Friday, December 13, 2013

समाज, राजनीति और जातीय जंतर--पांच

पुष्करणा समाज में जिन-जिन उपजातियों को उनके अंग्रेजी प्रथमाक्षरों के आधार पर ओबीसी कहा जाता था उन-उन उपजातियों की नयी उपमाओं को हाल ही के नये वर्गीकरण में अचानक शिड्यूल्डकास्ट और तथाकथित मध्य की उपजातियों को ओबीसी कहा जाने लगा। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जब बीकानेर (पश्चिम) क्षेत्र के लिए भाजपाई उम्मीदवारों की दावेदारी का दौर चल रहा था तब बाकाडाकियों ने इस तरह की संकीर्णताओं को यह कह कर बल दिया कि यदि गोपाल जोशी को पार्टी उम्मीदवार नहीं बनाती है तो किसी युवा पर ही दावं खेलेगी। उस स्थिति में संघ से जुड़े और वरिष्ठ भाजपा नेता ओम आचार्य के भतीजे विजय आचार्य अथवा मक्खन जोशी के पोते और वसुन्धरा राजे के प्रिय होने का दावा करने वाले अविनाश जोशी का नाम प्रमुख है। यह धारणाएं भी प्रकट की जा रही थीं कि यदि विजय आचार्य को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया तो उनके उच्च उपजाति होने के कारण पुष्करणा समाज के वे बहुसंख्यक जिन्हेंओबीसी’, ‘शिड्यूल्ड कास्टकहा जाने लगा है, वे सब कल्ला के साथ हो जायेंगे क्योंकि कल्ला पुष्करणाओबीसीसे आते हैं और पार्टी यह सीट खो देगी। यदि अविनाश जोशी को उम्मीदवार बनाया जाता है तो चूंकि वह भीओबीसीहैं इसलिए पुष्करणा समुदाय के एक बड़े हिस्से में सेंध लगाने में वे सफल होंगे।
इसी चुनावी दौर में एक और जातीय फैक्टरबल्ला नहीं तो कल्ला नहींनारे के साथ बड़ी तेजी से चला। बात यह हुई कि आजादी के समय में बीकानेर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रहे रामरतन कोचर के पुत्र वल्लभ कोचर ने बीकानेर (पूर्व) से कांग्रेसी उम्मीदवार के रूप में अपनी दावेदारी जता दी। वल्लभ लम्बे समय से संभाग के अनूपगढ़ क्षेत्र में कांग्रेस के लगभगहोल टाइमरकार्यकर्ता हैं और वहां कर्मठ और संघर्षशील कांग्रेसी माने जाते रहे हैं। परिसीमन से पहले तक यह माना जाता रहा था कि खाजूवाला नया विधानसभा क्षेत्र बनता है तो अनूपगढ़ से लगते इस क्षेत्र से वल्लभ कोचर की दावेदारी पुख्ता होगी। लेकिन, खाजूवाला भी अनूपगढ़ की तरह सुरक्षित क्षेत्र हो जाने से वल्लभ कोचर के मंसूबे धरे रह गये। कोचर बिना किसी खास जातीय आधार के अनूपगढ़-खाजूवाला में सतत सक्रियता के चलते अपनी ठीक-ठाक उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हैं। लेकिन इन चुनावों में जब बीकानेर (पूर्व) क्षेत्र से 56 दावेदारियों के बावजूद कांग्रेस में काल दिखा तो इनमें वल्लभ कोचर भी शामिल हो लिए। अशोक गहलोत की नजरों में रहे कोचर की दावेदारी को अन्यों की तरह अगंभीर नहीं माना जा रहा था। सो इस तरह खुले आकाश के किन्ने (पतंग) कोचर की उम्मीदें भी बढ़ गई। बिना यह जाने कि यदि इस क्षेत्र से दावेदारी करनी ही थी तो कम से कम साल-छह महीने तो क्षेत्र से अपना जुड़ाव दर्शाते। उम्मीदवारी नहीं मिली तो वणिक समुदाय नेबल्ला (वल्लभ) नहीं तो कल्ला नहींके नारे को मुखर कर दिया। जिससे थोड़े बहुत वोटों का नुकसान डॉ कल्ला को इसलिए हुआ माना जा रहा है क्योंकि इस समुदाय की कोचर उपजाति का अधिकांश वोट रामरतन कोचर की वजह से हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है। शेष वणिक समाज का बड़ा हिस्सा बीकानेर में तो पिछले पैंतालीस वर्षों में कांग्रेस के साथ कम ही रहा है। 1980 के चुनाव जरूर थोड़े अपवाद माने सकते हैं।
अलावा इसके अपनी सोशल इंजीनियरिंग छवि के चलते कांग्रेस को जिले की सात में से एक सीट अल्पसंख्यक कोटे या मूल पिछड़ों को देनी थी। अल्पसंख्यक को पिछले चुनाव में देकर आजमा लिया और इस चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को। वल्लभ कोचर को अगले चुनावों तक अपनी दावेदारी बनाये रखनी है तो क्षेत्र में सक्रियता दिखानी होगी अन्यथा वे भी पैराशूट से उतारे गये उम्मीदवार ही कहलाएंगे।

13 दिसम्बर, 2013

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