Saturday, August 17, 2013

कॉलेज खुलें पर सुचारू भी चले

जिले की कोलायत तहसील में राजकीय महाविद्यालय की मांग को लेकर चल रहे आन्दोलन ने जोर पकड़ लिया है। इस चुनावी वर्ष में मांगों की उम्मीदें हरी होते दिखने लगी तो पूरे प्रदेश में ही भिन्न मांगों को लेकर आन्दोलनों, प्रदर्शनों का मौसम परवान पर है, हो भी क्यों ना, आम जरूरत की सुविधाएं मुहैया करवाना सरकार का काम है और यदि वह इसे पूरा नहीं करती है तो यह उसका निकम्मापन ही कहलायेगा। ऐसे में किसी क्षेत्र की उपेक्षा और किसी के साथ पक्षपात के आरोप भी लग सकते हैं, लगते ही हैं, हो सकता है और अब तो होता ही है कि सरकार भी क्षेत्रवार अपनी पार्टी के हित अहित देखकर ही घोषणाएं और निर्णय करती हैं।
लेकिन सवाल तो यह भी उठता है कि जो जनता अस्पताल, कॉलेज, स्कूल आदि-आदि खुलवाने को जिस तरह एकजुटता के साथ आन्दोलन करती है, इनके खुल जाने पर वह आंखें क्यों मूंद लेती है? किसी भी सार्वजनिक सुविधा केन्द्र जिनमें ये कॉलेज, अस्पताल, स्कूल आदि-आदि आते हैं, के खुलने के बाद वे सुचारु हैं कि नहीं, इस पर कोई आन्दोलन क्यों नहीं होता? बीकानेर का डूंगर कॉलेज इसका बड़ा उदाहरण है। इस कॉलेज को प्रदेश के उन कॉलेजों में शुमार किया जाता है जिन पर खर्च होने वाला जनता का पैसा सर्वाधिक यानि प्रतिवर्ष अरबों में होगा। लेकिन कहा जाता है कि कक्षाएं दस प्रतिशत भी नहीं लगती है।कुछ लोहा खोटा कुछ लोहार खोटायानी कुछ प्राध्यापक कक्षाएं लेना चाहते हैं तो विद्यार्थी नहीं आते। कुछ विद्यार्थी पढ़ना चाहते हैं तो प्राध्यापक नियत हराम कर बठते हैं। बरसों से ऐसी स्थिति है, पर बीकानेर की जनता में कोई उद्वेलन नहीं है।
17 अगस्त, 2013


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