उल्लेख मिलता है कि पिता के उलाहने को चुनौती मान कर वर्तमान उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के इस भू-भाग की ओर आए बीका ने अपने लवाजमें के साथ उसी क्षेत्र से प्रवेश किया जहां आज गजनेर और कोडमदेसर स्थित हैं। मान सकते हैं इतिहासोल्लेख के अनुशरण में वसुन्धरा राजे भी बीकानेर संभाग के लिए घोषित ‘सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम के तहत गजनेर को बीकानेर जिले का औपचारिक द्वार मानते हुए गजनेर पैलेस में ही रुक कर इस आयोजन को दिए गये शीर्षक को सार्थक कर रही हैं।
लेकिन क्या सचमुच ऐसा है, कह सकते हैं नहीं। पिछली सदी के दूसरे दशक में गांधी जब अफ्रीका से लौटे तो उनके द्वारा वहां किए गए सत्याग्रह के आधार पर स्वायत्तता के लिए यहां आन्दोलन कर रहे लोगों को लगा कि हम छड़े-बीछड़े आन्दोलनकारियों का नेतृत्व यदि गांधी स्वीकार कर लें तो इसे गति मिल सकती है। गांधी ने इस आग्रह को स्वीकार करने से पहले पूरे देश को जानना-समझना चाहा और आवागमन के लिए उपलब्ध सामान्य साधनों से पूरे देश की यात्रा के बाद ही आन्दोलन में शरीक हुए। उस दौरान गांधी ने तय कर लिया था कि जब तक देश के प्रत्येक नागरिक के जीवनयापन की सभी तरह की न्यूनतम जरूरतें सम्मानजनक ढंग से पूरी नहीं हो जाएंगी तब तक वह अपना गुजर-बसर न्यूनता में ही करेंगे। इसके बाद से ही गांधी ने न केवल अपने खान-पान बल्कि रहन-सहन में भी जीवन पर्यंत केवल लंगोट से तन ढका और आश्रमों में रहे।
गांधी के इस भाव और तौर-तरीकों से कांग्रेसियों का तब भी कोई सरोकार नहीं था, आजादी बाद शासक बनने के बाद तो अधिकांश ने शाही तौर-तरीके ही अपना लिए। आजादी बाद के इन छासठ सालों में गरीब और गरीब होता गया और जिनको भी सत्ता का कोई रूप हासिल होता गया, वह विलासिता से जीवनयापन करने लगा। कांग्रेस ने जिस विलासी संस्कृति को अपनाया भाजपा ने सत्ता में आने पर उसे और पुष्ट ही किया है।
प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे अपने शासन के साथ ‘सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम के तहत तीस तक बीकानेर संभाग में ही रहेंगी। बीकानेर के जो पड़ाव स्थल तय किए हैं उनमें स्वयं वसुन्धरा होटल गजनेर पैलेस में रुकेंगी, मंत्रिगण और बड़े अधिकारी गंगा महल और राजविलास होटलों में रुकेंगे। ये तीनों ही होटल निजी क्षेत्र के हैं और इनका प्रतिदिन का कमरा किराया एक मजदूर की औसत मासिक आमदनी से ज्यादा ही होगा। शासन यदि सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के आवास स्थलों यथा सर्किट हाउस और ढोलामारु पर्यटन गृह का उपयोग करता तो भिन्न संदेश भी जाता और इस बहाने इनके रख-रखाव का काम भी हो जाता। शेष बैठकों वगैरह के लिए भी शासन ने वेटेनरी विश्वविद्यालय के भवन को ही चुना है। इसे नये तरीके से सज्जित करने पर ही हापड़-धापड़ में लाखों रुपये खर्च हो गए हैं। यह तो विश्वविद्यालय प्रशासन ही बताएगा कि इस धन की अचानक व्यवस्था कैसे हो गई।
हां, जिले की प्रतीकात्मक
जनसुनवाई जरूर डूंगर कॉलेज के भवन में रखी गई है जैसी प्रजा वैसा स्थान और जैसे शासक वैसे उनके आवास।
अब देखने वाली बात यही होगी कि शासन आपके द्वार तक आकर कितना खर्च करके जिले और संभाग को कितना दे जाता है। इस आयोजन के खर्चे का मोटा-मोटा हिसाब लगाएं तो इन बारह दिनों का खर्चा करोड़ों में तो बैठगा ही। सूचना के अधिकार कानून में यह जानना मुश्किल भी नहीं है। जितना बताएं उससे दुगुना खर्चा तो मान ही लेना चाहिए, क्योंकि अधिकांश खर्च अन्य मदों में दिखा दिया जाता है। तलपट यही देखना है कि इस दौरान इस संभाग को कितना और क्या-क्या हासिल होता है। वैसे इस आयोजन की घोषणा के साथ से ही लगने लग गया था कि इस बार सिर्फ खानापूर्ति होनी है। वसुन्धरा आगमन के समय से अठारह घण्टे पहले तक ही व्यवस्थित विस्तृत कार्यक्रम तय नहीं हो पाया है।
19 जून,
2014
No comments:
Post a Comment