Tuesday, March 19, 2013

पीबीएम के बहाने


पचहत्तर पार का पीबीएम अस्पताल बीकानेर संभाग ही नहीं अपितु पड़ोसी प्रदेशों के कुछ जिलों और पड़ोसी संभागों के बाशिन्दों के लिए अभी भी उम्मीदें बनाए हुए है। कभी सकारात्मक बातों के लिए सुर्खियां पाने वाला यह अस्पताल अब लगातार नकारात्मक बातों को लेकर चर्चा में रहने लगा है इस अस्पताल का अधीक्षक और सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य बनने की कभी होड़ रहती थी। कहते हैं अब स्थिति यह है किऊपर की मोटी कमाईके बावजूद इन पदों पर कोई आना नहीं चाहता। खासकर अधीक्षक पद पर तोनींद बेचकर ओजका मोळ लेनाजैसा माना जाने लगा है। आये दिन होने वाली बदमजगियों के तनाव अस्पताल अधीक्षक को ही भुगतने होते हैं।
समय और परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न विभागों की व्यवस्था प्रणालियों की समीक्षा और उनमें बदलाव लाने की जरूरत होती है। इसके लिए प्रशासन सुझाव दे सकता है लेकिन उन पर अमल शासन को करवाना होता है। प्रशासन की तो स्थिति यह हो गई है कि उनमें से अधिकांश अपने समय को जैसे-तैसे पार कर ले जाने में ही गनीमत समझते हैं और शासन में मंत्रीपद पाने वालों में आजकल व्यापक समझ और दृष्टिवाले आने ही बन्द हो गये! अन्यथा मन्त्रियों को समय-परिस्थितियों के अनुसार अपने-अपने विभागों की व्यवस्था में बदलाव की पहल करनी चाहिए। इस तरह की पहल का वर्तमान में सर्वथा अभाव देखा गया है। कुछ बदलाव हुए भी हैं तोमाथे आनेपर ही हुए हैं। पीबीएम में होने वाली बार-बार की बदमजगियों को देखते हुए जरूरत है कि प्रदेश और देश के इस तरह के सार्वजनिक अस्पतालों की व्यवस्था में परिवर्तन किया जाए अन्यथा इनका बचा-खुचा ढांचा चरमराते देर नहीं लगेगी।माथे पर आयेगीतब तक देर हो जायेगी।
विनायक ने 3 नवम्बर की अपनी बात में पीबीएम के सन्दर्भ से जो सुझाया है उसे यहां उद्धृत इस उम्मीद से कर रहे हैं कि शासन को इस तरह भी विचार करना चाहिए।
इन बड़े अस्पतालों के अधीक्षक-उपाधीक्षक पदों पर भारतीय और राज्य सेवा के प्रशासनिक अधिकारियों को लगा दिया जाय-ऐसी सलाह को जायज नहीं कहा जा सकता। लेकिन प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों को इन पदों पर लगाना भी उचित नहीं लगता। इससे उनको अपनी कक्षाएं लेने में बाधा आती है और यदि वे ऐसी फैकल्टी से हैं जिन्हें आउटडोर भी देखना होता है तो उस सेवा को भी ढंग से नहीं कर पाते।
राज्य सरकार को चाहिए कि हॉस्पिटल प्रशासन की नई सेवा शुरू करे और इन अस्पतालों के अधीक्षक और उपाधीक्षक पद पर उससे चयनितों को ही लगाएं ताकि डॉक्टर आजीवन अपने पेशे के साथ न्याय कर सके और सोलह सौ वर्षों से उनके द्वारा ली जा रही डॉक्टरी प्रतिज्ञा पर भी वे खरे उतरें।
इस सेवा की परीक्षा के लिए वही पात्रता रखें जिन्होंने एमबीबीएस के बादमास्टर्स इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशनकी डिग्री ले रखी हो-यदि ऐसा होता है तो अकादमिकों और प्रशासनिकों के अहम् टकराने की सम्भावनाएं भी कम रहेंगी और इन अस्पतालों का ढर्रा भी कुछ ठीक होगा।
19 मार्च, 2013

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