Friday, March 29, 2013

मलाला युसुफजई के बहाने


खबर है कि पाकिस्तान की स्वात घाटी की छात्रा मलाला युसुफजई अपने अनुभवों की किताब लिखेगी उसकी पुस्तक के अधिकारों के लिए करार हो गया है इस करार की एवज में उसे भारतीय मुद्रा के हिसाब से लगभग सोलह करोड़ रुपये मिलेंगे पाठकों को ध्यान ही है मलाला ने कट्टरपंथियों की इस बात को मानने से केवल इंकार कर दिया कि लड़कियों को नहीं पढ़ना चाहिए, बल्कि कट्टरपंथियों का विरोध करते हुए चुनौती भी दे डाली कट्टरपंथियों ने उस पर गोलियों की वर्षा कर दी गोली सिर में लगी, तुरंत लंदन ले जाया गया वहां उसका दुनिया का बेहतरीन इलाज हुआ अब स्वस्थ है और लंदन के स्कूल में भी जाने लगी है मात्र पंद्रह वर्षीया इस किशोरी के हौसले को दाद पूरी दुनिया से मिली, यहां तक कहा जाने लगा कि वह नोबेल की हकदार है कठमुल्लाओं के खिलाफ हौसले की प्रतीक बनी मलाला के साथ कल हुआ व्यावसायिक सा लगने वाला यह अनुबन्ध विचारणीय है
राजस्थान में पर्यटन भी एक व्यवसाय है जिसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की भागीदारी है इस व्यवसाय में बहुत से लोगों को गाइड के रूप में आजीविका प्राप्त है ये गाइड कुछ तो अधिकृत हैं यानी जिन्हें बाकायदा पर्यटन विभाग से यह कार्य करने का अधिकारपत्र प्राप्त है लेकिन बहुत से ऐसे भी हैं जो बिना अधिकृत हुए ही यह काम करने लगते हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में लपका कहा जाने लगा और अखबारों ने भी इस शब्द को मान्यता दे दी है लपका शब्द लपकने से बना है ये अनधिकृत गाइड अधिकृत गाइडों के पर्यटकों तक पहुंचने से पहले ही उनसे मिल कर गाइड करने का मुखजबानी अनुबन्ध कर लेते हैं| इन अधिकृत गाइडों की सम्पर्क करने की इस शैली को देख कर ही शायद उन्हें लपका कहा जाने लगा है, यद्यपि यह शब्द सम्मानजनक नहीं है
अब कह सकते हैं कि मलाला के मामले में इस उदाहरण के मानी क्या? बात आपकी वाजिब हो सकती है लेकिन आजकल के अधिकांश व्यापारों का बारीकी से अध्ययन करें तो हर व्यापारी लपका ही दीखने लगेगा लगभग सभी व्यापारों की सफलता की शैली लपकना ही हो गई है, तो पुस्तक प्रकाशन ही इससे क्यों अछूता रहे! अभी तक सोलह की हुई मलाला से उसकी आप बीती बेचने का करार कर लिया गया| इससे किसी को कोई मतलब नहीं है कि वह अपनी आपबीती को भाषा और तरतीब दे भी पायेगी या नहीं नहीं दे पायेगी तो उसे भाषा और तरतीब देने वाले किराये पर मिल जायेंगे हमारे राजस्थान में इस तरह की बड़ी चर्चा अकसर सुनने को मिलती है कि एक बड़े समाचार-पत्र समूह के मालिक अपने नाम से छपा सब कुछ प्रकाशित करवाने से पूर्व खरीद लेते हैं तब मलाला कम से कम उनसे बेहतर इस मायने में तो होगी कि यह उसकी आपबीती तो है
पूरी दुनिया मलाला की तारीफ कर रही है, करनी भी चाहिए उसने जो साहस दिखाया वह काबिले-तारीफ है इसी के चलते उसे केवल नया जीवन मिल गया बल्कि पूरी जिन्दगी कुछ कुछ हासिल होता रहेगा लेकिन जिस स्वात घाटी में मलाला जैसी कई किशोरियों का जीवन दावं पर है, पता नहीं कितनों को मार दिया गया होगा और कितनों के साथ बलात्कार हुए होंगे महिलाएं नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं अब तक जो हुआ सो हुआ उनके भविष्य पर क्या बाकी दुनिया इस पर विचार करेगी कि स्वातघाटी जैसी स्थितियों में परिवर्तन कैसे आए? कट्टरपंथियों, कठमुल्लाओं और संकीर्ण सोच वाले लोगों का मन कैसे बदले? केवल मलाला को उसके किये का इनाम देकर क्या हम कर्त्तव्य की इतिश्री मान रहे हैं स्वातघाटी में अब भी स्थितियां वैसी हैं जैसी तब थी जब मलाला चुनौती बनी और चुनौती बन कर उन स्थितियों से दुनिया को रू-बरू करवाया जिनसे वहां की किशोरियां, किशोरियों के मां-बाप और महिलाएं चौबीसों घंटे दो-चार होने को मजबूर हैं
29 मार्च, 2013

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