जब तब यह कहा जाता रहा है कि राज तो अधिकारी चलाते हैं। आजादी से पहले अंग्रेजों ने ‘इम्पिरियल सिविल सर्विस’ (आईसीएस) का गठन भारत सहित दक्षिण एशिया के अपने उपनिवेशों में प्रशासन चलाने के लिए किया था। आजादी से पहले इन सेवाओं में अधिकांश ब्रिटिश थे तो शेष भारतीयों में अधिकांश बंगाल के।
आजादी के बाद इस सेवा का नाम बदलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) कर दिया गया व कानून और व्यवस्था देखने वालों की सेवा का नाम भारतीय पुलिस सेवा। यह सेवाएं चूंकि आईसीएस तथा तबकि पुलिस सेवा (इण्डियन इम्पिरियल पुलिस सेवा) की निरन्तरता भर थी, इसलिए केवल नाम नाम बदला, रंग-ढंग और रुतबे वही रहे। कहते भी हैं कि हासिल ताकत को कोई ऐसे ही नहीं छोड़ता और व्यावहारिक तौर पर जब खुद को ही तय करना हो तो हरगिज नहीं, बल्कि ज्यों-ज्यों राज चलाने वालों का खरापन कम होता जा रहा है, त्यों-त्यों इन प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की ताकत बढ़ती जा रही है। थोड़ी-बहुत कमजोरी कहीं इन अधिकारियों में हैं तो उनके अपने लक्षणों के कारण है क्योंकि ये खुद भ्रष्ट होते जा रहे हैं और भ्रष्ट की ताकत अन्दर से कमजोर होती है।
सर्विस शब्द के लिए शब्दकोश टटोलें तो कुछ खास हासिल नहीं हुआ। फादर कामिल बुल्के भी इसका अर्थ सेवा ही बताते हैं। पर सेवा के मानी जो हिन्दी शब्दकोशों ने दे रखे हैं, वह प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अधिकारियों के काम-काज के तरीकों से मेल नहीं खाते। बृहत् हिन्दी कोश ने सेवा के मतलब परिचर्या, खिदमत आदि-आदि दे रखे हैं पाठक यह अच्छी तरह से जानता है कि सेवा कौन किसकी कर रहा है?
इस सेवा पर चर्चा का मन तो इसलिए हो गया कि पिछले कई दिनों से इन सेवाओं के कुछ अधिकारी कई कारणों से चर्चा में रहे हैं। राजस्थान काडर के पुलिस अधिकारी और अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा की थानों से उगाही के आरोपों में गिरफ्तारी से लेकर उत्तरप्रदेश
काडर की आईएएस दुर्गाशक्ति
नागपाल, हरियाणा काडर के आईएएस, अशोक खेमका और राजस्थान काडर के आईएएस पंकज चौधरी पिछले एक अर्से से सकारात्मक और नकारात्मक कारणों से चर्चा में हैं। इस तरह के प्रकरण जब सामने आते हैं तो लगता है इनकी ट्रेनिंग में ही कोई कमी है। तब ही इन सुपर-डूपर शक्तिशाली लोगों से सम्बन्धित बदमजगियों के समाचार आते हैं। देश-दुनिया पर विचारने वाला एक तबका यह भी कहता है कि प्रशासनिक सेवा के ये अधिकारी नहीं होते तो, ये नेता देश को बेच खाते। आजकल के नेताओं की गैलेक्सी पर और उनकी करतूतों पर नजर डालें तो बात में दम भी लगता है। लेकिन इन अधिकारियों के आलोचकों की इस बात में भी दम लगता है कि इन अधिकारियों में आदमीपना होता ही नहीं है, हेकड़ी से और मशीनी तरीके से काम करते हैं और संवेदना की तमीज इनमें सिरे से ही गायब मिलती है। लेकिन इसके ठीक उलट भी कई उदाहरण मिलते हैं। ऐसे उदाहरणों को अंग्रेजी कहावत ‘अपवाद ही नियमों की पुष्टि करता है’ को प्रमाण के रूप में बता दिया जाता है।
वैसे मीणा, चौधरी, नागपाल, खेमका की सुर्खियों को इन सेवाओं की साख पर ‘बट्टा’ इसलिए मान सकते हैं कि इन अफसरों में किसी भी परिस्थिति में ढल जाने की चतुराई होती है, फिर अफसर चाहे कर्त्तव्यनिष्ठ
हो या बेईमान। दुर्गाशक्ति
के मामले में जरूर यह छूट दी जा सकती है कि उनमें अनुभव की कमी के चलते ही ऐसा हो गया होगा। लेकिन मीणा, चौधरी और खेमका सुर्खियां पाते हैं तो लगता है इन्हीं में कुछ कमी है! अन्यथा यह आईएएस, आईपीएस किसी को कुछ निकाल कर देते ही कहां हैं?
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अगस्त, 2013
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