Thursday, December 26, 2013

कर्तव्यहीनता की उपज है संवेदनहीनता

कर्तव्यहीनता के दो बड़े दुष्परिणाम भ्रष्टाचार और निकम्मापन हैं। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि इनकी जुगलबन्दी के विपरीत रंग भी अवलोकनीय हैं। जैसे किसी सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम के दफ्तर में काम होने की शिकायत के उलट कुछ लेन-देन के बाद उसका तत्परता से हो जाना अचम्भित करने वाला होता है। निकम्मापन इस बात का आदी हो जाता है कि कार्य के लिए सक्रिय या कर्तव्यनिष्ठ होने के लिए उसे अतिरिक्त क्या हासिल होगा। यदि नहीं होता है तो जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल की आंख बैंक की हाल ही में सामने आई जैसी घटनाएं सामने आती हैं, जिसमें नेत्रदान की हुई लगभग साढ़े सात सौ आंखें नष्ट हो गईं। ऐसी घटना कोई इकलौती हो ऐसा भी नहीं है। इससे कई गुना अधिक घटनाएं सुर्खियां ही नहीं पाती हैं। कुछ वर्ष पूर्व जयपुर मेडिकल कॉलेज के हवाले से समाचार आया था कि देहदान करनेवालों के शव चूहों का भोजन बन रहे हैं। तब भी ऐसी विचलनकारी घटना ने सुर्खी पायी थीं। इस तरह की हर घटना का खबर बनने के मानी यह नहीं होता है कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। समर्थों में लगातार बढ़ती कर्तव्यहीनता की संस्कृति उन्हें संवेदनहीन बनाने से नहीं चूकती। सभी सरकारी अस्पतालों की बद से बदतर होती जा रही स्थितियां इसका प्रमाण हैं, जहां से संवेदनहीनता की दसियों घटनाएं रोजाना सुर्खियां बन सकती हैं, लेकिन मीडिया भी ठठेरे की बिल्ली बन चुके उसी समाज का हिस्सा है जो इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज करने लगा है। इसके लिए एक कुतर्क और दिया जाने लगा है कि इस तरह की खबरें यदि रोज सुर्खियां पाएंगी तो नेत्रदान और देहदान के अभियानों को धक्का लगेगा। मगर इसी बिना पर ऐसी लापरवाहियों पर पर्दा डालते रहना भी कितना उचित होगा?
विनायकके पास ऐसी कोई सूचना नहीं है कि बीकानेर से आए दिन नेत्रदान की और कभी-कभार देहदान की खबरों से प्रेरित होकर सूचना के अधिकार के तहत ऐसी जानकारी चाही हो कि नेत्रदान की गई आंखों का उपयोग क्या-कैसे हुआ? हो सकता है जोधपुर की माथुर अस्पताल जैसा ही खुलासा यहां भी सामने आए। नेत्रबैंक खुद आगे होकर महीने में एक बार विज्ञप्ति जारी करके अपना नेत्र सम्बन्धी रिकार्ड बताएं कि इस माह इतनी आंखें दान में आईं और इतनी का सफल प्रत्यारोपण किया गया, इतनी खराब हो गई और इतनी शेष बची हैं। शेष भी बची हो तो भी विज्ञप्ति द्वारा यह बताए कि इस माह जरूरतमंदों की फेहरिस्त से कम आंखें दान में आईं। ठीक ऐसी ही पारदर्शिता देहदान को लेकर स्थानीय मेडिकल कॉलेज को बरतनी चाहिए। इसके दोहरे लाभ होंगे--एक तो यह कि इनसे सम्बन्धित विभाग मुस्तैद रहेगा और दूसरा इस तरह की सकारात्मक सूचनाओं से लोग नेत्रदान और देहदान के लिए प्रेरित भी होंगे।

26 दिसम्बर, 2013

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