Saturday, March 9, 2013

कोउ नृप होउ हमहि का हानी


विनायक नेअपनी बातमें एक से अधिक बार इस आम असमंजस को बताया है कि आजकल यह पता ही नहीं चलता कि जमीनों का धंधा करने वाले राजनीति करने लगे हैं या राजनीति करने वाले जमीनों का धंधा! इस गड्ड-मड्ड की पुष्टि आज तब हुई जब स्थानीय अखबारों में प्रोपर्टीज एसोसिएशन के गठन का समाचार पढ़ा| वैसे इस धंधे में आधे से ज्यादा नहीं तो आधे गुल-गपाड़ें की आम धारणा तो है ही|
इस समाचार में एसोसिएशन संरक्षकों और पदाधिकारियों के नाम तो अखबारों में छपे हैं, साथ में उनका संक्षिप्त परिचय भी दे दिया जाता तो बहुत-सी बातें अपने आप ही खुल जातीं! जैसे संरक्षक मण्डल के सदस्य हैं महेन्द्र कल्ला, यह पूर्वमंत्री, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. बी.डी. कल्ला के भतीजे हैं और पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष जनार्दन कल्ला के पुत्र हैं| दूसरे सदस्य हैं डॉ. तनवीर मालावत, पेशे से सर्जन हैं, अच्छे सर्जन माने जाते हैं, पर उनका मन सर्जनी में कम रमता है, कहते हैं जमीनों का लम्बा-चौड़ा कारोबार है, इसी को फलाने-फुलाने के लिए राजनीति करने लगे और 2008 का विधानसभा चुनाव भी बीकानेर (पूर्व) से कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर लड़ चुके हैं, हारने के बाद से कल्ला बन्धुओं से छत्तीस का आंकड़ा है| तीसरे सदस्य हैं शशि शर्मा जो शहर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं, जमीनों का छोटा-मोटा काम करते राजनीति करने लगे और ठीक-ठाक हैसियत भी बनाली है| चौथे सदस्य हैं जगदीश डूडी, यह पूर्व सांसद और वर्तमान जिलाप्रमुख बीकानेर हैं और क्षेत्र केबड़ेजाट नेता रामेश्वर डूडी के भाई हैं, परिवार के सभी तरह के धन्धे यही सम्हालते हैं| एसोसिएशन के संयोजक बनाये गये हैं क्रिकेट और एनसीडीएक्स में रुचि रखने वाले महावीर रांका को जो केवल शहर भाजपा के कोषाध्यक्ष हैं बल्कि भाजयुमो के जिला प्रभारी भी हैं| अतिरिक्त महासचिव बने हैं, युधिष्ठिरसिंह भाटी जिन्हें हाल में बनी भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया है| अभी पूरी कार्यकारिणी चौड़े आना-बाकी है| शेष उन सभी के नाम इस एसोसिएशन पदाधिकारियों की सूची में शामिल पाये जा सकते हैं जो जमीनों का काम करते राजनीतिज्ञ हो गये हैं और वे भी, जो राजनीति करते-करते जमीनों का काम करने लगे हैं| एसोसिएशन ने शायद अभी तक अपना कोई स्लोगन या कहेंआप्तवाक्यतय नहीं किया है| वैसे रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की यह पंक्ति जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने मंथरा के मुंह से कहलवाया है, कैसा रहेगा
कोउ नृप होउ हमहि का हानी
09 मार्च, 2013

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