विभाग में कार्यरत िचकित्सक भी नहीं बता पाये।
कहते हैं लगभग सभी आवारों कुत्तों में जानलेवा हाइड्रोफोबिया का वायरस पाया जाता है। यह वायरस सामान्यतः दो प्रकार के बताये गये हैं। एक शांत प्रकृति का तो दूसरा उत्पाती प्रकृति का। उत्पाती प्रकृति का वायरस खुद कुत्ते को उत्पाती बना देता है और वह धक्के-चढ़े मिनखों और पशुओं को काट-काट कर घायल करने लगता है। ऐसे कुत्तों को सामान्यतः अब मार ही दिया जाता है। लेकिन जिन कुत्तों में शान्त प्रकृति का वायरस पाया जाता है, जो लगभग सभी आवारा कुत्तों में पाया जाना बताया है, वह ज्यादा खतरनाक होते हैं। चूंकि कुत्ते मनुष्यों के सहजीवी हैं, इसलिए वे कभी भी किसी को भी काट सकते हैं। इनके काटने से हाइड्रोफोबिया का वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है। पीड़ित पर उसका असर हो उससे पहले उक्त टीका लगा लिया जाय तब तो ठीक अन्यथा उत्पाती होने के बाद का इलाज मेडिकल साइंस अभी तक नहीं खोज पाया है। हाइड्रोफोबिया होने को स्थानीय बोली मेंहिड़क्या होनाभी कहते हैं।
कुछ इस तरह भी....
हिड़क्या या हिड़काव शब्द के हमारे यहां कई तरह के प्रयोग मिलते हैं। इसका एक समानार्थक शब्द पागलपन भी है जिसे स्थानीय बोली मेंगेलाभी कहा जाता है। किसी विपरीत लिंगी में अतिरेक आसक्ति को भी गेलाई, पागल होना कहा जाता है। धन के अत्यधिक लालची को हमारे यहांधनगेलाकहा जाता है। पीबीएम के पीएसएम विभागी पैसे के अपने हिड़काव के इलाज के लिए भी इन टीकों का उपयोग कर सकते हैं! इतना महंगा टीका निजी अस्पतालों और बाजार में पहुंच सकता है, लेकिन धनगेलाई का यह इलाज तो हरगिज नहीं माना गया है। इससे तो संक्रमण और बढ़ेगा ही! और इलाज का यह तरीका रिस्की भी है। अब अखबारों में गया तो हो सकता है, कोई जांच बैठ जाय और जांच करने वाला कोई ईमानदारी और निष्ठा के हिड़काव से ग्रसित हो तो परेशानियां खड़ी होंगी ही। क्योंकि लोक में यह भी कैबत है कि चोर हड़बड़ी में सबूत छोड़ ही जाता है। विज्ञानियों का यह कहना है कि इस वायरस का सर्वाधिक परिवहन करने वाला जीव चमगादड़ होता है। सुकून की बात है कि चमगादड़ मनुष्य को इस योग्य ही नहीं मानते कि वे उसके आसपास रहें।
मनीषी डॉ. छगन मोहता कहते थे कि ज्ञान का भी हिड़काव होता है। ज्ञान के हिड़किये पिंडी पकड़ बहस से चूकते नहीं। उनसे बचना आसान भी नहीं है| आप ऐसा सोचने लगें उससे पहले आज की बात को विराम देते हैं।
23 मार्च, 2013