Thursday, June 5, 2014

सड़कों के शिकार

केन्द्रीयमंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद सड़क सुरक्षा से संबंधित मानकों और लापरवाहियों पर मीडिया के विभिन्न रूपों में दो दिन से चर्चाएं हो रही हैं। भारत में प्रतिदिन औसतन 400 लोग सड़क-काल के ग्रास बनते हैं। इन आंकड़ों की रोशनी में ही बात करें तो जिस दिन मुंडे का देहान्त हुआ उसी दिन 399 लोग सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हुए होंगे और प्रतिदिन होते ही हैं लेकिन वे सभी स्थानीय संस्करणों की खबर भी बनते हैं कि नहीं कह नहीं सकते।
भारत सड़क दुर्घटना में मारे जाने वालों की संख्या में अव्वल है, कभी चीन था लेकिन उसने तय करके योजनाबद्ध तरीके से दुर्घटनाओं के विभिन्न कारणों की पड़ताल की और आशाजनक नतीजे भी हासिल किए। हमारे देश में राजेश पायलट, अबरार अहमद और साहिबसिंह वर्मा और अब गोपीनाथ मुंडे जैसे कोई बड़े नेता इस तरह की दुर्घटना के शिकार हों तभी कुछ दिनों के लिए 'मसाणिया बैराग' उपड़ता है और चर्चा की रस्म अदायगी के बाद पूर्ववत उसी ढर्रे पर लौट आते हैं।
ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के समय से शुरू होने वाली ड्राइविंग मानकों पर लापरवाही सड़कों के प्रत्येक चप्पे पर देखी जा सकती है। सड़क पर चलने की सावधानियां प्रत्येक उसके लिए तय है जो इसका उपयोग करता है। पैदल चलने वाले से लेकर दुपहिया वाहन चालक जिनमें साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल सवारों, तिपहिया और छोटे-मोटे सभी वाहन चालकों और उनमें सवार तक शामिल हैं। पर देखा क्या जाता है कि सड़क पर सवार प्रत्येक व्यक्ति कहीं कहीं कोई लापरवाही करता ही है। ऐसी व्यक्तिगत लापरवाहियों को प्रोत्साहित करने का काम भी वही इकाइयां करती हैं जिनके जिम्मे इन पर अंकुश लगाने की ड्यूटी है यानी पुलिस महकमा और परिवहन विभाग। परिवहन विभाग जब लाइसेंस देते वक्त ही तय मानकों पर आवेदक को नहीं परखता तो बाद में उनमें से कोई लापरवाह ड्राइविंग सीट पर बैठने लगेगा तो वह क्यों बरजेगा। कोई बरजना चाहे तो भी हर लापरवाही की रिश्वत तय है, रिश्वत नहीं तो किसी नेता या दबंग का फोन आना तय है। ठीक इन्हीं परिस्थितियों से गुजरने को पुलिस महकमा भी मजबूर है। जिन्हें हम नियम कायदे बनाने और उन पर चलाने की जिम्मेदारी सौंप-चुनकर भेजते हैं, ऐसे ही अधिकांश को इन नियम कायदों को तोडऩे का दबाव बनाते भी आए दिन देखते हैं।
कहते हैं सत्तर प्रतिशत दुर्घटनाएं ड्राइवर की लापरवाही से होती है। ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार लापरवाह खुद भी होता है, कई बार नहीं भी होता लेकिन अधिकांश बार शिकार वह होते हैं जो तात्कालिक तौर पर उस दुर्घटना के जिम्मेदार नहीं होते।
इसके अलावा इन दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण तकनीकी खामियों के साथ बनी सड़कों को भी माना जाता है। भारत में इस लापरवाही की बारम्बारता ज्यादा देखी जाती है। अलावा इसके एक और कारण जो पिछले वर्षों में विकराल हुआ है वह यह कि प्रदेश सरकारों के राजस्व लालच के चलते शराब पीकर ड्राइविंग करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। अधिकांश सरकारें राजस्व के इस लोभ में राजमार्गों पर शराब की दुकानें खुलवाने की होड़ में लगी हैं। ये राजमार्ग जहां प्रदेश सीमाओं को क्रॉस करते हैं और दोनों प्रदेशों की शराब की दरों में यदि अन्तर है तो जिस तरफ की दरें कम हैं वहां इन शराब की दुकानों की रौनक देखते ही बनती है।
उक्त सभी कारणों की जड़ को टटोलें तो प्रत्येक क्षेत्र में हर तरह का भ्रष्टाचार इसका मुख्य कारण है, जिसका पोषण अपरोक्ष रूप से हम मतदाता ही करते हैं, भ्रष्ट लोगों को चुनकर। यह बात अलग है कि इसके शिकार इसे सीधे पनपाने वाले भी कई बार हो ही जाते हैं, अधिकांशत: शिकार तो भ्रष्टाचार को अपरोक्ष पोसने वाले ही होते हैं।

5 जून, 2014

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