Monday, October 21, 2013

एसपी साहब, वो कलंक नहीं मिटेगा

मुक्ताप्रसाद नगर और उससे जुड़े सर्वोदय बस्ती और रामपुरा बस्ती के इलाकों को शहर में संवेदनशील माना जा सकता है। मुक्ताप्रसाद नगर के कुछ बाशिंदों को छोड़ दें तो इन इलाकों के ज्यादातर बाशिंदे निम्न आय से गुजारा करने वाले हैं और इनके किसी के बहकावे में आने की आशंकाएं इसलिए बनी रहती है क्योंकि इनकी सारी चिन्ताएं और ऊर्जा किसी किसी तरह अपनी आजीविका और रोजमर्रा की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने की जद्दोजेहद में ही जाया हो जाती है।
ऐसे में इन्हीं इलाकों में बछड़ों के सिर कटे और खाल उतारे शवों का एकान्तरे से मिलना जहां चिन्ता का कारण होना चाहिए वहीं इसके पीछे की किसी गहरी साजिश को भी सूंघा जाना चाहिए। तीन दिनों के इस घटनाक्रम को आगामी विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए। वोट बहुल यह इलाका बीकानेर के पूर्व और पश्चिम दोनों क्षेत्रों में पसरा है। हो सकता है यह पुनरावृत्ति किसी तंग-दिमाग की साजिश हो और इसी बहाने वह वोटों को इधर-उधर करने की मंशा रखता हो। यह शहर अयोध्या की 6 दिसम्बर 1992 की घटना के बाद भी सम्हला रहा। बावजूद इसके सावचेती जरूरी इसलिए है कि राजनीति करने वालों का दीन-ईमान दिन दिन चुकता जा रहा है और अपने स्वार्थों के वशीभूत ये कुछ भी कर और करवा सकते हैं।
बीकानेर के वर्तमान पुलिस अधीक्षक जब से आएं हैं तब से ही पुलिस महकमे के होने के एहसास को जगाया है। जिप्सम माफिया पर कसे शिकंजे को इसी रूप में देखा जाना चाहिए, हालांकि यातायात व्यवस्था से सम्बन्धित इनके अधीनस्थ महकमे को उपाधीक्षक मिलने के बावजूद एसपी असहाय लग रहे हैं। शायद निजी बस ऑपरेटर और ऑटोरिक्शा यूनियनों के दबदबे के आगे वे कुछ खास करने की स्थिति में अपने को नहीं पा रहे होंगे। लेकिन जिप्सम माफियाओं की पीठ को सहारा देने वाले दिग्गज भी दबदबा कम नहीं रखते हैं बावजूद इसके एसपी ने उन्हें आईना क्या इसलिए दिखा दिया कि फिलहाल उनकी सरकार नहीं है और निजी बस ऑपरेटरों और ऑटोरिक्शा चालकों की पीठ को सहारा देने वालों की सरकार है?
खैर यह मुद्दा अलग है, बात पिछले तीन दिनों की बदमजगी पर ले आते हैं। एसपी को इस शहर के सन्दर्भ और इतिहास से यह समझ लेना चाहिए कि शहर चोरियां, दुर्घटनाएं और अव्यवस्थित यातायात को भुगतने का तो आदी है लेकिन पुलिस महकमे की लापरवाही से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है तो यह पुलिस के मुखिया को कभी माफ नहीं करेगा। पुलिस महकमे पर लगे चोरी, दुर्घटना और अव्यवस्थित यातायात के धब्बों को तो वह नजरअंदाज करता रहा है लेकिन कोई साम्प्रदायिक बदमजगी होती है तो शहर इस कलंक की प्रतिच्छाया वर्तमान एसपी के नाम के साथ हमेशा के लिए चस्पा कर देगा। शुक्रवार को जब सिर कटा बछड़ा मिला तभी पुलिस को उसके दोषी तक पहुंचने के गम्भीर प्रयास करने चाहिए। वे नहीं किए गये तभी तीसरे ही दिन दूसरी घटना का दुस्साहस करने की किसी ने जरूरत की?

21 अक्टूबर, 2013

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