Thursday, December 5, 2013

ये ऑपिनियन और एग्जिक्ट पोल

बीकानेर के जूनागढ़ में बरसों पहले हथियारों की सजावट में धनुष-तीर और कमान भी थे और साथ में तुक्के भी। पता नहीं अब हैं कि नहीं। जो गाइड हुआ करते थे वह इनका विवरणतीर नहीं तो तुक्का ही सहीकैबत के साथ बताते रहे हैं। यानी तीर की ही आकृति के (एक-तिहाई या एक-चौथाई लम्बाई के) इन तुक्कों का उपयोग तीरों के खत्म होने पर आपातकाल में किए जाने का उल्लेख मिलता है।
इसका स्मरण अभी एग्जिक्ट पोल (मतदान बाद के सर्वेक्षण) के बहाने इसलिए गया कि पांच प्रदेशों में हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनावों पर करवाए जाने वाले एग्जिक्ट पोल के नतीजों पर कल शाम से चर्चा होने लगी है। पिछले दो-एक दशकों से होने वाले इन सर्वेक्षणों में कुछेक को छोड़ कर याद नहीं पड़ता कि इन नतीजों के कयास कभी सटीक रहे हों। कुछ रहे भी हों तो उन्हें अंग्रेजी की कहावतथ्योरि ऑफ प्रॉबेबिलटि’ (संभाव्यता सिद्धांत) की आड़ में प्रमाणित घोषित कर दिया जाता है। इस कैबत में माना जाता है कि सौ सिक्कों को उछाला जायेगा तो आधे सिक्के सीधे और आधे उलटे गिरेंगे। इसी तरह इन ऑपिनियन और एग्जिक्ट पोलों के परिणामों में मेल लगभग बैठ जाता है तो यह अपवाद के नियम की ही पुष्टि करता है।
शुरू में तीर और तुक्के की बात इसीलिए की थी कि इस तरह के अधिकांश सर्वेक्षण नमूना राय के आधार पर किए जाते हैं। क्षेत्र के कुछ चुने हुए स्थानों पर कुछ चुने हुए लोगों की राय जानी जाती है। अगर यह क्षेत्र और लोग व्यापक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं तो सामान्यत: कोई पुख्ता नतीजा सामने नहीं पाता, और जिन सर्वेक्षण एजेन्सियों के नतीजे असल नतीजों के सर्वाधिक नजदीक होते हैं वह अपने इस तुक्के से ही खुश होकर वाह-वाही लेने में जुट जाती है।
देश में चुनाव प्रक्रिया ना केवल लगातार दक्षतापूर्ण होती जा रही है बल्कि मतदाता भी पहले की तरह मुखर ना रहकर घुन्ने होते जा रहे हैं। अलावा इसके इन सर्वेक्षणों को देश-काल, परिस्थिति जैसे तीनों अहम् प्रभावकों की रोशनी में कितना जांचा परखा गया है, इसका महत्व भी कम नहीं होता।
किसी भी प्रदेश में किन क्षेत्रों में यथा गांवों या शहरों में मतदान प्रतिशत कितना रहा, किस विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवार कौन है, उसकी पार्टी से सामान्यत: कौन-सा वर्ग प्रभावित रहा है और उसमें बदलाव हो रहा है तो क्यों? एक क्षेत्रविशेष के विशेष मतदान केन्द्रों पर मतदान का प्रतिशत क्या रहता है? जातीय और वर्ग बहुल मतदान केन्द्रों पर मतदान में उत्साह और शिथिलता, मौजूदा विधायक के प्रति रोष या उसके प्रतिद्वंद्वी के प्रति अनमनापन भी मतदाता की उदासीनता का एक कारण हो सकता है। अलावा इसके पार्टी या उम्मीदवार-विशेष के कार्यकर्ताओं का मतदान के दिन सक्रिय होना भी उनकी लय के मतदाताओं में प्रेरक का बड़ा काम करता है। कौन उम्मीदवार किन क्षेत्रों में वोट खरीदने और प्रभावित करने के लिए कितना धन और दारू बंटवाने का दुस्साहस करता और गुंजाइश निकाल लेता है, ऐसे कई कारण हैं जिनका ध्यान इन सर्वेक्षणों में जब तक नहीं रखा जायेगा तब तक ये सर्वेक्षण नतीजे तुक्के की भूमिका भी निभा पाएंगे, कह नहीं सकते।

5 दिसम्बर, 2013