Monday, October 28, 2013

शहर भाजपा को जालिम लोशन की जरूरत

भारतीय जनता पार्टी की शहर इकाई में कु-समय आए उबाल ने पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश इकाई तक को झकझोर दिया है। बीकानेर में डेरा जमाए बैठे संभाग प्रभारी डॉ. राजेन्द्र फड़के ने शहर पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के गुबार कल सुने। कुछ ने ठण्डी जबान से तो कुछ ने दबी जबान से अपनी बात रखी और कुछेक तीखे भी हो लिए। चुनाव के इस नाजुक मौके पर बनी इन परिस्थितियों को फुरसत से सम्हालने का वक्त प्रदेश नेताओं को नहीं है। तभी वर्तमान शहर विधायकों के खिलाफ मुखर हुए असन्तोष को हड़बड़ी में निबटाने की कोशिशें हुईं और बाद में पार्टी को लगा होगा कि कुछ गड़बड़ी हो गई है।
शहर इकाई को हटाते हुए नये अध्यक्ष के लिए एकबारगी तय नन्दकिशोर सोलंकी के नाम को तत्काल दबा लेना गड़बड़ी के अहसास का प्रमाण है। साफ-सुथरे और निष्ठावान सोलंकी यदि शहर अध्यक्ष घोषित कर दिए जाते तो असन्तुष्ट गुट के जले पर नमक छिड़कना कहलाता। क्योंकि असंतुष्ट गुट से सोलंकी की पटरी पिछले लम्बे समय से नहीं बैठ रही है और पार्टी में इस असंतुष्ट गुट के सोलंकी कड़े आलोचक भी रहे हैं। पार्टी अब ऐसे नाम की तलाश में है जिस पर सभी गुटों सहित विधायकों का भी एतराज न्यूनतम हो। ऐसा इसलिए कि पार्टी बीकानेर शहर की दोनों सीटों पर वर्तमान विधायकों को ही फिर से लड़ाने का मन लगभग बना चुकी है, और यह भी कि सौ के आंकड़े तक पहुंचने के लिए इन दोनों ही सीटों को जैसे-तैसे पार्टी को बचाना भी जरूरी है। इनका बचना 2008 के पिछले चुनाव जितना आसान नहीं लग रहा है। नन्दकिशोर सोलंकी नाम दोनों ही विधायकों के लिए अनुकूल जरूर था लेकिन इस नाम पर असन्तुष्टों का उफान आपे से बाहर हो जाता। पार्टी ने मौके की नजाकत देख सावचेती बरती और सोलंकी का नाम जब्त कर लिया।
पार्टी के लिए इन परिस्थितियों में शहर इकाई अध्यक्ष के लिए कोई नया नाम तय करना टेढ़ी खीर हो गया है। अन्य जिन पर विचार की संभावनाएं हैं उनमें प्रदेश प्रतिनिधि डॉ. सत्यप्रकाश आचार्य और भंग कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष कन्हैयालाल जोशी का नाम है। चूंकि ब्राह्मण समाज के एक समूह ने शशि शर्मा को हटाए जाने पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई है जिसे देखते हुए पार्टी किसी ब्राह्मण को ही अध्यक्ष बनाना चाहेगी। हालांकि, संभावित उक्त दोनों नाम पुष्करणा ब्राह्मण समुदाय से आते हैं फिर भी विकल्पहीनता की स्थिति में इन पर मुहर पार्टी की मजबूरी भी है। 1998 के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के रूप में बुरी तरह हार जाने के बाद आचार्य स्थानीय और प्रदेश स्तर पर अपनी वही पुरानी साख अभी हासिल नहीं कर पाए हैं सो हो सकता है कन्हैयालाल जोशी अपने सम्पर्कों के चलते यह जिम्मेदारी हासिल करने में सफल हो जाएं। मुद्दे में सावचेत जोशी सामान्यत: कम बोलते हैं और जहां तक हो किसी को नाराज नहीं करते। इस तरह केजालिमकन्हैयालाल जोशी शहर संगठन की इन नाजुक परिस्थितियों में हो सकता हैलोशनकी भूमिका निभाने में सफल हों।

28 अक्टूबर, 2013

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