Tuesday, October 15, 2013

बिछती बिसात पर बात

शहर की चुनावी बिसात पर गोटिया अपनी-अपनी जगह लेने लगी हैं। वसुन्धरा सरकार के पूर्व संसदीय सचिव और नोखा से विधायक रहे गोविन्द मेघवाल ने कल औपचारिक घोषणा कर दी कि वे इस सतरह को जयपुर में मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भीखोलाकि वे बिना शर्त ऐसा कर रहे हैं और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस टिकट की कोई सौदेबाजी नहीं हुई है। ऐसा गोविन्द मेघवाल खुद कह रहे हैं पर राजनीति में सामान्य हलर-फलर करने वाला भी यह अच्छी तरह जानता है कि गोविन्द मेघवाल सौदेबाजी नहीं तो पक्कमपक्का आश्वासन के बिना टस से मस नहीं होने वाले। उधर कांग्रेस के कर्णधारों को भी यह पता है कि खाजूवाला  सीट को कांग्रेस के लिए निकलवा ले जाने की कुव्वत सिर्फ गोविन्द मेघवाल में ही है, वर्तमान चुनावी बिसात पर इस सीट के लिए कांग्रेस में कोई दूसरा जिताऊ उम्मीदवार नज़र नहीं रहा है।
मुख्यमंत्री गहलोत की चुनावी शैली से लग रहा है कि जिन-जिन सीटों को कांग्रेस के लिए जैसे-तैसे निकलवा ले जाने की गुंजाइश है उन-उन पर सभी तरह की संभावनाओं पर एक्सरसाइज की जा रही है। गोविन्द मेघवाल का यह कदम गहलोत की कवायद का ही हिस्सा है। नोखा, श्रीडूंगरगढ़, लूणकरणसर, कोलायत और बीकानेर (पश्चिम) की सीटों पर कुछ करने की गुंजाइश गहलोत के पास नहीं है, परिणाम इन सीटों पर चाहे कुछ भी हो। नोखा में रामेश्वर डूडी और संसदीय सचिव कन्हैयालाल झंवर आमने-सामने हैं, होगा क्या, यह इस पर भी निर्भर करेगा कि भाजपा नोखा में उतारती किसे है? श्रीडूंगरगढ़ में किसनाराम नाई भाजपा प्रत्याशी होते हैं तो संभव है वे मंगलाराम को चौथी बार विधानसभा में ना पहुंचने दें, उम्मीद है गहलोत की तरह ही वसुन्धरा भी एक-एक विधायक का गणित देख रही होंगी। ऐसे में किसनाराम की तरह अस्सी पार के मानिक सुराणा को लूणकरनसर में बेनीवाल के सामने उतार दे। यदि ऐसा होता है तो आसानियां गृहराज्य मंत्री के लिए भी नहीं रहेगी। सुराणा तमाम टांग खिंचाइयों के बावजूद अपने क्षेत्र में पूरी तरह और लगातार सक्रिय हैं।
श्रीकोलायत में देवीसिंह भाटी के रहते बहुत उम्मीदें कांग्रेस नहीं पाल रही है पर ऐसा जीवटी युवा उम्मीदवार उतारने की कोशिश में जरूर रहेगी कि यह चुनाव उसके लिए सफल प्रशिक्षण साबित हो ताकि पांच साल बाद के अगले संभावित चुनाव में कांग्रेस भरोसे के साथ लड़ सके।
रही शहर की दोनों सीटें, तो पश्चिम की सीट पर डॉ. बीडी कल्ला की उम्मीदवारी लगभग तय मानी जा रही है पर उनकी जीत पर संशय इस बार भी कायम है। तमाम आधे-अधूरे कामों पर लगे उनके नाम के भाटों के बावजूद खेल खड़ा होता दीख नहीं रहा है। इस सीट पर भी बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि भाजपा किसे जिताऊ मानती है? अपुष्ट खबर तो यही है कि कल्ला बन्धुओं के बहनोई और पिचहतर पार के वर्तमान विधायक ही अपने सालों से फिर भिड़ेंगे और मुकाबला इस बार भी रोचक रहने वाला है। जिले की सात सीटों में से चार पर भाजपा के भाटी, नाई, सुराणा और जोशी ही उम्मीदवार रहते हैं तो इस जिले से भाजपा उम्मीदवारों की औसत आयु साठ पार ही रहनी है। आंकड़ा यह भी रोचक बनता है।
बीकानेर पूर्व से भाजपा की सिद्धीकुमारी में कोई फेर-बदल नहीं दिख रहा है पर कांग्रेस में असमंजस हाल तक कायम है। जिताऊ उम्मीदवार की ही यदि धार-विचार है तो कांग्रेस सिद्धी की बूआ राज्यश्री को राजी कर सकती है। इस सीट पर अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्गों की दावेदारी भी पूरा जोर करवा रही है। हालांकि अल्पसंख्यक वर्ग में ऐसा कोई चेहरा नहीं दिख रहा है जो बहुसंख्यक वर्ग में भी समान रूप से स्वीकार्य हो, अन्य पिछड़ों में जरूर एक-दो उम्मीदवार अपनी दावेदारी को मजबूत बताने में लगे हैं, उनकी बात गले कितनी उतरती है देखने वाली होगी। सामान्य वर्ग के किसी उम्मीदवार की दावेदारी इस सीट से कांग्रेस शायद ही स्वीकार करे।

15 अक्टूबर, 2013

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