उत्तरप्रदेश की उन्नाव जनपद के डौंडिया खेड़ा गांव में कल से एक तमाशा शुरू हुआ है। इस तमाशे की प्रायोजक संप्रग की कांग्रेस नीत वह सरकार है जो अपनी विरासत जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रगतिशील प्रधानमंत्री को मानती है और इस विरासत की वर्तमान मुखिया वही सोनिया गांधी हैं जिनके पति राजीव गांधी ने देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने का सपना दिखाया था। इस सरकार के एक मंत्री चरणदास महन्त की सिफारिश पर कल से उक्त स्थान पर एक हजार टन सोने के लिए खुदाई शुरू की गई है। नरेन्द्र मोदी की खिल्ली के जवाब में कांग्रेस की आई सफाई के बावजूद उसे इस तमाशे से बरी नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने सफाई दी है कि भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण
(जीएसआइ) की उस सर्वे रिपोर्ट के बाद ही यह खुदाई शुरू की गई जिसमें उक्त स्थान पर जमीन के नीचे भारी मात्रा में कोई धातु होने के संकेत दिए गए हैं।
एक संन्यासी हैं शोभन सरकार,
जिन्हें यह सपना आया कि डौंडिया खेड़ा के किले के खण्डहर के नीचे भारी मात्रा में सोना दबा पड़ा है। यह संन्यासी खुद चौड़े नहीं आकर अपने शिष्यों के माध्यम से सभी तरह के निर्देश दे रहे हैं और उनके कहे अनुसार खुदाई का दिन और समय तय हुआ और खुदाई से पहले हवन भी हुआ। हवन, पूजा-पाठ आदि निजी आस्था का मामला है और ‘विनायक’ यह मानता है कि सभी की व्यक्तिगत आस्था का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन सरकारें किसी आस्था की अभिव्यक्ति का माध्यम बनें, उचित नहीं है। सपने को आधार मान कर इतना बड़ा तमाशा खड़ा कर देना सर्वथा अनुचित है। सपनों का मनोविज्ञान मानता है कि सपने में अकसर जो दिखाई देता है वह उस व्यक्ति की दबी-छुपी और सोई इच्छाएं ही होती हैं। डौंडिया खेड़ा की यह खुदाई भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा करवाई जा रही है और जैसा कि ऊपर बताया कि खुदाई का आधार जीएसआई का वह सर्वे है जिसमें उक्त स्थान के नीचे धातु का होना बताया गया है। विज्ञान ने अभी तक ऐसा कोई उपाय ईजाद नहीं किया जिससे धातु की किस्म का पता लग सके। एएसआई चाहता तो इस धातु की जांच नलकूप खुदार्ई के उपकरणों से भी कर सकता था लेकिन यह मान कर, कि यह सोना (यदि हुआ तो) आभूषणों और बर्तनों के रूप में हुआ तो क्षतिग्रस्त हो जायेगा। पुरावस्तु विशेषज्ञों (एंटीक एक्सपर्ट्स) का यह भी मानना है कि वह धातु सोना चाहे ना भी हो यदि वह आभूषणों और बर्तनों के रूप में जो भी धातु मिलेगी, वह सोने के भावों से कम की नहीं होगी। इतिहासकारों का मानना कुछ अलग है। उनका कहना है कि इस इलाके के ज्ञात इतिहास में ऐसा कोई शासक नहीं हुआ जो इतना समृद्ध हो कि उसके पास टनों-टन सोना था।
मीडिया वालों को विधानसभा चुनावों से पहले टीवी-अखबारों के समय और स्थान बेचने का माकूल बहाना मिल गया है। आसाराम प्रकरण के समय और स्थान की कीमत फिलहाल कम हो गई है, सो देश-विदेश के मीडिया ने अपने ओबी वैनों को डौंडिया खेड़ा में तैनात कर दिया है। वहीं अखबारों ने अपने पत्रकारों के डेरे भी वहां स्थापित कर दिए हैं। और कुछ हो या ना हो आसपास के वे आजीविका वाले जो मेले-मगरियों में उठाऊ दुकानें सजाकर गुजारा करते हैं उन सबकी दिवाली और छठी (छठ पर्व) को और ज्यादा रंगीन बनाने के लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी।
खुदाई में कुछ ना मिलना जहां अन्तरराष्ट्रीय हंसी-ठट्ठे का कारण बनेगी वहीं कुछ मिल भी गया तो इस देश में कई वर्षों तक ढोंगी सन्तों की बन आएगी और हो सकता है देश में कई जगह अच्छे-भले निर्माणों को गिराकर खुदाई का दौर-दौरा शुरू हो जाये! प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की चुप्पी और मंत्रियों को टोका-टोकी ना करने की उनकी शैली इस प्रकरण पर बहुत खटक रही है।
19 अक्टूबर, 2013
2 comments:
बहुत अच्छा
बहुत अच्छा!!
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