Friday, December 20, 2013

देवयानी का मसला

अमेरिका में भारतीय दूतावास की अधिकारी देवयानी खोबरागडे का मामला आज उस समय ज्यादा पेचीदा हो गया जब अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि देवयानी के खिलाफ मामले वापस नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वह काम कानून व्यवस्था देखने वालों के पास हैं और उन्हें यह सब अमेरिकी कानूनों के अनुसार ही देखना है।
इधर अपने देश में इसे प्रतिष्ठा मान लिया गया। यह कहने में हिचकना नहीं चाहिए कि जिस समझदारी से भारत द्वारा इस पर प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए उस तरह से नहीं देकर दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के आगे यातायात को  संयमित रखने के लिए लगाए गये बेरिकेट्स और स्पीडब्रेकर को हटा दिया गया, प्रतिक्रिया को इस तरह अंजाम देना बचकानी हरकत ही कहलाएगा। यह बेरिकेट्स और स्पीडब्रेकर बिना नियम कायदों और जरूरत के लगाये गये तो यह विशेष सुविधा सिर्फ अमेरिकी दूतावास के लिए ही क्यों हुई यदि इन्हें किसी विशेष परिस्थिति और जरूरत के लिए लगाया गया तो बच्चों के खेल की तरह इस तरह उन्हें नहीं बिगाड़ा जाना चाहिए।
अमेरिकी राजनयिकों को दी हुई कुछ और विशेष सुविधाएं भारत ने देवयानी की घटना के बाद वापस ले ली हैं। इस तरह की सुविधाएं देते वक्त यह ध्यान क्यों नहीं रखा गया कि अमेरिका भी क्या अन्य देशों या खास कर भारतीय राजनयिकों को ऐसी सुविधाएं देता है क्या? यदि नहीं देता है तो पलक पांवड़े बिछाने को हम आतुर क्यों रहते हैं। भारतीयों के साथ आए दिन होनेवाले असहज व्यवहार की खबरें हम सुनते-पढ़ते आए हैं। यहां तक कि अमेरिका ने अपने नियम कायदों के आगे हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम का लिहाज भी नहीं किया। इस तरह के अमेरिकी नियम कायदे यदि अव्यावहारिक हैं तो भारत सहित अन्य देशों को अन्तरराष्ट्रीय मंच पर इनके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और यदि ऐसा सुरक्षा के लिहाज से चाक चौबंदी की जरूरत के अनुसार होता है तो अन्य देशों को इससे सीख लेकर इस तरह की व्यवस्थाएं अपने यहां भी लागू करनी चाहिए। आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्थाएं यदि सही हैं तो हमें सीखना चाहिए, खास तौर पर यह कि, अमेरिका अपने तय नियम कायदों में तो ढिलाई बरतता है और ही किसी का लिहाज करता है।
देवयानी पर जो आरोप लगे हैं उनका दूसरा पक्ष यह है कि अमेरिका ने अपने यहां न्यूनतम मजदूरी का मानक इतना ऊंचा कर रखा है कि अधिकांश देशों के दूतावासों में काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी वह न्यूनतम मजदूरी अपने निजी कर्मचारियों को देने में असमर्थ होते हैं। कइयों की इतनी तनख्वाह खुद की भी नहीं होती। देवयानी पर लगा एक आरोप अपने घरेलू नौकर को कम तनख्वाह देना भी है। अधिकांश देशों के दूतावासी अधिकारी-कर्मचारी अपने घरेलू नौकरों को लिखित अनुबन्ध से कम पगार देते हैं। बिना घरेलू नौकरों के अधिकांश का काम नहीं चलता है। यह समस्या उचित है और इसका कोई ना कोई स्थाई रास्ता आपसी बातचीत या अन्तरराष्ट्रीय मंच पर उठा कर ही निकल सकता है जो अब तक निकाल लिया जाना चाहिए था।
भारत सरकार मुखर लोगों, विरोधी दलों और मीडिया के दबाव में देवयानी के मुद्दे पर जरूरत से ज्यादा आगे बढ़ गयी लगती है। आज के बयान के अनुसार अमेरिका धौंस बनाए रखने के लिए अपनी ओर से टस से मस होने को तैयार नहीं है। तो क्या भारत अब इस मसले को सम्मानजनक तरीके से निबटा पाएगा, लगता तो मुश्किल है।

20 दिसम्बर, 2013

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